29.9.12

मैसेज


मैसेज का क्या है, कभी भी आ सकता है! कल रात जब मैं बेडरूम में सोने से पहले मूड बना रहा था तभी मैसेज आ गया। अनमने भाव से पढ़ा तो चौंक गया। लिखा था, जल्दबाजी में अपने जीवन को  खतरे में न डालें, रेल फाटक ध्यान से पार करें!“ अब इस मैसेज का क्या मतलब है भला! मैं कौन सा रेल फाटक पार करने जा रहा हूँ ? जब कर रहा था तब तो नहीं आया! अब आया जब दुर्घटना घट चुकी!! गलत संदेश तो आते ही हैं, सही संदेश भी हमेशा गलत समय पर आते हैं।J अच्छा भला मूड चौपट हो गया। 

मैसेज को कोसते हुए फिर सोने की तैयारी करने लगा तभी दूसरा मैसेज आ गया-YOUR MOBILE NUMBER HAS WON 8,50,000/-पौण्ड (पौण्ड का निशान बनाने नहीं आ रहा है।) G.B.P. AND ONE BMWX6 AWARD 2012 HELD IN U.K. TO CLAIM YOUR PRIZE SEND YOUR NAME,AGE,ADDRESS AND MOBILE NUMBER ! अब यह मैसेज पढ़कर नींद फिर उड़ गई! हाँ, हाँ, जानता हूँ कि यह सब बकवास होता है। मूर्ख बनाने का धंधा है। इसी बात पर तो नींद उड़ गई। सोचने लगा, ये आखिर मुझे मूर्ख बना क्यों रहे हैं ? क्या दुनियाँ में वाकई इतने मूर्ख होते हैं कि इनकी बातों में फंस कर मूर्ख बन जाते हैं? कहावत याद आई, मूर्ख का क्या है, एक ढूँढो हजार मिलते हैं!” हो सकता है मैं ही मूर्ख हूँ जो इनकी बातों को धोखा देने वाला समझकर अच्छी भली पुरस्कार की राशि को मिस कर रहा हूँ! लेकिन यह बिलावज़ह मुझ पर इतना मेहरबान क्यों होने लगा? यह पक्का मूर्ख ही बना रहा है। लेकिन यह मूर्ख बना क्यों रहा है ? यह खुलेआम मूर्ख बना रहा है ! क्या इन पर कोई कार्यवाही नहीं हो सकती? मूर्ख बनाना नहीं यह तो जालसाजी है! इस खुलेआम जालसाजी का कोई इलाज नहीं? जब यह सोचा तो और भी मैसेज पर ध्यान जाने लगा।

अभी कल ही की बात है। एक मैसेज आया था..बिपासा बसु का पैकज लेने के लिए धन्यवाद। आपके मोबाइल से 1/- रूपये प्रतिदिन की दर से 30/- रूपये काट लिया जा रहा है। अन सब करने के लिए UNSUB BIPS टाइप करें और मैसेज भेजें!” लो जी ! कल्लो बात !! यह तो ये बात हुई कि पहले डकैती डाली फिर कह रहे हैं, चाहते हो कि भविष्य में डकैती न पड़े तो लिख कर बता दो,  भविष्य में डकैती मत डालना !” मैं भागा-भागा अपने परिचित दुकानदार के पास गया तो उसने हँसते हुए कहा, आप ने जरूर गलती से कुछ दबा दिया होगा, तभी ऐसा हो गया !” मैने कहा, चुप रहो! मुझे गलती से कुछ भी दबाने की आदत नहीं है। अब बताओ क्या करें?” उसने हेल्पलाइन का नम्बर दिया, मैने बात की तो यह सुनिश्चित हुआ कि भविष्य मैं डकैती नहीं पड़ेगी। लेकिन जो पैसा कट गया वह वापस मिलने से रहा। L पैसा कटा सो कटा, मेरा कीमती समय जाया हुआ, दुकानदार की बकवास सुनते हुए उसका एहसान मंद होकर उसे धन्यवाद कहना पड़ा, इन सब का क्या?

वैसे तो मैसेज पर ध्यान देना ही छोड़ दिया है लेकिन एक नज़र दौड़ाने की आदत गई नहीं। कभी-कभी काम के मैसेज भी आते हैं। सबसे अच्छा तो बैंक से आया यह मैसेज लगता है, आपके खाते में इतना रूपया क्रेडिट हो गया है।J कभी किसी चोर ने या पत्नी ने बिना बताये  खाते से पैसा डेबिट कर लिया तो भी तुरंत मालूम हो जायेगा।J बहुत से मित्र हैं जिन्हें मैसेज भेजने की बीमारी है। ब्लॉगिंग, फेसबुक या ट्यूटर जैसी बड़ी बिमारियों से अभी कोसों दूर हैं। दुनियाँ भर के त्योहारों, महिला, पुरूष, महापुरूष के खास दिनो की बधाई के लिए ढाँसू-ढाँसू साहित्यिक संदेश ढूँढ लाते हैं। मुझे तो और भी ढूँढ कर साहित्यिक संदेश भेजते हैं और अपेक्षा करते हैं जब मैने पनवारी, पास चारी, दुरा चारी, करम चारी, अधिक आरी, सूखा मेवा, भुना बैगन आदि आदि होकर भी इतनी बड़ी बात लिख डाली तो तुम तो कवि हो! साहित्य की पूँछ हो! तुम तो जरूर इससे बढ़िया बधाई संदेश भेजोगे! लोग इतने मासूम होते हैं कि दुष्यंत कुमार के फड़कते शेर के बदले उससे भी धड़कते शेर लिखने की मुझ नाचीज से अपेक्षा करते हैं! अब उन्हें कौन समझाये कि बलागिया कवि हूँ। जिसे प्रिंट मीडिया का कवि या बड़ा माना जाने वाला साहित्य आचार्य हिकारत की नज़रों से देखता है।J इन सब मित्र संदेशों के चक्कर में शत्रु संदेशों को भी स्वीकार करना पड़ता है!  कभी खीझ कर पूरा मैसेज एकसाथ डिलीट कर देता हूँ! दूसरे दिन मित्र का फोन आ जाता है, का यार! बड़े कवि बनते हो!! इत्ता बढ़िया शेर लिखकर भेजा लेकिन कोई जवाब ही नहीं दिया! जवाब नहीं सूझा तो वाह! वाह! तो लिख ही सकते थे! अब कैसे कहूँ कि मैने तुम्हारा मैसेज पढ़े बिना ही डिलीट कर दिया था। वरना ब्लॉगिंग करते-करते वाह! वाह! करने का प्रशंसक बटोरू गुण तो मुझ में भी आ ही गया है।J बड़ी समस्या है! मिटाओ तो बुरा, न मिटाओ तो झेलों शत्रुओं की कपटी चालें। परसों अपने संजय भाष्कर जी का यह मैसेज आया था....

सुबह-सुबह सूरज का साथ हो,
परिंदों की आवाज हो,  
हाथ में चाय और
यादों में कोई अपना साथ हो,
उस खुशनुमा सुबह की क्या बात हो!

अब बताइये, इतना बढ़िया मैसेज भी आता है तो कैसे मैसेज न पढ़ें? लेकिन इस मैसेज में भी कुछ झोल लगता है। सुबह तो प्रभु की कृपा से मेरी रोज ही खुशनुमा होती है। सूरज का साथ होता है, परिंदों की आवाज होती है और हाथ में (घूमने के बाद) कुल्हड़ (मिट्टी के पुरूवे) में गरम चाय भी रहती है। घूमते समय हाथ में कैमरा भी रहता है। कोई एक नहीं अनेक अपनों का साथ होता है लेकिन यादों में कोई नहीं रहता। इतना सब होने के बाद भी अगर आदमी वर्तमान में न जी सके और यादों में डूबा रहे, जो नहीं है उसी को याद करता रहे, जो है उसे न देखे तो फिर सूरज, परिंदों और चाय का मजा वह क्या खाक ले पायेगा ? कितने लोग सुबह घूमते समय मोबाइल में गाना या भजन सुनते दिख जाते हैं! मुझे उन पर भी बड़ी दया आती है। प्रकृति के साथ चलकर भी जो प्रकृति से न जुड़ पायें ऐसे अभागियों को भगवान कोई संदेश क्यों नहीं भेजता ? जीवन का आनंद तो वर्तमान को महसूस करने में है।

क्या कोई चलनी है जिसमें मैं अनचाहे संदेशों को चाल कर उड़ा सकूँ और पसंदीदा संदेशों को सहेज सकूँ? चावल के ढेर से कंकड़ के दानो की तरह एक-एक कर डिलीट करना तो बड़ा बोरियत भरा काम है। कोई ऐसी चलनी बताइये जिसमें झट से सार सार को गही रहे, थोथा देई उड़ाय वाली बात हो। ईश्वर मुझे और आपको भी बुरे संदेशों से बचाये। नमस्कार।
...............................

27.9.12

मौसम ने ली अंगड़ाई

एक ही स्थान की दो तस्वीरें हैं....
सावन से पहले


सावन के बाद


25.9.12

कथरी


कैसन तबियत हौ माई?
कहारिन ठीक से तोहार सेवा करत हई न?
काहे गुस्सैले हऊ!
पंद्रह दिना में घरे आवत हई, ई खातिर?
का बताई माई
तोहार पतोहिया कs तबियत खराब रहल
अऊर
ओ शनीचर के
छोटका कs स्कूल में, ऊ का कहल जाला, पैरेंट मीटिंग रहल
तू तs जानलू माई!
शहर कs जिनगी केतना हलकान करsला!

तोहसे से तs कई दाईं कहली,
चल संगे!
उहाँ रह!
तोहें तs बप्पा कs माया घेरले हौ!
ऊ गइलन सरगे,
इहाँ बैठ कबले जोहबू?
हाली न अइहें।

का कहत हऊ माई?
ई कथरी से जाड़ा नाहीं जात?
दूसर आन देई?
तोहें मोतियाबिंद भईल हो, एहसे दिखाई नाहीं देत
ले!
कहत हऊ तs नई कथरी ओढ़ाय देत हई।
(पलटकर, वही रजाई फिर ओढ़ा देता है!)

माई!
नींद आयल राति के?
का कहली?
नवकी कथरी खूबे गरमात रही!
खूब नींद आयल!
ठीकै हौ माई,
चलत हई!
सब सौदा धs देहले हई कोठरी में
कहरनियाँ के समझाय देहले हई
नौकरी से छुट्टी नाहीं मिलत माई
जाना जरूरी हौ।

तोहार विश्वास बनल रहे,
कथरी तs
जबे आईब
तबे बदल देब!
पा लागी।
...........

(कथरी का यह चित्र बड़े भाई ज्ञानदत्त जी के ब्लॉग से साभार।)

23.9.12

ठंडे गधे


सुबह का समय था। सड़क पर तीन गधे दिखे। तीनो पूरे गधे थे। कृष्न चंदर के गधे का कोई भी गुण उनमे नहीं था। न जिम्मेदार नागरिक की तरह चिंतित थे न राष्ट्र भक्त की तरह उत्तेजित। एकदम महंगाई से त्रस्त तीन गरीब आदमियों की तरह ठंडे। मुझे उनके ठंडेपने ने बेचैन कर दिया। वैसे बेचैन होने जैसी कोई बात नहीं थी। गधे होते ही ठंडे हैं। लेकिन बेचैनी का क्या ? किसी बात पर भी हो सकती है। गधा ठंडा हो सकता है तो आदमी बेचैन क्यों नहीं हो सकता ? कई प्रश्न खुद ही दिमाग में आने लगे। सड़क पर बैल हो सकते हैं, शिकारी कुत्ते हो सकते हैं, भ्रष्टाचारी हो सकते हैं, सदाचारी हो हो सकते हैं, नेता हो सकते हैं तो फिर गधे का होना कौन सी बड़ी बात है? गधे का सड़क पर होना या धोबी घाट पर होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। सड़क है तो जैसे आदमी हैं वैसे गधे हैं। गधे का घर पर होना भी बड़ी बात नहीं है। अधिकांश तो घर पर ही रहते हैं। बड़ी बात तो गधे का दफ्तर में या स्कूल में होना है। लेकिन मुझे अफसोस तब होता है जब इस खबर से भी लोग नहीं चौंकते! मैने अपने मित्रों से कहा, आज मैं अपने बच्चे के स्कूल गया था। जानते हो? वहाँ मैने एक गधे को पढ़ाते हुए देखा!” मेरी बात पर दोस्तों की प्रतिक्रिया बड़ी ठंडी थी।  अचरज के कोई चिन्ह उनके मुखड़े पर नहीं दिखे। उन्होने मुझे ऐसे देखा जैसे मैं ही गधा हूँ! मैं दुखी हो गया। मैने फिर अपने मित्रों से कहा, जानते हो? आज दफ्तर में काम से गया था लेकिन कुर्सी पर बैठा वह शख्स मेरी बात समझ ही नहीं रहा था, पूरा गधा था!” इस पर भी दोस्तों को कोई आश्चर्य नहीं हुआ! उन्होने फिर मुझे उसी निगाह से देखा जिस निगाह से गधे को देखते हैं। बात में जान डालने के लिए मैने झूठ बोला, तुमको पता है? आज संसद में गधे दिखे!” दोस्तों की प्रतिक्रिया फिर भी वैसी की वैसी! पहले की तरह ठंडी!! उनके चेहरे पर ऐसा भाव था जैसे वे जानते हों ! जबकि खुदा गवाह है, मैने झूठ बोला था।

पता नहीं लोग चौंकते क्यों नहीं? बड़ी से बड़ी खबर सुना दो, लोगों में उत्तेजना नहीं होती। आप भी आजमा कर देखिये। झूठ बोलिये। अपने पड़ोसी से सुबह-सुबह झूठ मूठ कहिये, आज बिजली नहीं आयेगी। वह जरा भी नहीं चौंकेगा। थोड़ा परेशान होकर पूछ सकता है, अखबार में दिया है क्या? कितनी देर नहीं आयेगी?” फिर ठंडी सांस लेकर कहेगा, ई तो रोज का चक्कर है। अभी उस दिन की बात है। बिजली का बिल जमा कर के हाँफते-डाँफते घर आया और अपने पड़ोसी को उत्साह से बताया, बहुत भीड़ थी। बिल एकदम गलत, लगभग दूना आ गया था। फ़जीहत करनी पड़ी लेकिन सुधर कर जमा हो गया। उसने कोई आश्चर्य या सहानुभूति प्रकट नहीं की।  मुझे बधाई भी नहीं दिया। बस इतना ही कहा, मैं गया था तब भी बहुत भीड़ थी!“

बाहर क्या, घर में भी हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। एकदम ठंडा सा माहौल मिलता है। देर शाम घर लौटकर पत्नी से कहिए, आज बहुत जाम था इसलिए आने में देर हो गई। पत्नी कोई सहानुभूति प्रकट करने वाली नहीं। ठंडा सा जवाब होगा, चाय अभी पीजियेगा या आराम करने के बाद ?” काम वाली बाई के दिन भी आजकल बहुत बेकार कटते हैं। वह बड़े चटखारे लेकर सुनाती है, फलाने की लड़की फलाने के साथ भाग गई!” और मालकिन के चेहरे पर कोई आश्चर्य के भाव नहीं, ठीक है, लेकिन यह बता, तू कल कहाँ थी? ऐसे नहीं चलेगा। काम वाली बाइयाँ अब ऐसी खबरें सुनाकर अपनी मालकिन का ध्यान जरा भी नहीं बटा पातीं।

अब तो घोटाले की खबरें पढ़कर भी लोग ठंडे रहते हैं। एक नज़र दौड़ा कर तुलना करते हैं फिर ठंडी सांस लेकर कहते हैं, इससे बड़ा तो वो वाला था! इसमें कोई दम नहीं। पेट्रोल के दाम बढ़ने से भी लोग नहीं चौंकते। गैस सिलेंडर पर सब्सिडी कम होने की खबर ने लोगों को थोड़ा विचलित किया था फिर बात आई गई हो गई। ममता जी के समर्थन वापसी की घोषणा से भी लोग न चौंके न संशकित हुए कि सरकार गिरेगी। भारत बंद को लोग ऐसे ठंडे होकर देख रहे थे जैसे मुफ्त में कोई बड़ी नौटंकी देख रहे हों। दूरदर्शन के दर्शकों की मजबूरी छोड़ दीजिए तो मुझे नहीं लगता कि बालिका वधू, क्रिकेट मैच या अपना कोई दूसरा प्रिय सीरियल देखना छोड़कर सभी लोगों ने प्रधान मंत्री का राष्ट्र के नाम संदेश सुना होगा। हाँ, खबरों में पैसा पेड़ पर नहीं उगता इस एक वाक्य को पढ़कर सुबह मुँह बनाते जरूर देखे गये।

सुबह, जब से सड़क पर खड़े तीन ठंडे गधों को देखा है तभी से मैं लगातार यह सोचता रहा कि आखिर वे गधे इतने ठंडे क्यों थे ? गधे थे इसलिए ठंडे थे या ठंडे होने के कारण गधे हो गये ? क्या गधे होने से पहले वे आदमी थे ? क्या देश के हालात ने उन्हें पहले ठंडा होने में फिर गधा होने के लिए मजबूर किया है ? गंधों के ठंडेपने के बारे में सोचते-सोचते दूसरे जानवरों और फिर आम आदमियों के बारे में सोचता रहा कि क्या गधे ही ठंडे हैं या दूसरे सभी प्राणी ठंडे हैं? क्या जो ठंडे नहीं हैं वे सभी आदमी हैं? क्या जो ठंडे नहीं हैं वे सभी शिकारी या आदमखोर हैं? क्या ऐसे भी आदमी हैं जो ठंडे नहीं हैं और आदमखोर से भिड़ने की ताकत रखते हैं? क्या ऐसे भी आदमी हैं जो गधों को फिर आदमी बना सकते हैं? कभी-कभी मैं भी गधों की तरह सोचने लगता हूँ। क्या मेरे भीतर भी गधे के जीवाणु विकसित हो रहे हैं ? हे भगवान !  यह  हो क्या रहा है !

19.9.12

हे गणेश !


(साक्षी विनायक)


हे गणेश!
वक्रतुंड महाकाय!
आप खूब खाते हो
आपका खाया-पीया 
दिखा देता है आपका पेट
लेकिन
हमारे आज के भगवान जो खाते हैं
उसकी तुलना में
यह तो कुछ भी नहीं है!
आज के भगवान के खाने का
नहीं है कोई 
फिक्स रेट
आपसे डबल
डबल क्या, बबल डबल खाते हैं
और खा कर
डकार भी नहीं लेते
जाने किस पेट में
छुपा जाते हैं!

हे गणेश!
ये बड़े चमत्कारी
खा कर भी बने रहते हैं
पहले की तरह भिखारी 
इन्होने क्या खाया?
जानने के लिए
जाना पड़ता है
विदेश!
गज़ब है उनका 
छद्मवेश!

हे गणेश!
क्षमा करना
आप से इनकी तुलना ठीक नहीं
मगर दिल में जो दर्द है
बिना बताये
चुप रह जाना भी ठीक नहीं।
जानता हूँ  
जब-जब टूटता है
रावण का अहंकार
बार-बार चाहता है
आपका ही आशीर्वाद
आपका ही प्यार
मगर मामूली नहीं हैं
आज के भगवान!
पहले जबरदस्ती
बन जाते थे 
नरेश!
अब तो
बन जाना चाहते हैं
परम पिता
साक्षात महेश!

हे गणेश!
क्या विडंबना है !
आपने चूहे को अपना वाहन बनाया
इन्होने आपका अनुसरण कर
पूरी जनता को ही
चूहा बना दिया !
आप चूहे बिना नहीं चल सकते
ये जनता बिना रह नहीं सकते
जैसे आपके इर्द-गिर्द रहने वाले चूहे
आपका प्रसाद पा
खूब मोटे हो जाते हैं
वैसे ही
इनके निकट रहने वाले चूहे
इनका चूरन पा
अहंकार से 
पागल हो जाते हैं
गज़ब है इनके चूरन की ताकत
खाते ही
आपको भजना छोड़
उन्हीं की शरण में चले जाते हैं।
कलियुगी भगवान को
उनके भक्त
आपसे भी ऊँचे आसन पर
ठाठ से बिठाते हैं।

हे गणेश!
आपको चाहते हैं
दीन, दुखी, लाचार
थोड़े से कवि, कलाकार
या फिर 
बालगंगाधर तिलक की तरह
जिन्हे है 
इस देश से प्यार
मगर इनको चाहता है
पूरा कालाबाजर!

हे गणेश!
जब कभी
ये आपको आगे कर
सजाते हैं
आपके पंडाल 
तो दुष्टों की तबियत
खिल जाती है
मगर अपनी आत्मा
पूरी तरह से
हिल जाती है

इनका पिछलग्गू, चूहा बनकर 
जीने से अच्छा है
आपके साथ
गंगा में डूब जाना

आए हो 
तो ले चलो न इस बार
अपने देश!

हे गणेश !
………………………



16.9.12

दूसरे गोलमाल की तरह कोलमाल भी भूल जायेगी जनता....!


जिस तरह लोग बोफोर्स और पेट्रोल पंप आवंटन के विवादों को भूल गए, उसी तरह कोल ब्लॉक आवंटन की गड़बड़ियों को भी भूल जाएंगे। ....गृह मंत्री श्री सुशील कुमार शिंदे।

कभी-कभी मंत्री जी बड़ी सच्ची बात कर देते हैं। अब आप लाख कहो कि टुच्ची बात है लेकिन मैं तो कहूँगा, सच्ची बात है। सच्ची बात जुबान पर आ ही जाती है। आखिर मंत्री जी भी तो आदमी हैं कब तक सोच समझ कर झूठ बोलते रहेंगे ? :) अब जब लोग टोक रहे हैं तो वे कह रहे हैं कि मेरी बात को गंभीरता से नहीं लिया जाना चाहिए। मैने तो मजाक में कहा था। मजाक में ही सच्ची बात निकलती है मुँह से। मजाक आदमी उसी पल कर पाता है जिस पल वह खुदा की नेमत से थोड़ा सच्चा हो जाता है। मन ही मन कह रहे होंगे, तुम नहीं भूलोगे तो हम भूलाने के लिए मजबूर कर देंगे।J कर भी दिया! पहले डीजल के दाम बढ़ाये, गैस सिलेंडर की सब्सिडी को आधा कर दिया जब उससे भी दाल गलती नहीं दिखाई दी तो मल्टीब्रांड खुदरा व्यापार में 51 प्रतिशत विदेशी पूँजी निवेश को मंजूरी दे दी! आओ वॉलमार्ट, आओ! तुम बाद में लूटोगे अभी तो अपनी नैया को डूबने से बचाओ।J

बाबा रामदेव! यह भारत की राजनीति है। आप जब तक काला धन, काला धन चिल्लाओगे तब तक इतने मिसाइल दाग दिये जायेंगे मुद्दों के कि आपको हार कर फिर अपना योगासन जमाना पड़ेगा। अनुलोम-विलोम आप क्या कराओगे ? अनुलोम-विलोम तो राजनीतिज्ञ कराते हैं। देखिये न, एक झटके में सभी की सांसे उल्टी चलने लगीं। जब उल्टी सांसे ले लेकर लोग मरने लगेंगे तब थोड़ी छूट दे देंगे। साँसे सीधी चलने लगेंगी। तब तक जनता भूल जायेगी कि कभी कोल घोटाला हुआ भी था। J

बुद्धिजीवी तो हैं ही हमेशा से कन्फ्यूज्ड ! कोई कहेगा, आखिर कब तक आप मुफ्त में सिलेंडर जलायेंगे ? कोई कहेगा, भारत को कोई नहीं मिटा सकता। यह 21 वीं सदी का भारत है इसे वॉलमार्ट क्या मिटायेगा ? उद्योग जगत तो समर्थन करेगा ही। उद्योग जगत मतलब बड़ा व्यापारी। बड़ा व्यापारी तो लाभ में रहेगा ही। मीडिया भी समाजसेवा कम उद्योग अधिक हो गया है। दुर्भाग्य से उस दिन भी मैं टीवी देख रहा था जब पत्रकार महोदय एक साइकिल वाले (जो कुछ बोलना चाहता था) को परे हटाकर कार वाले के पास माइक ले जाकर पूछ रहे थे...अब साल में छः सिलेंडर ही मिलेंगे, आपको यह खबर सुनकर कैसा लग रहा है ?” संजोग से कार वाला बुद्धिजीवी नहीं था। उसने समझ लिया कि यह घाटा हुआ है। दुखी होकर बोला, बहुत बुरा हुआ अब तो बजट बिगड़ जायेगा। कोई माननीय पत्रकार महोदय से पूछे कि बजट साइकिल वाले का अधिक बिगड़ेगा कि कार वाले का ? लेकिन नहीं, वे पत्रकार हैं तो हम से अधिक ही जानते होंगे। बजट तो अमीरों को ही बनाने-बिगाड़ने आता है। साइकिल वाले का कोई बजट होता ही नहीं। बजट तो कार वाले का ही बिगड़ सकता है। J

मीडिया को इतनी रोचक खबरें लगातार मिल रही हैं तो उन्हें लाभ मल्टी ब्रॉंड के आने से ही मिल सकता है, न आने से नहीं। मरेगी तो देश की गरीब जनता। छोटे व्यापारी तबाह हो जायेंगे। किसानों को ततकालीन नुकसान नहीं होगा लेकिन दूरगामी हैसियत उनकी भी एक मजदूर से अधिक की नहीं होगी। अभी तो मिट जायेंगे मध्यस्थ। मध्यस्थ! क्या चोर-उचक्के हैं जो इनका नाम इतने अनादर से लिया जाता है ? दलाल ! अरे, दलाली भी एक धंधा है, व्यापार है। मध्यस्थों को दलाल ऐसे कहते हो जैसे ये कोई रंडी के दलाल हैं! हमारे देश के सम्मानित व्यापारी हैं। किसानो से सस्ते दाम पर फल, अनाज खरीदकर आम जनता तक पहुँचाते हैं। यही काम तो ये विदेशी कंपनियाँ भी करेंगी। ये विदेशी हैं, बड़े व्यापारी हैं तो सम्मानित और हमारे देश के मध्यस्थ, दलाल ! पक्की रसीद नहीं देते! आपके व्यवस्था में कोई कमी है तो उसको सुधारो। उसको सुधारने के बजाय इनका गला ही रेतने पर लगे हो! ये हमारे देश के नागरिक हैं भाई। भूखे मर जायेंगे अगर ये विदेशी कंपनियाँ आ गईं देश में। ये लाभ कमाने आ रही हैं। ये छोटे व्यापारियों, मध्यस्थों का लाभ छीनने आ रही हैं। ये और इनके परिवार के युवा मजबूर होकर इन बड़ी विदेशी कंपनियों की नौकरी करेंगे। मालिक से नौकर हो जायेंगे एक झटके में। ऐसे ही आती है गुलामी किसी भी देश में। हे बुद्धिजीवी ! सीधा सा गणित आप समझ क्यों नहीं रहे हो ? छोटी घटना नहीं है खुदरा व्यापार में विदेशी पूँजी निवेश की अनुमति।

मैं टीवी पर समाचार नहीं देखता। सच कहूँ तो देख नहीं पाता। एक ही टीवी है घर में और एक ही बीबी । टीवी के चक्कर में बीबी को नाराज करना मेरे बस की बात नहीं और अपने कमरे में दूसरी टीवी लगाकर उसका खर्च उठाना फ़िजूल खर्ची लगती है और इतनी फ़िजूल खर्ची अपने औकात में नहीं। टीवी सीरीयल मेरे गले नहीं उतरते और समाचार देखना, देखना क्या सुनना भी पत्नी को पसंद नहीं। आज दुर्भाग्य से मौका मिल गया तो टीवी देखने लगा। गृह मंत्री श्री सुशील कुमार शिंदे जी का भाषण सुन लिया। तबीयत हरी हो गई। क्या सच बोल गये नेता जी ! बोफोर्स घोटाले की तरह कोलब्लॉक आबंटन को भी जनता भूल जायेगी ! थोड़ा डर भी गया। कहीं पत्नी ने सुन लिया तो कीचन से ही चीखने लगेंगी, देखा! कितनी बेशर्मी से बोल रहा है ? इसीलिए कहती हूँ, समाचार मत देखा करो।घबड़ाकर चैनल बदला तो दूसरे चैनल में समाचार आ रहा था...दिल्ली में एक ही दिन तीन महिलाओं को दहेज लोभियों ने मार डाला। मैं फिर सिहर गया। अपनी दो-दो बेटियाँ शादी योग्य हो चुकी हैं। पत्नी ने सुन लिया तो फिर चीखेंगी, आप समाचार देखते ही क्यों हैं? यही सब दिखाता है समाचार में। कहीं अच्छी बात भी हुई होगी! लेकिन कभी दिखाता है?” सच कहती है मेरी बीबी। समाचार देखता हूँ तो ऐसे ही पगलाने लगता हूँ। उसे मेरी बेचैनी की चिंता क्यों न हो ? प्यार करती है मुझ से। लेकिन यार ! कब तक हम मुँह मोड़ते रहेंगे देश में घट रही इन मक्कारियों से ? सब्जी खरीदने हमी को जाना है, गैस बुक कराने भी हमी को जाना है? बढ़ा हुआ दाम ! वह कौन देगा? पहले ही गैस एजेंसी वाला मुझे दौड़ा-दौड़ा कर 21 दिन के बदले एक महीने बाद एक सिलेंडर देता था। अब तो दो महीने में एक सहूलियत से दे दे उसी पर खुश होना है। लेकिन उनका क्या ? जो अभी भी नहीं चेत रहे हैं और जनसंख्या वृद्धि में अपना सहयोग दिये जा रहे हैं! उनके लिए तो यही कहना पड़ेगा.....

छाप रहे हो रोज कलेंडर जीयोगे किस हाल में ?
छः सिलेंडर मिलेगा भैया, एक कलेंडर साल में।
                            ............................................