शाम जब बारिश हुई
झम झमा झम ... झम झमा झम ....झम झमा
झम ... झम।
मैं न भीगा ... मैं न भीगा ..... मैं न भीगा
तान कर छतरी चला था
मैं न भीगा।
भीगी सड़कें, भीगी गलियाँ, पेड़-पौधे, सबके घर
आंगन
और वह भी, नहीं था जिसका जरा भी, भीगने का मन
मैं न भीगा ... मैं न भीगा .... मैं न भीगा
तान कर छतरी चला था
मैं न भीगा।
चाहता बहुत था भीग जाऊँ....
झरती हुई हर बूँद की स्वर लहरियों में उतराऊँ......
टरटराऊँ
फुदक उछलूँ
खेत की नव-क्यारियों में
कुहुक-कुहकूँ बनके कोयल
आम की नव डालियों में
झूम कर नाचूँ, जैसे नाचते हैं मोर वन में
उड़ जाऊँ
साथ लाऊँ
एक बदली
निचोड़ूँ तन पे अपने
भीग जाऊँ
तरबतर हो जाऊँ ....
हाय लेकिन मैं न भीगा !
सोचता ही रह गया
देखता ही रह गया
फेंकनी थी छतरिया
तानता ही रह गया
सामने बहता समुंदर
एक कतरा पी न पाया
उम्र लम्बी चाहता था
एक लम्हां जी न पाया
तानकर छतरी चला था
मोह में मैं पड़ा था
मुझसे मेरा मैं बड़ा था
मैं न भीगा .... मैं न भीगा .... मैं न भीगा।
शाम जब बारिश हुई
प्रेम की बारिश हुई
मैं न भीगा ...मैं न भीगा ...मैं न भीगा