13.6.10
बहत्तर वर्षीय बुजुर्ग
धूप से उज्ज्वल सफ़ेद बाल
गाल
जैसे कश्मीरी सेव
लाल-लाल
मार्निंग वॉक में मिले
एक बहत्तर वर्षीय बुजुर्ग
अपनी धुन में मस्त
तेज थी उनकी चाल !
मैंने छेड़ा...
श्रीमान,
वृद्ध होकर भी आप दिखते हैं जवान !
अपने चिर युवा होने का राज बताइये ?
जरा धीरे चलिए
मुझे यूँ न दौड़ाइए !
अँधेरा छटते ही
बूढ़ा सूरज
चिड़ियों की तरह चहचहाने लगा
सामान्य परिचय के बाद
अपनी कहानी और जीवन दर्शन
हँसते हुए
यूँ सुनाने लगा..
पाँच वर्ष पहले
पत्नी का स्वर्गवास हो गया
अकेला हूँ, विश्वास हो गया.
एक वर्ष पहले
तीसरा सबसे छोटा बेटा भी
अपने दो बड़े भाइयों की तरह
बहू की आँखों का तारा हो गया
अपना घर बसा कर
गृहस्थी का मारा हो गया
देखते ही देखते
बहुत बड़ा हो गया
अपने पैरों पर खड़ा हो गया .
दो बेटियाँ थीं
दोनों की शादी कर दी
अब घर में कोई शोर नहीं है
सर में कोई बोझ नहीं है
प्रभु भजन में कोई रोक नहीं है
सभी मुझे अपने घर बुलाते हैं
मगर मैंने सभी से कह दिया है
यहीं रहूँगा .
बड़ी मेहनत से
तीस साल पहले यहाँ घर बनाया था
इसमें मेरी पत्नी की यादें बसती हैं
इसमें मेरे बच्चों की
मौन किलकारियाँ गूँजती हैं
इसकी हर ईंट
मेरे संघर्ष की सीमेंट से जुडी है
इसे छोड़कर कहीं नही जाऊँगा .
यहाँ हर तरफ मौज ही मौज है
जितना जीना था जी लिया
अब तो हर सांस बोनस है
मैं हर पल
जिंदगी का मजा ले रहा हूँ
ईश्वर को धन्यवाद दे रहा हूँ
अच्छा, अब चलूँ ...!
हर रोज इस मार्ग से प्रवेश करता हूँ ..
नमस्कार !
हाँ, हाँ, जानता हूँ.....
बाग में प्रवेश करने का
वह छोटा और सीधा रास्ता है
मगर आदत से लाचार हूँ
अपने द्वारा निर्धारित मार्ग और सिद्धांतों पर ही चलना पसंद करता हूँ
नमस्कार.....!!
इतना कह कर
मुस्कुराते, हाथ हिलाते,
वे चले गए
मैं अपलक
देर तक
उन्हें जाते देखता रहा .
ठीक वैसे ही
जैसे कोई मझधार में फंसा व्यक्ति
किनारों को
हसरत भरी निगाहों से देखता है.
( चित्र गूगल से साभार )
Impressive!
ReplyDeleteThis comment has been removed by a blog administrator.
ReplyDeleteमुझे तो यूं लगा की जैसे यह संवाद अतीत और भविष्य के दरम्यान चल रहा हो !
ReplyDeleteप्रसन्नचित्त जीवन का यह एक सूत्र और थमा दिया आपने ...
ReplyDeleteवाह! जय हो।
ReplyDeleteबड़ी ही सहजता से संवादों का आदान प्रदान आप ने कविता में ढाल दिया
ReplyDeleteये आज के कुछ बुज़ुर्गों का सच है जो उन की positive सोच के सामने हार जाता है
बहुत अच्छी रचना
aise vyktitv chap chod hee jate hai......
ReplyDeletehum sabhee se share karane ke liye dhanyvad........
बहुत शानदार अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteसही कह रहे हैं। बहुत बार बेटे बहू चाहते हैं तो भी ये वृद्ध जन अपना घोंसला नहीं छोड़ते। उनके लिए यह ठीक भी है।
ReplyDeleteप्रेरणा देती रचना। अमेरिका निवास के दौरान चाहे आपके ब्लाग पर नही आ सकी मगर आपके ब्लाग का नाम रोज़ दिमाग मे और जुबान पर घूमता था वो यूँ कि मेरी नातिन बहुत शरारती है बहुत कम सोती है सोने से कतराती है तो मै उसे बैचैन आत्मा कह कर बुलाती थी। कई बार किसी चीज़ का नाम ही उसकी अहमियत बढा देता है। शुभकामनायें
ReplyDeleteयहाँ हर तरफ मौज ही मौज है
ReplyDeleteजितना जीना था जी लिया
अब तो हर सांस बोनस है
मैं हर पल
जिंदगी का मजा ले रहा हूँ
ईश्वर को धन्यवाद दे रहा हूँ
इन्ही पंक्तियों में जिंदगी का फलसफा है ।
जो इसे समझ लेता है वही सुखी होता है , चेहरे पर लाली लिए हुए ।
सुन्दर प्रस्तुति , सरल शब्दों में ।
चित्र देखकर भी सकून सा मिला है ।
कृपया हैडर में लगे चित्र को यदि थोडा छोटा कर दें , ताकि पूरा चित्र फ्रेम में आ जाये तो बहुत आनंद आएगा ।
हमें तो देखकर ऐसा लगता है जैसे अंतरिक्ष से पृथ्वी का नज़ारा देख रहे हों ।
बड़ी मेहनत से
ReplyDeleteतीस साल पहले यहाँ घर बनाया था
इसमें मेरी पत्नी की यादें बसती हैं
इसमें मेरे बच्चों की
मौन किलकारियाँ गूँजती हैं
इसकी हर ईंट
मेरे संघर्ष की सीमेंट से जुडी है
इसे छोड़कर कहीं नही जाऊँगा ... yahi prapy hai
bahut sundar
ReplyDeleteसुन्दर अति -सुन्दर.वाह पढकर आनंद आ गया.मगर अभी से इतनी हसरत भरी नज़रों से किनारोंको देखना छोड दीजिये.
ReplyDeleteअगर खुदा ने चाहा और कुछ ब्यायाम नियमित रूप से करना शुरू करें तो क्या पता आप भी किनारे नजर आयें भविष्य में.
हां, निश्चय ही, यही सही नजरिया जीने का है। निश्चय ही।
ReplyDeleteबहुत खूब ... जीवन व्रतांत में बहुत उपयोगी बात सीखा दी आपने ... सच में जीवन भरपूर जीना चाहिए ... अपने नियमों पर जीना चाहिए ... अच्छी रचना ..
ReplyDelete@डा० साहब...
ReplyDeleteछोटा करने के चक्कर में हैडर का चित्र गायब हो गया. एक घंटे लगा कर ढूँढा तो वैसा नहीं लगा जैसा आप चाहते थे..! क्या करूँ अभी सीख रहा हूँ न.
जीवन को अपनी शर्तों पर जीना व अन्ततः स्वयं से सन्तुष्ट हो पाना अपने आप में एक बड़ी बात है । प्रेरणास्पद कविता ।अच्छी लगी ।
ReplyDeleteहर साँस बोनस है । वाह ।
ReplyDeleteबहुत लाजवाब, अब तो इन्सान को अपने आप में ही खुश रहना सीखना होगा.
ReplyDeleteआपको इस पोस्ट के लिए बोनस पॉइंट मिलना चाहिए.
ReplyDeleteधन्यवाद.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
ठीक वैसे ही
ReplyDeleteजैसे कोई मझधार में फंसा व्यक्ति
किनारों को
हसरत भरी निगाहों से देखता है.......बहुत लाजवाब
पीढियाँ प्रेरणा लें . व्यवहारिक पोस्ट ।
ReplyDeleteप्रशंसनीय ।
ek sikh hai aur satarakata bhi .achchhi rachna .
ReplyDeleteMy mother left us in April 2007. Since then my father is living and justifying both the roles . He is loving and guiding us,as my mother used to do. Dad thinks that his children are still innocent, though we four are all married and well settled.
ReplyDeleteI am miles away from him, yet my presence is always felt there and when we visit there, it becomes so festive.
If a son becomes 'aankh ka tara' of his wife, then one should not forget that few decades ago father became the shining star in mom's eyes.
History repeats itself !
Daaddy goes for walk and cooks for himself. Now a days my father is engaged in construction [rather extension] of his house at the age of 70.
And who is helping him? His children of course ! My elder sister and brother are his strong support. I also do not fail to add my two cents while talking to dad on phone.
My Dad says...." Mere bachhe muul hain aur mere damaad suud , grand children are 'Bonus' indeed.
I regularly go for morning walk. One elderly person eagerly waits for me to greet him daily with a smile. . My greetings rejuvenates him and i see my Dad in him.
A proud Daughter,
Divya
http://zealzen.blogspot.com/
पोज़िटिव और बेहतरीन पोस्ट....."
ReplyDeletenice post
ReplyDeleteदिव्या जी..आपकी टिप्पणी ने कविता के उस अंश को भी अभिव्यक्ति दी है जिसे सिर्फ आप या आप जैसी अनूभूति रखने वाला कोई और ही महसूस कर सकता था...कम से कम मैं तो नहीं.
ReplyDeleteदरअसल इस कविता में, प्रारंभिक और अंतिम पैरा के आलावा कुछ भी मेरा नहीं है. जस का तस भाव उतारने का पराया किया है मैंने..जैसा सुना वैसा ..जैसा महसूस किया वैसा.. लिख दिया.
आपने भी अपने मनोंभावों को जिस सरलता के साथ लिखा उसके लिए आभारी हूँ.
बहुत ही खूबसूरती से व्र्द्धावस्था में खुश रहने के राज बता दिए आपने|
ReplyDeleteबहुत अच्छीकविता |
देवेंद्र जी, अपनी आत्मा की इस बेचैनी को बचाए रखिए और परमात्मा से प्रार्थना है कि वह इस बेचैनी को नित नई उड़ान दे...आपकी बेचैनी हमें बेचैन करती है, झकझोरती है, सवाल पूछती है, नज़रें मिलाने को बाध्य करती हैं... और मजबूरी ये कि नज़रें चुराने का कोई स्कोप नहीं छोड़ती... यह कविता उसी की एक कड़ी है!!
ReplyDeleteसच ही कहा बुजुर्ग ने। बहुत ज्ञान की बातें। दरअसल उन्होंने अपनी नहीं बल्कि घर घर की कहानी बयां कर दी। अब तो हर घर में ये होता है। कोई खास बात नहीं। अब तो खास बात तब हो जब किसी घर में ऐसा नहीं होता है। कविता बहुत शानदार है। बधाई।
ReplyDeletehttp://udbhavna.blogspot.com/
आपके ब्लाग पर आकर हमारी बैचेन आत्मा को बहुत चैन आया। सरल और सहज शब्दों में आपने यह कविता कही । बधाई। सबसे अच्छी बात यह है कि इसमें कोई लाग लपेट नहीं है। चलिए अब हम बैचेन आत्मा को अपनी ब्लाग सूची पर ठिकाना दे रहे हैं । मुलाकात होती रहेगी। और हां आपने जो हैडर चित्र डाला है वह बहुत आकर्षक है। आपने गूगल से साभार लिया हम आपसे साभार ले रहे हैं अपने लैपटॉप स्क्रीन के लिए। शुभकामनाएं।
ReplyDeleteशर्मींदगी की जब अति हो जाए तो कहावत है चुल्लू भर पानी मे डूब मरना इस कहावत से छेड करने की जुर्रत नहीं हुई ...
ReplyDeleteवैसे आपका सुझाव सर आँखों पर देवेन्द्रजी .
इसमें खुश रहने का फलसफा है.
ReplyDeleteबहुत सच्ची कविता है ! अपने आप बनी , निखरी ! सायास का ज़रा
ReplyDeleteभी भार नहीं ! सहज ही सब !
और , दिव्या जी की टीप भी कविता की तरह सच्ची है !
सहज प्रविष्टि ! आभार !
हाँ, हाँ, जानता हूँ.....
ReplyDeleteबाग में प्रवेश करने का
वह छोटा और सीधा रास्ता है
मगर आदत से लाचार हूँ
अपने द्वारा निर्धारित मार्ग और सिद्धांतों पर ही चलना पसंद करता हूँ
नमस्कार.....!!
और
ठीक वैसे ही
जैसे कोई मझधार में फंसा व्यक्ति
किनारों को
हसरत भरी निगाहों से देखता है.
मज़ा आ ग्या. कितना बड़ा सच बस यूं ही खेल-खेल में कह गये आप?
शुक्रिया .
ReplyDeleteआपकी ताज़ा रचना से लेकर घसियारिन तक हर पोस्ट ..
....अच्छी .उम्दा ,बेहतरीन .
liked your aquarium-clock-screensaver too.
जीवन दर्शन की अनोखी दास्तान है आपका ब्लॉग...और कविता ये भी बहुत कुछ सीखा गयी
ReplyDeleteकविता स्वानुभूत अंश का पुनराख्यान जैसी लगती है..खासकर अपने मार्ग और अपने सिद्धांतों पर चलने वाले व्यक्ति जीवन से कभी भी हताश नही होता..पूरी कविता यही दोहराती है..हम जब तक किसी से अपेक्षा नही रखते हैं..तभी तक वे प्रीतिकर लगते हैं..ऐसे ही सांसारिक सुखों की नश्वरता मे हमारा विश्वास हमें उनमे लिप्त नही होने देता है..आपके बुजुर्ग जी भी उसी ’तेन त्यक्तेन भुन्जीथा’ के दर्शन को जीवन का सार बना कर चलते प्रतीत होते हैं..
ReplyDeleteबेहद प्रेरणादायक और यथार्थपरक!!
नारी
ReplyDeleteसमझना
एक नारी को
शायद........
मुश्किल ही नहीं,
असंभव है.
नारी,
आग का वह गोला है
जो जला सकती है,
पूरी दुनिया.
नारी,
पानी का सोता है
वह बुझा सकती है,
जिस्म की आग.
नारी,
एक तूफान है
वह मिटा सकती है,
आदमी का वजूद.
नारी,
वरगद की छाया है
वह देती है, थके यात्री को,
दो पल का आराम.
नारी,
एक तवा है
वह खुद जलकर मिटाती है,
दूसरों की भूख.
नारी,
पवित्र गंगा है
वह धोती है सदियों से,
पापियों का पाप.
नारी,
मृग तृष्णा है
जो पग बढ़ाते ही,
चली जाती है दूर.
नारी,
लाजबन्ती है
वह मुरझा जाती है,
छु देने के बाद.
नारी,
सृष्टी है
वह रचती है रोज,
एक नई संसार.
बढ़िया!
ReplyDeleteबेहतरीन सत्संग हुआ आपको ! शुभकामनाएं !
ReplyDeleteliked it...
ReplyDeletehappiness is a choice we make not a dream we keep chasing...
VERY NICE POST
ReplyDelete