हम भंडारी स्टेशन के प्लेटफार्म क्रमांक 1 पर पीछे की तरफ एक बेंच में अकेले बैठकर दून की प्रतीक्षा कर रहे हैं। ट्रेन बांयी ओर से दायीं ओर जाएगी। फिलवक्त एक मालगाड़ी बाएं से दाएं जा रही है। मालगाड़ी में कोयला नहीं, चूना लदा प्रतीत हो रहा है क्योंकि इसके बाहर के डिब्बों में चूना लगा है। निश्चित तौर पर नहीं कह सकता कि मालगाड़ी के डिब्बों में चूना ही लदा है। हो सकता है यह किसी को चूना लगाकर भाग रही हो! अपने देश में मालगाड़ी व्यक्तिगत सम्पत्ति तो नहीं है, सरकारी है तो सरकार को ही चूना लगाकर भाग रही होगी, और किसी को चूना लगाना रेलवे के वश में नहीं है।
सामने प्लेटफॉर्म क्रमांक 2 और 3 के बीच भोले भंडारी का मन्दिर शांत है, कोई भीड़ नहीं दिख रही। मन्दिर के आगे-पीछे बरगद और पीपल का एक-एक घना वृक्ष है। शाम 8 बजे के आसपास यहाँ भक्त जुटते हैं और घण्टे-घड़ियाल के साथ भोलेनाथ की आरती भी करते हैं। यह वही समय है जब गोदिया के आने का समय होता है। जब ऑफिस में काम की वजह से देर हो जाती थी तो कई बार गोदिया से भी बनारस गए हैं। गोदिया शाम 10 बजे के आसपास बनारस पहुँचाती है, कभी-कभी तो रात के 12 भी बज जाते थे। कोरोना के बाद ट्रेन का सफर कम हो चुका है। मेरे भाग्य से दून के यात्रियों की किस्मत फूटी, लेट हुई तो शाम 5 और 6 के बीच मिल जाती है, वरना बनारस जाने/आने के लिए नियमित अपने समय पर मिलने वाली ट्रेन 49 अप/50डाउन बन्द हो चुकी है। अब बस का ही सहारा है। किसी की किस्मत जागती है तो उसी पल किसी की किस्मत फूट रही होती है। आज दून के यात्रियों की किस्मत फूटी है तो हमको मिलने की संभावना जगी है।
अब मेरी बगल में एक रोज के यात्री आकर बैठ चुके हैं और मुझे लिखने में बार-बार डिस्टर्ब कर रहे हैं। वही प्रश्न पूछ रहे हैं जिनके उत्तर उन्हें भी मालूम है। ऐसा अक्सर होता है। कोई आपको चाय पीते हुए देखता है तो झट से पूछने लगता है, "चाय पी रहे हैं?" आप नहाने जा रहे होते हैं तो कोई झट से पूछ बैठता है, "नहाने जा रहे हैं?" ऐसे ही खाना खाते समय...ऐसे ही मुझे मोबाइल में लिखता देख, मेरे मित्र मुझसे पूछ हैं, "लोहे का घर लिख रहे हैं?" इतने में रुक जाते तो गनीमत थी, पूछ रहे हैं, "क्या लिख रहे हैं?, बरगद/पीपल लिख रहे हैं?"
अभी दून खेतासराय में खड़ी है। भले इस स्टेशन का नाम 'भंडारी स्टेशन' हो, कब आएगी यह भोले भंडारी भी नहीं बता सकते। वही बताएगा जो घोषणा करता है, वह भी कब घोषणा करेगा, उसे भी नहीं पता। अब रोज के तीन यात्री और आ चुके हैं, अब यहाँ बैठकर लिखना संभव नहीं लग रहा। एक मालगाड़ी बाएं से दाएं जा रही है। मतलब अपनी दून को लेट करने में इसी का हाथ लगता है। मैने एक बार कितना सत्य लिखा था...हर लेट ट्रेन के आगे एक मालगाड़ी होती है! अब मालगाड़ी खड़ी हो गई है और दून के आने की घोषणा हो रही है। एक नाटा आदमी बड़े कान वाला बकरा लेकर अभी प्लेटफार्म पर आया है, आप भी देख लीजिए कितने बड़े-बड़े कान हैं। 😊ट्रेन आ गई अब चढ़ना पड़ेगा, अपने लिए शुभयात्रा बोलना पड़ेगा, जै भोले भंडारी की।
..@देवेन्द्र पाण्डेय।
रोचक
ReplyDeleteशुभ यात्रा
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबढ़िया! कम्यूटिंग का सदुपयोग ब्लॉग पोस्ट लिखने में कर रहे हैं पांड़ेजी।
ReplyDeleteएक ठो डिक्टाफोन खरीद लीजिये। अपनी और परिवेश की आवाजें भर कर पॉडकास्ट करने का प्रयास करिये।
इतना शानदार ऑब्जर्वेशन है तो आप टॉप क्लास पॉडकास्टर बन जायेंगे!