नारदः
नारायण ! नारायण !
विष्णुः
कहिए मुनिवर क्या समाचार है ?
नारदः
आप तो अंतर्यामी हैं प्रभो !
विष्णुः
हस्तिनापुर का क्या हाल है ?
नारदः
कैसी हस्तिनापुर प्रभु ?
पृथ्वी में कोई हस्तिनापुर नहीं है।
लगता है आप नींद में थे।
विष्णुः
हाँ, जरा आँख लग गई थी। क्या प्रहर हुआ ?
नारदः
सदियाँ गुजर गईं।
भरतवंशियों के देश भारत वर्ष में मुगलों का साम्राज्य है।
आप पूछ रहे हैं क्या प्रहर हुआ !
अनर्थ हो चुका है प्रभु।
विष्णुः
शांत मुनिवर ! शांत ! मैं जरा ध्यान लगाता हूँ।
नारदः
नारायण ! नारायण !
बहुत लम्बा ध्यान लगा लिया आपने।
अब जागिए प्रभु !
क्या देखा आपने ?
विष्णुः
शांत मुनिवर।
बड़ा ही रोमांचक दृश्य था।
आपने नाहक मेरा ध्यान भंग कर दिया।
भारतवर्ष में मुगलों का नहीं अब अंग्रेजों का साम्राज्य है।
गाँधी मेरी प्रेरणा से अंग्रेजों से संघर्ष कर रहे हैं।
नारदः
आपकी प्रेरणा से !
आपने प्रेरणा कब दी प्रभु ?
आप तो ध्यान मग्न थे !
विष्णुः
मुनिवर,
मैनें जो उपदेश महाभारत के समय अर्जुन को दिए थे,
उसे भरतवंशियों ने मंत्र बना लिया है। जिसे वे गीता कहते हैं ।
उसी से प्रेरित होकर गाँधी संघर्ष कर रहे हैं।
कितने समझदार हैं मनुष्य !
जानते हैं कि मैं बार-बार अवतार नहीं लुंगा।
नारदः
किन्तु प्रभु..........
विष्णुः
शांत मुनिवर !
मुझे ध्यान लगाने दीजिए।
बड़ा ही रोमांचक दृश्य है।
नारदः
नारायण ! नारायण !
जागिए प्रभु !
मैं स्वयम् धरती का भ्रमण कर आया हूँ ।
सर्वत्र हाहाकार मचा है।
लोग एक-दूसरे के रक्त के प्यासे हो चुके हैं ।
जागिए प्रभु।
विष्णुः
शांत मुनिवर, शांत !
आप बार-बार मेरा ध्यान भंग क्यों कर देते हैं ?
कितना रोमांचक दृश्य था !
मनुष्य अद्भुत हथियारों से लड़ रहे हैं !
ऐसे हथियारों की तो मैने कल्पना भी नहीं की थी।
मेरा सुदर्शन जब तक एक एक सर काटेगा
तब तक लाखों मनुष्य क्षण भर में कालकवलित हो चुके होंगे।
आहा ! कैसा अद्भुत प्राणी है मनुष्य !
नारदः
नारायण ! नारायण !
यह आपको क्या हो गया है प्रभु ?
आप तो मनुष्यों का गुणगान कर रहे हैं !
नैतिकता का सर्वत्र पतन हो चुका है।
लोग भांति-भांति की व्याधियों से ग्रस्त हैं।
सर्वत्र दुर्योधन की सत्ता है ।
पाण्डवों का नामोंनिशान मिट चुका है
और आप कह रहे हैं
कैसा अद्भुत प्राणी है मनुष्य !
विष्णुः
कैसी नैतिकता मुनिवर ?
यह तो मतों पर निर्भर करता है।
यह तो एक विचार है।
जिस विचार को मानने वाले अधिसंख्य होंगे
वही विचार सर्वोत्तम कहलाएगा।
यही युग धर्म है।
एक समय धरती पर सत्य के मानने वालों का बहुमत था।
मैंने अवसर देख कर अवतार लिया और उनका देवता बन बैठा।
आज तो असत्य को मानने वालों का बहुमत है।
मेरे सत्य के उपदेश व्यर्थ हैं।
मेरे विचार अब रूढ़ीवादी मूर्खों की श्रेणी में गिने जाएंगे।
नारदः
नारायण ! नारायण !
आप पुन्हः अवतार लीजिए प्रभु।
पृथ्वी की रक्षा कीजिए प्रभु।
विष्णुः
शांत मुनिवर ! शांत !
मेरे अवतार लेने पर तुम्हें और भी कष्ट होगा।
लेकिन तुम्हारा विचार उच्चकोटि का है।
यही अवसर है।
मुझे अवश्य अवतार लेना चाहिए।
किन्तु अब मैं
पाण्डवों की ओर से युध्य नहीं करूँगा।
मैं मूर्ख नहीं हूँ।
अब तो मैं
कौरवों की ओर से युध्य कर
नैतिकता वादी मनुष्यों का सफाया करूँगा।
ताकि पृथ्वी पर मेरी जय जयकार होती रहे।
यह तो बहुमत का गणित है
और मुझे
देवता के पद पर बने रहना रहना है।
नारदः
नारायण ! नारायण !
आपने तो मेरी आँखें खोल दीं प्रभु।
चिर निंद्रा में तो मैं ही सो रहा था।
आपकी जय हो !
आपकी जय हो !
आपकी जय हो !
नारायण ! नारायण !
विष्णुः
कहिए मुनिवर क्या समाचार है ?
नारदः
आप तो अंतर्यामी हैं प्रभो !
विष्णुः
हस्तिनापुर का क्या हाल है ?
नारदः
कैसी हस्तिनापुर प्रभु ?
पृथ्वी में कोई हस्तिनापुर नहीं है।
लगता है आप नींद में थे।
विष्णुः
हाँ, जरा आँख लग गई थी। क्या प्रहर हुआ ?
नारदः
सदियाँ गुजर गईं।
भरतवंशियों के देश भारत वर्ष में मुगलों का साम्राज्य है।
आप पूछ रहे हैं क्या प्रहर हुआ !
अनर्थ हो चुका है प्रभु।
विष्णुः
शांत मुनिवर ! शांत ! मैं जरा ध्यान लगाता हूँ।
नारदः
नारायण ! नारायण !
बहुत लम्बा ध्यान लगा लिया आपने।
अब जागिए प्रभु !
क्या देखा आपने ?
विष्णुः
शांत मुनिवर।
बड़ा ही रोमांचक दृश्य था।
आपने नाहक मेरा ध्यान भंग कर दिया।
भारतवर्ष में मुगलों का नहीं अब अंग्रेजों का साम्राज्य है।
गाँधी मेरी प्रेरणा से अंग्रेजों से संघर्ष कर रहे हैं।
नारदः
आपकी प्रेरणा से !
आपने प्रेरणा कब दी प्रभु ?
आप तो ध्यान मग्न थे !
विष्णुः
मुनिवर,
मैनें जो उपदेश महाभारत के समय अर्जुन को दिए थे,
उसे भरतवंशियों ने मंत्र बना लिया है। जिसे वे गीता कहते हैं ।
उसी से प्रेरित होकर गाँधी संघर्ष कर रहे हैं।
कितने समझदार हैं मनुष्य !
जानते हैं कि मैं बार-बार अवतार नहीं लुंगा।
नारदः
किन्तु प्रभु..........
विष्णुः
शांत मुनिवर !
मुझे ध्यान लगाने दीजिए।
बड़ा ही रोमांचक दृश्य है।
नारदः
नारायण ! नारायण !
जागिए प्रभु !
मैं स्वयम् धरती का भ्रमण कर आया हूँ ।
सर्वत्र हाहाकार मचा है।
लोग एक-दूसरे के रक्त के प्यासे हो चुके हैं ।
जागिए प्रभु।
विष्णुः
शांत मुनिवर, शांत !
आप बार-बार मेरा ध्यान भंग क्यों कर देते हैं ?
कितना रोमांचक दृश्य था !
मनुष्य अद्भुत हथियारों से लड़ रहे हैं !
ऐसे हथियारों की तो मैने कल्पना भी नहीं की थी।
मेरा सुदर्शन जब तक एक एक सर काटेगा
तब तक लाखों मनुष्य क्षण भर में कालकवलित हो चुके होंगे।
आहा ! कैसा अद्भुत प्राणी है मनुष्य !
नारदः
नारायण ! नारायण !
यह आपको क्या हो गया है प्रभु ?
आप तो मनुष्यों का गुणगान कर रहे हैं !
नैतिकता का सर्वत्र पतन हो चुका है।
लोग भांति-भांति की व्याधियों से ग्रस्त हैं।
सर्वत्र दुर्योधन की सत्ता है ।
पाण्डवों का नामोंनिशान मिट चुका है
और आप कह रहे हैं
कैसा अद्भुत प्राणी है मनुष्य !
विष्णुः
कैसी नैतिकता मुनिवर ?
यह तो मतों पर निर्भर करता है।
यह तो एक विचार है।
जिस विचार को मानने वाले अधिसंख्य होंगे
वही विचार सर्वोत्तम कहलाएगा।
यही युग धर्म है।
एक समय धरती पर सत्य के मानने वालों का बहुमत था।
मैंने अवसर देख कर अवतार लिया और उनका देवता बन बैठा।
आज तो असत्य को मानने वालों का बहुमत है।
मेरे सत्य के उपदेश व्यर्थ हैं।
मेरे विचार अब रूढ़ीवादी मूर्खों की श्रेणी में गिने जाएंगे।
नारदः
नारायण ! नारायण !
आप पुन्हः अवतार लीजिए प्रभु।
पृथ्वी की रक्षा कीजिए प्रभु।
विष्णुः
शांत मुनिवर ! शांत !
मेरे अवतार लेने पर तुम्हें और भी कष्ट होगा।
लेकिन तुम्हारा विचार उच्चकोटि का है।
यही अवसर है।
मुझे अवश्य अवतार लेना चाहिए।
किन्तु अब मैं
पाण्डवों की ओर से युध्य नहीं करूँगा।
मैं मूर्ख नहीं हूँ।
अब तो मैं
कौरवों की ओर से युध्य कर
नैतिकता वादी मनुष्यों का सफाया करूँगा।
ताकि पृथ्वी पर मेरी जय जयकार होती रहे।
यह तो बहुमत का गणित है
और मुझे
देवता के पद पर बने रहना रहना है।
नारदः
नारायण ! नारायण !
आपने तो मेरी आँखें खोल दीं प्रभु।
चिर निंद्रा में तो मैं ही सो रहा था।
आपकी जय हो !
आपकी जय हो !
आपकी जय हो !
यही अवसर है।
ReplyDeleteमुझे अवश्य अवतार लेना चाहिए।
किन्तु अब मैं
पाण्डवों की ओर से युध्य नहीं करूँगा।
मैं मूर्ख नहीं हूँ।
अब तो मैं
कौरवों की ओर से युध्य कर
नैतिकता वादी मनुष्यों का सफाया करूँगा।
ताकि पृथ्वी पर मेरी जय जयकार होती रहे।
यह तो बहुमत का गणित है
और मुझे
देवता के पद पर बने रहना रहना है।
देवेन्द्र भाई,
सत्ता का गणित आखिर कर गीता-गणित पर भरी पद ही गया, अब विष्णु को कौन गीता ज्ञान देगा, नारद जी तो उनकी चाटुकारिता कर रहे हैं, मानवीय चमचों की तरह. अर्जुन को बुलाना होगा, जो गुड से रह गए गुरु को शक्कर बने चेले के रूप में गीता ज्ञान देना ही होगा, वर्ना एक दुर्योधन ही काफी है, फिर अवतारी का क्या काम......
कुल मिला कर रचना काफी रोचक रही.
हार्दिक बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
kya baat hai!
ReplyDeleteati sunder rachna
bahut bdhiya .
ReplyDeleteshubhkamnaye
वाह क्या बात है आपने तो विष्णु जी को ही चक्कर मे डाल दिया..अरे स्वर्ग मे डेमोक्रेसी तो नही आ गयी कि चुनाव होने वाले हैं.
ReplyDeleteI dont like this poem....one should not make devata also a man like creature...or he/her should first declair that ,he/she dont believe the truth of devata.
ReplyDeletep.b.pandey
Sorry for mistake.Above, he/she should be written ,instead of he/her.
ReplyDeletepbpandey
समय की बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति !शुभकामनायें !
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