tag:blogger.com,1999:blog-1858175786086885321.post6827101806519692660..comments2024-02-11T13:55:34.165+05:30Comments on बेचैन आत्मा: मन बैचैनदेवेन्द्र पाण्डेयhttp://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comBlogger20125tag:blogger.com,1999:blog-1858175786086885321.post-71079048355105421372013-09-21T19:21:12.114+05:302013-09-21T19:21:12.114+05:30बढ़िया है :)बढ़िया है :)Avinash Chandrahttps://www.blogger.com/profile/01556980533767425818noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1858175786086885321.post-17593496481627599342013-09-21T17:31:13.470+05:302013-09-21T17:31:13.470+05:30धन्यवाद।धन्यवाद।देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1858175786086885321.post-55628850066802820242013-09-21T17:30:33.682+05:302013-09-21T17:30:33.682+05:30यह मन ही तो है। कभी-कभी गुरूआई करने का मन होता है ...यह मन ही तो है। कभी-कभी गुरूआई करने का मन होता है भाई। लाख समझाता हूँ...<br /><br />मूरख क्यों करता गुरूआई?<br />एक गुरू सब चेरा पगले।<br /><br />..मगर नहीं मानता। कभी-कभी बहक जाता है।देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1858175786086885321.post-22655009344189070272013-09-21T15:05:29.565+05:302013-09-21T15:05:29.565+05:30ये आपने लिखा है ऐसा लगा जैसे कोई गुरु अपने शिष्य क...ये आपने लिखा है ऐसा लगा जैसे कोई गुरु अपने शिष्य को संबोधित कर रहा है……गहन और सार्थक |इमरान अंसारी https://www.blogger.com/profile/01005182448449326178noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1858175786086885321.post-51117995096056045752013-09-21T12:16:20.761+05:302013-09-21T12:16:20.761+05:30मन को कार्य मिलता रहेमन को कार्य मिलता रहेप्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1858175786086885321.post-9182384348934226502013-09-21T07:44:45.649+05:302013-09-21T07:44:45.649+05:30हाँ, यह भी एक योग है। हाँ, यह भी एक योग है। देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1858175786086885321.post-31757428024434440002013-09-21T07:43:30.857+05:302013-09-21T07:43:30.857+05:30तटस्थ कहां रह पाता है!तटस्थ कहां रह पाता है!देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1858175786086885321.post-52102717785047219352013-09-21T07:39:49.510+05:302013-09-21T07:39:49.510+05:30 यह जानकर खुशी हुई कि अब मेरी पोस्ट आपके डैशबोर्ड ... यह जानकर खुशी हुई कि अब मेरी पोस्ट आपके डैशबोर्ड तक पहुँचती रहेगी।...आभार आपका।देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1858175786086885321.post-30405476401681523322013-09-21T01:45:44.883+05:302013-09-21T01:45:44.883+05:30मन मस्त हुआ तब क्यूँ बोले ...मन मस्त हुआ तब क्यूँ बोले ...Smart Indian - अनुराग शर्माhttps://www.blogger.com/profile/00609348818544161042noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1858175786086885321.post-74535798657176738912013-09-20T22:53:19.071+05:302013-09-20T22:53:19.071+05:30मन की नियंत्रित करने की बजाए उसे लगा दो किसी दिशा ...मन की नियंत्रित करने की बजाए उसे लगा दो किसी दिशा में ... किसी सृजन में ... किसी शौंक में जिससे की उसको साध सको ... <br />शायद इसको ही मेडिटेशन भी कहते हैं ... <br />बहुत ही गहरा अध्यन ... दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1858175786086885321.post-3814310888890874572013-09-20T22:16:02.230+05:302013-09-20T22:16:02.230+05:30जी, सही है।जी, सही है।देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1858175786086885321.post-5973964865286717142013-09-20T14:42:12.490+05:302013-09-20T14:42:12.490+05:30मन के प्रति दुश्मनी रखने की क्या जरूरत आन पडी ? मन...मन के प्रति दुश्मनी रखने की क्या जरूरत आन पडी ? मन भटकता रहता है,यही उसका स्वभाव है.आदमी को चाहिये कि वो मन के स्वभाव को जाने,समझे-बूझे.अपने को तटस्थ रखते हुये मन के स्वभाव को देखते रहना चाहीये.मन जहां ले जाये वहीं चल पडने की जरूरत नहीं है.prem ballabh pandeyhttps://www.blogger.com/profile/16202190259689692899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1858175786086885321.post-38650123240576780252013-09-20T14:10:25.037+05:302013-09-20T14:10:25.037+05:30वाह ! बड़े काम की बातें !वाह ! बड़े काम की बातें !Anitahttps://www.blogger.com/profile/17316927028690066581noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1858175786086885321.post-77073013725600758232013-09-20T11:50:46.474+05:302013-09-20T11:50:46.474+05:30बहुत खूब,सुंदर विवेचना !
RECENT POST : हल निकलेगा...बहुत खूब,सुंदर विवेचना !<br /><br /><b>RECENT POST </b><a href="http://dheerendra11.blogspot.in/2013/09/blog-post_19.html?showComment=1379606058203" rel="nofollow">: हल निकलेगा</a>धीरेन्द्र सिंह भदौरिया https://www.blogger.com/profile/09047336871751054497noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1858175786086885321.post-32283968887748300052013-09-20T11:00:14.087+05:302013-09-20T11:00:14.087+05:30सुन्दर प्रस्तुति-
बेबाक विश्लेषण-
आभार आदरणीय-सुन्दर प्रस्तुति-<br />बेबाक विश्लेषण-<br />आभार आदरणीय-रविकर https://www.blogger.com/profile/00288028073010827898noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1858175786086885321.post-74472629300097247722013-09-20T10:09:08.948+05:302013-09-20T10:09:08.948+05:30इस मन को साधने के लिए ही तो सारे जतन है, लेकिन क्...इस मन को साधने के लिए ही तो सारे जतन है, लेकिन क्या करें पूरं पड़ते ही नहीं। अजित गुप्ता का कोनाhttps://www.blogger.com/profile/02729879703297154634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1858175786086885321.post-4299040647086739312013-09-20T07:25:29.760+05:302013-09-20T07:25:29.760+05:30कर्म प्रबल .....कर्म प्रधान ....सार्थक पोस्ट ....!...कर्म प्रबल .....कर्म प्रधान ....सार्थक पोस्ट ....!!<br />शुभकामनायें ।Anupama Tripathihttps://www.blogger.com/profile/06478292826729436760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1858175786086885321.post-90678192569863820102013-09-20T01:15:31.919+05:302013-09-20T01:15:31.919+05:30कितनी सुन्दर विवेचना है...!
वाह!कितनी सुन्दर विवेचना है...!<br />वाह!अनुपमा पाठकhttps://www.blogger.com/profile/09963916203008376590noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1858175786086885321.post-47574488763148321962013-09-19T23:24:24.178+05:302013-09-19T23:24:24.178+05:30बहुत ही बढ़िया संस्करण है।
अपने माहौल में रम जाना...बहुत ही बढ़िया संस्करण है। <br />अपने माहौल में रम जाना है। मन रूपी जिन्न पर मस्तिस्क रूपी सरदार का साया बना रहना बहूत ही जरुरी है। बुद्धिजीवी लोग अपने मन के घोड़े को खुला दौड़ने को छोड़ देते है और उसे नियंत्रित करने के लिए मस्तिस्क का ही इस्तेमाल करते है। कभी - कभी मन को जिन्न की तरह और कभी घोड़े की तरह भी दौड़ाते रहना चाहिए। <br />गीता का ज्ञान अत्यधिक आनंद पहुँचाने वाला है। इस ज्ञान का आनंद तभी आता है जब इसकी दौड़ के साथ साथ आपके मन का घोडा भी शब्दों के संग दौड़ रहा हो। <br /><br />संयम अतिआव्स्यक है। पौरुष इसी से प्राप्त होता है। ज्ञान चक्षुhttps://www.blogger.com/profile/11867731493633776283noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1858175786086885321.post-4885122304749617612013-09-19T23:20:22.427+05:302013-09-19T23:20:22.427+05:30सार्थक पोस्ट...मन क्रियाशील बना रहे यह जरूरी है|सार्थक पोस्ट...मन क्रियाशील बना रहे यह जरूरी है|ऋता शेखर 'मधु'https://www.blogger.com/profile/00472342261746574536noreply@blogger.com