भारतीय रेल में सफ़र करते करते जिंदगी जीने के लिए जरूरी सभी गुण स्वतः विकसित होने लगते हैं। धैर्य, सहनशीलता, सामंजस्य आदि अगणित गुण हैं जो लोहे के घर में चंद्रकलाओं की तरह खिलते हैं। कष्ट में भी खुश रहने के नए नए तरीके ईजाद होते हैं। कोई तास खेलता है, कोई मोबाइल में लूडो या शतरंज। एक ही मिजाज के चार पांच लोग हैं तो पप्पू, पपलू भी खेल सकते हैं। लोहे का घर एक ऐसा विश्राम स्थल है जहां रहने वाले कोई काम नहीं करते बल्कि आराम से बैठकर काम करने वालों की खिल्ली उड़ाते हैं।
ट्रेन बहुत देर से वीरापट्टी स्टेशन पर रुकी है। पास के गांव में अखंड रामायण चल रहा है। बड़े सुर में सुंदर कांड का पाठ हो रहा है। संपुट है..दीन दयाय बिरज संभारी, हरहूं नाथ मम संकट भारी।
कल शाम #ट्रेन एक छोटे से स्टेशन पर देर से रुकी थी और पास ही गांव में अखंड रामायण चल रहा था। संपुट अच्छा लग रहा था.. हरहूं नाथ मम संकट भारी।
आज जब सोने की तैयारी कर रहा हूं तो सामने घर में अखंड रामायण चल रहा है और लाउड स्पीकर का मुंह अपनी तरफ है। पाठ करने वाले इतनी जल्दी जल्दी पाठ कर रहे हैं कि कुछ समझ में ही नहीं आ रहा, सिर्फ कान फाड़ू शोर के बीच तबला अजीब ढंग से टन टन बज रहा है। ऐसा लगता है पाठ करने वाले वाले ठेके पर बुलाए गए हैं जिन्हें रात भर में रामायण ख़तम करना है। बीच बीच में नया बेसुरा राग खूब खींच कर छेड़ते हैं और नए अंदाज में शोर करते हैं। सोच रहा हूं अगर सो नहीं पाया तो कल सुबह ट्रेन कैसे पकड़ाएगी?
अखंड रामायण का आज का संपुट है...
मंगल भवन अमंगल हारी, द्रवहूं सो दशरथ अजिर बिहारी।
और मैं मन ही मन जप रहा हूं...
हरहुं नाथ मम संकट भारी!
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नाल वाले डिब्बे नू बैठा है। हां हां चलने वाली है ट्रेन.. हां हां बैठ गई ठीक से, जगह मिल गई।
लोहे के घर की खिड़की पकड़े प्लेटफॉम पर खड़ी हैं दो औरतें और चार बच्चे। ट्रेन में चढ़ाने आया एक बन्दा खाला के हाथ में मोबाइल पकड़ा गया है। खाला कभी उठती है, कभी बैठ जाती है लेकिन खड़े/बैठे मोबाइल से बातें किए जा रही हैं। बीच बीच में छोड़ने आई महिलाओं और बच्चों को हाथ भी दिखा रही हैं .. हां हां ठीक हूं..चली जाऊंगी, अब रख मोबाइल। महिला अब मोबाइल वापस कर खिड़की पकड़े खड़ी महिलाओं और बच्चों से बातें करने लगीं। प्लेटफॉर्म पर धूप है। धूप में खड़ी महिलाओं के चेहरों को देख अब ऐसा लग रहा है कि उन्हें अब रेल पर क्रोध आ रहा है..चल क्यों नहीं रही यह ट्रेन? अभी कुछ देर पहले जितना समय बात करने मिल जाय कम है, कहने वाली महिलाएं ट्रेन के न चलने से व्यग्र हैं।
#ट्रेन चल दी! सभी के मुर्झाए चेहरे खिल उठे। लंबी गूंज सुनाई पड़ी... बा आ आ य, बा आ आ य।
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आज लौह पथ गामिनी के संचालक महोदय की कृपा से जल्दी घर आ गए। आ गए तो टी. वी. खोलने का समय मिल गया। शांति की तलाश में सबसे पहले दूर दर्शन समाचार लगाया। आदरणीय प्रधान मंत्री जी की नेपाल यात्रा विषयक जानकारी प्राप्त हुई। कूल कूल वातावरण में नेपाली विदेश मंत्री से साक्षात्कार और दूसरी अच्छी अच्छी बातें सुनकर कलेजे में ठंड पहुंची।
सफ़र की थकान मिटी तो जिस्म में कीड़ा कुलबुलाने लगा। चैनल बदलना शुरू किया। एक चैनल में किम और ट्रंप की मुलाकात के साथ किम के जूते का राज खोला जा रहा था। सुनते ही फूट लिए।
एक चैनल में कुछ राजनैतिक विद्वानों को जुटा कर मूर्खतापूर्ण प्रश्नों के माध्यम से कौआ कांव मचाया जा रहा था। हम गधे की तरह कितना सुनते!
आई पी एल लगा कर मैच देखने लगे। ऋषभ पंत ने धूम मचा रखी थी। पंत की बैटिंग देख मजा आ गया।
एन डी टी. वी. में रविश कुमार प्रधान मंत्री के भाषणों में जो कमी थी उसे ही हाईलाइट करते रहे। ऐतिहासिक झूठ न बोलने की सलाह दे रहे थे। कुल मिला कर हारे थके विपक्ष को अपनी बुद्धि से ऊर्जा दे रहे थे।
म्यूजिक चैनल लगाया तो चिकी बम बम वाला गाना एक्शन के साथ दिखाया जा रहा था। नई हीरोइनों के मटकते बम और हीरो का दम देख कर हम उलझन में पड़ गए। हम तो बम का कुछ और मतलब समझते थे, यहां कुछ और है! नए गानों के बोल याद नहीं रहते। हां, एक्शन जरूर कुछ दिन तक याद रहते हैं। कहने के अंदाज में फ़र्क होता है यह बात समझ में आ गई। वे बम में है दम.. कहते हैं, हम बनारसी इसी बात को सीधे तरीके से कहते हैं। हम कहते हैं तो गाली कहलाती है, फिलिम वाले कहते हैं तो गीत का मधुर अंतरा होता है!!!
अब इससे ज्यादा चैनल हम से देखा न गया। पचाने की भी एक सीमा होती है। शुभरात्रि।