27.4.19

बनारस की गलियाँ-9(कर्फ्यू)

अच्छा है
बनारस की
पूरी एक युवा पीढ़ी
देखे बिना
जवान हो गई लेकिन
अपने किशोरावस्था में
हमने खूब देखे
कर्फ्यू।

गंगा तट के ऊपर फैले
पक्के महाल की तंग गलियों में
कर्फ्यू का लगना
बुजुर्गों के लिए
चिंता का विषय,
बच्चों/किशोरों/युवाओं के लिए
उत्सव के शुरू होने का
आगाज़ होता था!

स्कूलों में छुट्टी
सड़क के मोड़ पर
पुलिस का पहरा
बंदर
खो! करके भागते हैं जैसे
सड़क के मोड़ तक जाकर
पुलिस को चिढ़ाकर
भागते थे बच्चे
हमेशा
गुलजार रहती थीं
गलियाँ।

गलियों से उतर
गङ्गा इस पार से, उस पार तक
फैला पूरा आकाश,
अपना होता,
चन्द्रकलाओं की तरह
निखरने लगते
सभी गुण,
कहीं कंचे, कहीं गिल्ली डंडा, कहीं बैट-बॉल,
गलयों में ढूँढते
इमली के बीएँ,
सिगरेट या माचिस के खाली डिब्बे,
और भी
न जाने क्या, क्या,
न जाने
कैसे-कैसे खेल!

अखबारों में बिखरे
अमानवीय घटनाओं से बेखबर
कर्फ्यू बढ़ने की खबरों से खुश,
खतम होने की खबरों से
उदास हो जाते थीं
बनारस की गलियाँ।
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