आज की शाम
उमस भरी शाम
सूर्य
अस्त होने की तैयारी में
बादलों का कोई नामो निशान नहीं
शांत था तालाब का पानी
ठहरी-ठहरी पत्तियाँ
दमसाधे कर रही थीं
सूर्य के डूब जाने की
प्रतीक्षा
देखते ही देखते
डूब गया सूरज
उड़ चले
बगुले
पंछी तलाशने लगे
अपने-अपने
घोंसले
मगर यह क्या!
अचानक से आने लगी
उत्तर दिशा से
काले बादलों की सेना
देखते ही देखते
छा गये
काले बादल
लहलहाने लगे
धान के खेत
पूरब से पश्चिम तक
उमड़-घुमड़
छा गये
काले बादल
होने लगा
घनघोर अंधेरा
मैने कहा
भागोssss
........................
भीगल ना न ? बड़ा कस के बुन्निया आइल हौवे.
ReplyDeleteबड़ा कस के बुनियाँ आईल हो... भीग गइली चउचक।
Deleteकविता का उठान बहुत अच्छा है मगर कैमरा शब्द के प्रयोग ने इसे हल्का कर दिया । हो सके तो पुनर्विचार करें ।
ReplyDeleteसंतोष जी,
Deleteकविता तो लिखा ही नहीं। वैसे आपके आदेश का पालन कर दिया है।:)
बढ़िया ......
ReplyDeleteसभी कुछ....
भागने के सिवा :-)
सादर
अनु
जी,भागना ही बुरा था। कैमरे और मोबाइल को बचाने के चक्कर में भागना पड़ा।:(
Deleteसुंदर चित्र साथ में शब्द चित्र भी खींच दिया
ReplyDeleteसुंदर चित्रों के साथ वर्णन अच्छा लगा .मगर कैमरा शब्द नें चेहरे पर मुस्कराहट ला दी
ReplyDeleteये कौन चित्रकार है,
ReplyDeleteये कौSSSSन चित्रकार है...
ईश्वर के रंग निराले रे भैया..
Deleteदेख कर लगा चित्र खींचने का साथ-साथ आपका कैमरा बोलने भी लगा है !
ReplyDeleteबादल वाले फोटो बहुत अच्छे आए हैं। एकदम चकाचक।
ReplyDeleteअत्यधिक सुन्दर चित्र ...और उदगार भी .....
ReplyDeleteस्निग्ध धान आपके चित्रों में दे रहे हैं संदेस ....
प्रभु ने बस बदला है भेस ...
अँधेरे में भी धान श्वेत स्निग्ध लहलहाते .....
हम इनसे कुछ क्यों नहीं सीख पाते ...????
बहुत सार्थक पोस्ट ...
सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण ....!!
आँखें
Deleteदेखती हैं
फैले अँधेरे
नहीं देख पातीं
उगते उजाले।
पल-पल बदलते
मिले हैं नजारे
ये इक पल अंधेरे
ये इक पल उजाले।
कभी तो है गर्मी से
उमसाया मौसम
कभी ठंडी-ठंडी
हवा बह रही है
कभी धार में
डगमगाती है किश्ती
कभी तो मिले हैं
मन को किनारे।
जहाँ भीगना था
वहीँ काँपते हैं
जब था ठहरना
तभी भागते हैं
ढूँढे हैं हमने
झूठे सहारे।
धन्यवाद गाफिल भाई।
ReplyDeleteसाथ में कौन था ये कहीं नहीं बताया
ReplyDeleteखुद भागे और जिससे कहा भागो
उस भागते का फोटो क्यों नहीं लगाया
बाकी उत्तम है !!
कल्पना कीजिए की वो बहुत खूबसूरत था।:)
Deleteपहली बार पढ़ी
ReplyDeleteआपकी रचना
बहुत अच्छी लगी
पर
अकेले इसे
दुबारा पढ़ने से
मना करता है मेरा मन
सो लिये जा रहीं हूँ
इसे अपने साथ
नई-पुरानी हलचल में
पढ़ेंगे साथ-साथ
आप भी आइये न
इसी बुधवार को
आपकी पूर्व परिचित
नई-पुरानी हलचल में
सादर
यशोदा
मन तो अभी उड़कर आने का हो रहा है:) बुधवार तक की लम्बी प्रतीक्षा! ओह..!!
Deleteशुकराना नज़र करती हूँ
Deleteमैं तो चित्रों में ही खो गया।
ReplyDeleteजी, चित्रों में डूबाने के लिए ही शब्दों का जाल बिछाया था।:)
Deleteऔर आप सफल हुए .:)
Delete
ReplyDeleteभीग-भाग के भागते, आगे आगे श्याम ।
गोवर्धन को थामते, दें आश्रय सुखधाम ।
दें आश्रय सुखधाम, मगर वे हमें डुबाते ।
मनभावन यह चित्र, डूब के हम उतराते ।
प्राकृतिक हर दृश्य, देखता रात जाग के ।
हम को गए डुबाय, स्वयं तो गए भाग के ।।
धन्यवाद कविवर।
Deleteवाह! बहुत खुबसूरत फोटोग्राफ्स...
ReplyDeletesabhi kuch acche hai ...photo bho ....shabd bhi ...aur bhagne ki sacchaai bhi ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!
ReplyDeleteवैसे कास फूलने का समय आया, बारिश हो रही है तो किसान प्रसन्न ही होगा। पछेती की खेती इन बादलों की कृपा पर है!
पहले बारिश का मनोरम वर्णन और फिर भागो ..बहुत सुन्दर कही आपने..धन्यवाद जी
ReplyDeleteअद्भुत सर |
ReplyDeleteहाँ तो खोये हुवे थे आपके शब्द और कैमरे के चमत्कार में ... आपने कहा भागो ....
ReplyDeleteआनद तो लेने देते कुछ ... हा हा ... मज़ा आ गया ...
चित्रों से नजर नहीं हटती...शब्द भी चित्र ही हैं.
ReplyDeleteवाह इस बार तो कमाल कर दिया आपने......सही समय पर भागोssss
ReplyDeleteसुंदर चित्रों के साथ कविता बहुत अच्छी लगी....
ReplyDeleteप्रकृति के सुन्दर चित्रण के साथ सुन्दर जीवंत प्रस्तुति देख मन बादलों के ओट में छुपने लगा है ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
धन्यवाद कविता जी। मुझे तो भोपाल की बरसात से ईर्ष्या हो रही है आपकी पोस्ट पढ़कर।
Deleteअब जब आपने कह दिया कि यह कविता नहीं है तो फिर उसपर कुछ नहीं कहता.. वरना कुछ कहने की इच्छा थी.. और आपके फोटो फीचर के विषय में क्या कहूँ देवेन्द्र भाई.. मनमोहक ही कह सकता हूँ.. हमारे यहाँ भी ऐसा ही दृश्य है.. ऐसे में कह सकता हूँ कि आपकी पोस्ट साक्षात देखने को मिली..!! नैन जुड़ा गए, बस!!
ReplyDelete..आभार। वैसे बीच में..अनुपमा जी के कमेंट का उत्तर देते वक्त कविताई का मूड बन गया था।:) वैसे पता नहीं कविता क्या है! भावों की अभिव्यक्ति अगर कविता है तो यही कविता है। फिर आपका यह वाला लेख पढ़ने का मन हो रहा है...http://raj-bhasha-hindi.blogspot.in/search?updated-max=2012-09-09T09:35:00%2B05:30&max-results=2
Deleteबहुत सही!
ReplyDeleteशानदार चित्र!
नयनाभिराम तस्वीरें..
ReplyDeleteबेहद ख़ूबसूरत
सार्थक चित्रण .....बहुत खूब
ReplyDeleteBahut sundar rachana aur tasveeren!
ReplyDeleteवाह! कमाल की फोटो हैं. मजा आ गया कविता पढ़, फोटो देख. चलचित्र हो गया.
ReplyDeleteघुघूतीबासूती
खूबसूरत तस्वीरों की कहानी कही शब्द चित्रों ने !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सर!
ReplyDeleteसादर
मैंने कहा -बरसों राम धडाके से बुढ़िया मर जाए फाके से /आंधी आई मेह आया ,बड़ी बहु का जेठ आया /ये भैया पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोक गीत हैं जो बचपन में बहुत सुने थे कहावतें बने ये बोल ....रचना आपकी है अनमोल ,छायांकन बे -जोड़ .आपकी टिपण्णी का शुक्रिया भाई साहब !
ReplyDeleteवाह...शब्दों से ज्यादा खूबसूरत तस्वीरों ने प्रभावित किया मुझे....सुंदर
ReplyDeleteआपकी कविता आपके चित्र भी गा रहे हैं ।
ReplyDeleteबेहद सुंदर चित्र और कविता भी ।
पाणी बाबा आओ रे ,
ReplyDeleteकाकडी भुट्टा लाओ रे |
बहुत खबसूरत चित्रण |
चित्र कथा....क्या राग सजाया है..वाह!
ReplyDeleteवाह ! बेहद ख़ूबसूरत..
ReplyDeleteसच कह रहा हूँ..आज आपके ब्लॉग पर सिर्फ तस्वीरें देखने ही आया था..और बिलकुल निराश नहीं हुआ...बहुत सी तस्वीरें मिली और सब एक से बढ़कर एक....तस्वीरें आपके ब्लॉग की बहुत से USP में से एक है ;)
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