25.8.18

लोहे का घर -47(एक प्रेम कथा)

फिफ्टी डाउन अपने सही समय पर चल रही थी। हम जहां बैठे थे वहीं एक युवा परिवार सफ़र कर रहा था। बीमार सी दिखने वाली पत्नी, तीन छोटे-छोटे मैले कुचैले वस्त्र पहने बच्चों को बमुश्किल संभाल पा रही थी। हर साल प्रकाशित होने कैलेंडर की तरह तीनों आपस में एक-एक वर्ष से बड़े छोटे होंगे। गोदी का बच्चा मां का दूध पी रहा था और बड़ी दो बेटियां बारी-बारी से खिड़की झांक रही थीं। हालांकि गोदी वाले बच्चे के सर के बाल भी लड़कियों की तरह बड़े-बड़े थे तो हमें लगा वह भी लड़की है! तभी  मेरे बगल में बैठे उनके जनक ने हंसते हुए गर्व से कहा..यह लरका है। मुंडन कराने जा रहे हैं बक्सर। देवी को बकरा चढ़ाएंगे। उधर ऐसी मानता है।

मैंने उसका उत्साह बढ़ाया..कोई बात नहीं जी! आपकी कहानी भी मेरी तरह है। पुत्र की कामना में कितने लोग पांच छः लड़कियां पैदा करते हैं, आपको तो भगवान ने दो के बाद ही पुत्र दे दिया। हमारी भी दो लड़कियां ऐसे ही एक के बाद एक हुईं। सब भगवान की कृपा है। हां, तीसरा बच्चा हमें पॉच साल बाद हुआ लेकिन यहां आपने थोड़ी जल्दी कर दी। आगे क्या इरादा है? 

वो खुलकर हंसने लगा। अब हमारे बीच से अपरिचितों वाला शील संकोच गायब हो चुका था। उसने अपनी राम कहानी सुनानी शुरु की और मैं दम साधे सुनता रहा.. 

मेरा नाम अजय है। भभुआ, बिहार का रहने वाला हूं। लुधियाना में सिलाई का काम करता था। साल २०१० की बात है। घर में शादी तय हो गई थी। पन्द्रह दिन बाद शादी/गौना था। मैं अपनी शादी के लिए घर जाने की तैयारी में था कि सिलाई के काम से हिमाचल जाना पड़ गया। लौटकर आया तो वहीं बुरी तरह फंस गया। 

अरे! क्या हुआ?

मेरे जिगरी दोस्त ने दगा दे दिया जी। मेरे नाम से एक सरदार जी से पचास हजार कर्जा ले लिया और सब पैसा लेकर फरार हो गया। मेरी मोटर सायकिल भी ले गया। लौटकर लुधियाना आया तो सब कुछ लुट चुका था। सरदार जी ने मुझे पाया और मैं फंस गया। 

शादी करने घर नहीं गए?

कैसे जाता? वो तो सरदार जी का भला हो कि उसने काम करने दिया और पैसा चुकाने का मौका दे दिया। 

फिर शादी ?

शादी टूट गई जी। पिताजी को शादी के लिए लिया पैसा भी लौटाना पड़ा। जब मैं घर गया ही नहीं, कोई खबर ही नहीं दिया तो घर वाले क्या करते? मेरे कठिन वक़्त में इसने (पत्नी को दिखाकर) बड़ा सहारा दिया!!!

तो! आप लोगों ने लव मैरेज की है? कितना पढ़े हैं आप लोग?

मैं तो अनपढ़ हूं जी, ये बी. ए. पास है!

अब चौंकने की बारी मेरी थी। इसीलिए इनका ये हाल किया आपने? एक के बाद एक तीन बच्चे! शरीर देख रहे हैं? फिर मैंने पत्नी की ओर रुख किया..और आपने क्या देख कर इनसे शादी की? 

बस हो गया जी। ये हमारी दुकान में आती थीं, धीरे धीरे हो गया। मैंने इनके खाने में कोई कमी नहीं करी। पूछिए इनसे.. मांस, मछली..जो यह कहे लाया कि नहीं? खाती ही नहीं है तो क्या करें? पत्नी भी अब खुल कर बतियाने लगी थीं.. दिमागी टेंशन से। इनको क्रोध बहुत आता है। अजय हंसकर कहने लगा.. क्रोध क्यों आता है, किस बात पर आता है? पूछिए ? खाना ही नहीं खाती। 

अब घर जा रहे हैं? घर वालों ने स्वीकार कर लिया? 

शुरु शुरु में तो बहुत दिक्कत हुई। घर से भी गए, ससुराल से भी गए। न इनका कोई, न मेरा। लेकिन धीरे धीरे सब ठीक हो गया। बक्सर में इनके पिताजी ने एक घर दिया है, वहीं जा रहे हैं। बकरा चढ़ाना है, लड़के का मुंडन है। अपने घर वालों को भी वहीं बुलाएंगे। काम मिला तो लुधियाना से कपड़ा लाकर वहीं सिलाई करेंगे। नहीं मिला तो फिर लुधियाना चले जाएंगे।

मुझे किसी से उसकी जाति पूछना असभ्यता लगती है, इसीलिए नहीं पूछा। बस इतना ही कहा..सब ठीक हो गया, अब धीरे धीरे और अच्छा होगा। आप बस एक काम करना। इनकी हालत देख रहे हो न? अब बच्चे पैदा मत करना। जितनी जल्दी हो, अपनी नसबंदी करा लो। अब अगर बच्चा हुआ तो यह नहीं बचेंगी। फिर तुम्हारे इन बच्चों का क्या होगा? स्वस्थ रहीं तो पढ़ी लिखी हैं, सभी बच्चों को पढ़ाकर बड़ा आदमी बना देगी। 

उसने मुझे दिल से आश्वासन दिया.. अबकी जाड़े में जरूर करा लुंगा।

मैंने भी उन्हें दिल से आशीर्वाद दिया.. ईश्वर तुम लोगों को सदा खुश रखे। 

मन तो कर रहा था इनका साथ न छूटे लेकिन #ट्रेन बनारस पहुंचने वाली थी, मुझे उतरना था। मैंने उन्हें फिर एक बार भरपूर निगाहों से देखा और हाथ हिलाकर अपनी राह पकड़ ली।

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