29.8.16

जन्माष्टमी

हे कृष्ण!

इस बार भी
जिन्हे जन्माष्टमी का मजा लेना था
खूब लिया
झांकी सजाई तुम्हारी
गाई रासलीला भी
जिन्हे बाढ़-बारिश में परेशान होना था
खूब हुए
बच्चा भी जन्मा
नदी पार करते
नाव में
करते रहे क्रंदन
बचा लो अब हमे ईश्वर!

कंस
दिखाई नहीं दिया
मगर
सुनाई देता रहा
अट्टाहास

एक होता तो
दिखाई देता शायद
सभी के
अपने-अपने कृष्ण
सभी के
अपने-अपने कंस।

2 comments:

  1. कृष्ण तो गीता में कर्मण्येवाधिकारस्ते कह कर चले गए... उसे अपनाया जीवन में कंस ने... बढ़ते गए वे... बस हम चूक गए अपने कर्म से!!
    बहुत अच्छी रचना!!

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  2. कविता मे ब्यस्त भावना को शायद और स्पष्ट करने की आवष्यकता है .

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