बादल-बिजली गड़गड़-कड़कड़ चमके सारी रात।
टिप्-टिप्-टिप्-टिप्, टिप्-टिप्-टिप्-टिप् सावन की बरसात।।
खिड़की कुण्डी खड़ख़ड़-खड़खड़ सन्नाटे का शोर
करवट-करवट जागा करता मेरे मन का चोर
मेढक-झींगुर जाने क्या-क्या कहते सारी रात।
टिप्-टिप्-टिप्-टिप्, टिप्-टिप्-टिप्-टिप् सावन की बरसात।।
अँधकार की आँखें आहट और कान खरगोश
अपनी धड़कन पूछ रही है तू क्यों है खामोश
मिट्टी की दीवारें लिखतीं चिट्ठी सारी रात।
टिप्-टिप्-टिप्-टिप्, टिप्-टिप्-टिप्-टिप् सावन की बरसात।।
बूढ़े वृक्षों पर भी देखो मौसम की है छाप
नई पत्तियाँ नई लताएँ लिपट रहीं चुपचाप
जुगनू-जुगनू टिम-टिम तारे उड़ते सारी रात।
टिप्-टिप्-टिप्-टिप्, टिप्-टिप्-टिप्-टिप् सावन की बरसात।।
टुकुर-टुकुर देखा करती है सपने एक हजार
पके आम के नीचे बैठी बुढ़िया चौकीदार
उसकी मुट्ठी से फिसले है गुठली सारी रात।
टिप्-टिप्-टिप्-टिप्, टिप्-टिप्-टिप्-टिप् सावन की बरसात।।
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteवाह देवेन्द्र जी,
ReplyDeleteबहुत शानदार बरसाती दोहे लिखे हैं।
"अँधकार की आँखें आहट....।" बहुत खूबसूरत}
सन्नाटे के शोर और करवट करवट जागते हुए के, मन की टोह लेते हुए ...मिटटी की दीवारों / बूढ़े वृक्षों / बुढ़िया...बनाम...नई पत्तियों / हजार सपनों और जुगनू...तारों की टिमटिमाहट के सूत्र सावन से जोड़ने की कोशिश में लगे है ! हमेशा की तरह सुचिंतित कविता !
ReplyDeleteअच्छी रचना बधाई
ReplyDeleteरिम झिम रिम झिम रिम झिम , रिम झिम पड़े फुहार
ReplyDeleteपढके सावन की रचना , मज़ा आ गया यार ।
हैपी फ्रैंडशिप डे ।
लाजवाब ,मुला इस साल की है या परियार साल की ?
ReplyDeleteYe barsaat ke geet kitne manohari lagte hain..aapki rachna me bahut naad hai.Aur jab bahut tarsake barasta hai to aurbhi madhur lagta hai...
ReplyDeleteसुन्दर, बरसात की टिप टिप टिप टिप टिप की तरह । सबसे सुन्दर उसकी मुठ्ठी से फिसले है गुठली सारी रात।
ReplyDeleteआपका इस कविता में वर्षा को स्वर डाल देना शाब्दिक संगीत का विलक्षण प्रयोग है।
ReplyDeleteसावन में यह बहुत ही सुंदर रचना है। कमाल कर दिया आपने।
ReplyDeleteसुन्दर रचना ध्वन्यात्मकता का प्रभाव लिये हुए.
ReplyDeletesunder abhivyakti bas suro ki kami hai.
ReplyDeleteअदभुत, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम
behatareen abhivyakti!
ReplyDeletemanzar ankhon ke saamne hai .
बरसात के मौसम में .....
ReplyDeleteफुहारों भरी इस सौगात के लिए शुक्रिया.
अरे वाह जी यह कविता तो बहुत सुंदर है, साथ मै गुनगुनाने को मन करता है. धन्यवाद
ReplyDeleteसावन की बरसात के मजे तो भैया!...आपने इस कविता में भर दिए है!.... मजेदार!
ReplyDeleteसावन की टिप टिप
ReplyDeleteउड़े चुनरिया धानी , और सराबोर मन
जिन पंक्तियों को देखो वही अद्भुत, टेक की तो बात की क्या!...टिप-टिप-टिप-टिप सावन की बरसात.
ReplyDeleteक्या लिखा है!!!!!! बस लाजवाब एक एक बात बहुत सोची समझी किस पंक्ति की तारीफ करूँ किसकी रहने दूँ बस यही सोच रही हूँ और कविता और उसकी भाषा का आनंद ले रही हूँ
ReplyDeleteशब्दों का संगीत निखर कर आता है इन सारे बरसाती दोहों मे..बूँद-बूँद बा्रिश जैसे बजती है हर पंक्ति मे टिप-टिप, कड़-कड़ बूँदे, बादल, बिजली, कुंडी, मिट्टी, जुगनू सब जैसे उनींदी रातों को थप-थप कर उठाते हैं..बारिश एक आमंत्रण है..प्रकृति से एकाकार होने का..एक विलंबित सुर..जो जीवन के कानों मे मिस्री घोलता रहता है..
ReplyDeleteकुछ-कुछ पंक्तियाँ तो जैसे गज्जब हैं
जैसे..
’अँधकार की आँखें आहट और कान खरगोश
मिट्टी की दीवारें लिखतीं चिट्ठी सारी रात।
पके आम के नीचे बैठी बुढ़िया चौकीदार
उसकी मुट्ठी से फिसले है गुठली सारी रात।
..अच्छा है कि बारिश हो रही है इधर..वर्ना ऐसी रचनाएँ सूखे हृदय की तपती रेत पर गेहुएँ साँप सी लोटती रहतीं...
वाह मज़ा आ गया.
ReplyDeleteबहुत उम्दा.
धन्यवाद.
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वाह अपूर्व..
ReplyDeleteआपके कमेंट के बिना पोस्ट अधूरी लगती है.
अरविंद भैया..
यह न इस साल की है न परियार साल की. यह तो उस साल की है जब बरसा था सावन.... झूम के.
देवेंद्र जी,
ReplyDeleteएकदम बैक्ग्राउण्ड म्यूजिक से लैस धाँसू गीत है ये... बस सुनते ही मन करता है कि बस निकल पड़ें बिना छतरी के... हमलोगों के लिए परियार साल सावन में भी पसीने की बारिश थी... सो हम तो इसी साल का मान कर झूम लेते हैं...
सुन्दर है बरसात रिम झिम रिम झिम ...
ReplyDeleteमिट्टी की दीवारें लिखतीं चिट्ठी सारी रात....
बुढ़िया चौकीदार...
आम के नीचे बैठी सपने देखा करती है .........
लाजवाब
बहुत सटीक...
ReplyDeleteहैडर जरा दुबला करो भई..आधा पन्ना तो वो ही खुलता है.
मेरी गरीब हिन्दी योग्यता से कविता अमझना मुशकिल है। लेकिन यह कविता आवाज़ निकालने से पढ़कर बहुत अच्छा लगा। क्या आप तस्वीर भी अपने हाथ से खींचते हैं? बहुत सुन्दर है।
ReplyDeleteआज तो और भी बेहतरीन..क्या मौसम लेकर आएँ है आप...वर्षा ऋतु का वर्णन इससे रोचक सरल और अंदाज में मैने कभी पढ़ी ही नही..बधाई
ReplyDeleteएक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं!
ReplyDeleteआपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !
please look your header.
ReplyDeleteit tooks about half of the page.
please make it short.
thanks.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
उसकी मुट्ठी से फिसले है गुठली सारी रात।
ReplyDeleteअहा! बहुत ही ख़ूबसूरत ये ये पंक्तियाँ... यूँ तो पूरी कविता ही ऐसी लगी जैसे मैं राजेंद्र प्रसाद घाट पर बैठा हूँ..गँगा भी भीग रही हो :)
बहुत सुन्दर
टिप्-टिप्-टिप्-टिप्, टिप्-टिप्-टिप्-टिप् सावन की बरसात।।
ReplyDeletemujhe ye tip tip tip jayda pyari lag rahi hai....:)
khubsurat rachna.......
बूढ़े वृक्षों पर भी देखो मौसम की है छाप
ReplyDeleteनई पत्तियाँ नई लताएँ लिपट रहीं चुपचाप..सुन्दर रचना
टिप-टिप,टिम-टिम, टुकुर-टुकुर,जैसे शब्दों के प्रयोग ने रचना की मिठास बढ़ा दी है.
ReplyDeleteaapki sawan ki rachna to bahut hi man bhaee.deshi shabdo ka prayog bahut hi achha laga.
ReplyDeletepoonam
सुन्दर कविता
ReplyDeleteबरसात की सभी ध्वनियों को साकार करती आपकी ये रचना अद्भुत है...बरसात मयी है...
ReplyDeleteनीरज
bahut hi sundar likha hai. badhayi
ReplyDeleteवाह, बहुत संगीतमयी कविता है। बरसात का दृष्य जीवंत हो गया।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
पूरा झमाझम हो रहा है इस पोस्ट पर तो। बहुत खूब!
ReplyDeleteबढ़िया शब्द चित्रण किया है आपने ! शुभकामनायें !
ReplyDeletebahut sunder chitran barsaat ka
ReplyDeleteaur adbhut pryog
tip tip maza aa gaya
आवाज़े बड़े अच्छे से पिरो दी आपने :)
ReplyDeleteअँधकार की आँखें आहट और कान खरगोश
ReplyDeleteअपनी धड़कन पूछ रही है तू क्यों है खामोश
बूढ़े वृक्षों पर भी देखो मौसम की है छाप
नई पत्तियाँ नई लताएँ लिपट रहीं चुपचाप
-:इस प्रकार की कल्पना के आपने ! शुभकामनायें !
समीर लाल जी की बात पर गौर करें !शुभकामनायें !
ReplyDeleteहेडर छोटा नहीं कर पा रहा हूँ. एक बार प्रयास किया तो अधकटा हो गया.
ReplyDeleteजय हो! सावन भाई साहब पूरे साउंड सिस्टम के साथ आये हैं। जय हो। :)
ReplyDeleteये रिमझिम ... ये टिप टिप बहुतलाजवाब है ... ब्लॉग पर वर्षा का आनंद आ रहा है ....
ReplyDeleteटुकुर-टुकुर देखा करती है सपने एक हजार
ReplyDeleteपके आम के नीचे बैठी बुढ़िया चौकीदार
उसकी मुट्ठी से फिसले है गुठली सारी रात।
टिप्-टिप्-टिप्-टिप्, टिप्-टिप्-टिप्-टिप् सावन की बरसात।।
सदा कि तरह बेमिसाल रचना...