आर. टी. ओ. दफ्तर के आगे
है दुकान भड़भूजा
बुढ्ढा- बुढ़्ढी जिसके मालिक
और न कोई दूजा।
बुढ्ढा लाता चना-चबेना
बुढ़िया सूखे पत्ते
देखा करता हूँ नित इनको
आते जाते रस्ते
एक लगाता आग तो दूजा
भूजा करता भूजा।
[आर. टी. ओ. दफ्तर के आगे...]
एक रूपैय्या अधिक न लेते
ना कम हो इक दाना
जांच-जूंच कर कई बार अब
छोड़ दिया अजमाना
इक दूजे के लिए बने हैं
जैसे डोरी-सूजा।
[आर. टी. ओ. दफ्तर के आगे...]
कभी न उनको थकते देखा
कभी न उनको रोते
जाड़ा-गर्मी-वर्षा भीषण
कांधे-कांधे ढोते
कर्महीन मुर्गी से पूछें
कब देगी तू चूजा।
[आर. टी. ओ. दफ्तर के आगे...]
बड़ा अशुभ है जो रस्ते में
कर्महीन मिल जाये
बहुत बड़ा शुभ पंडित कहते
कर्मशील दिख जाये
मैं कितना किस्मत वाला हूँ
करता इनकी पूजा।
[आर. टी. ओ. दफ्तर के आगे...]
kitni gahrayi se dekha aur jana [आर. टी. ओ. दफ्तर के आगे...]bahut hi sahaj rachna
ReplyDeleteवाह, भड़भूजा सबको भून रहा है, दफ्तर के आगे।
ReplyDeleteवाह -कर्मशील से या कहिये असली कर्मयोगी से मिलाने की शुक्रिया -
ReplyDeleteकहाँ वहां जा पहुंचे? सही है जहाँ न पहुंचे ....
एक बार फिर कविता की प्रशंसा -वाह वाही!
hame bhi jana parega RTO dafter ke pass....:)
ReplyDeletebahut pyari si abhivyakti..
बड़ा अशुभ है जो रस्ते में
ReplyDeleteकर्महीन मिल जाये
बहुत बड़ा शुभ पंडित कहते
कर्मशील दिख जाये
बहुत सही बात कही है ... बहुत अच्छी प्रस्तुति
बिलकुल सच कहा आपने ....
ReplyDeleteकर्मशील योगी है यह !
अरे वाह! बहुत ही बेहतरीन अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteWonderful creation !...Loving it.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर मार्मिक गीत...
ReplyDeleteयैसे कर्मशील जोड़ी से मुझको भी मिलवाओ,
ReplyDeleteएक रुपैये का दाना मुझको भी दिलवाओ.
फोटो भी रख लो उनका
मेरे दिल में गूंजा.
इनकी जो पूजा हैं करते
ReplyDeleteवही पूज्य, न दूजा...
बड़ा अशुभ है जो रस्ते में
ReplyDeleteकर्महीन मिल जाये
बहुत बड़ा शुभ पंडित कहते
कर्मशील दिख जाये
ये जो बात कही आपने...बस, वाह वाह वाह .....
बेहतरीन अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteएक साधारण सी घटना को आपने ऐसा चित्रित कर दिया .....वाह !वाह !!!
ReplyDeleteDIL LO CHU GAYI YE RACHNA
ReplyDeleteJAI HIND JAI BHARAT
जबरदस्त
ReplyDeleteऐसी जोड़ी धन्य है और ऐसी रचना भी धन्य।
ReplyDelete[आर. टी. ओ. दफ्तर के आगे...]
अब इस उम्र में अधिक लेकर कहाँ जायेंगे । लगता है कर्मयोगी होने के साथ ज्ञानी भी हैं ।
ReplyDeleteजो ग्रहण करले उसका भी भला , जो न करे उसका भी भला ।
कभी न उनको थकते देखा
ReplyDeleteकभी न उनको रोते
जाड़ा-गर्मी-वर्षा भीषण
कांधे-कांधे ढोते
Behad sanjeeda rachana!
कर्मयोगी तो पूजने योग्य ही होते हैं
ReplyDeleteबहुत खूबसूरती से आपने इन कर्मयोगियों का चित्रण किया है
इमकी कर्मशीलता को वन्दन. आभार सहित...
ReplyDeleteइस रचना की शैली और अर्थ ने आकर्षित किया।
ReplyDeleteकर्मयोगियों को नमन ...
ReplyDeleteअच्छी कविता ...
वाह....छा गए देव बाबू.....बहुत ही शानदार लगी पोस्ट....कुछ अलग....लाजवाब|
ReplyDeleteभड़भूजा सबको भून रहा है,शानदार पोस्ट,कुछ अलग सी...
ReplyDeleteयह कविता 3-4 वर्ष पहले की है। तब आर.टी.ओ. दफ्तर सारनाथ के पास ही हुआ करता था। दफ्तर दूर चला गया लेकिन भड़भूजे की दुकान अभी भी वहीं है। बुढ्ढा-बुढ्ढी आज भी हैं। वैसे ही, जैसा कि कविता कहती है।
ReplyDeleteफोटू खींचने व ब्लॉग में लोड करने के मामले में थोड़ा आलसी हूँ। कभी-कभी यह भी लगता है कि शब्दों ने अभिव्यक्ति के लिए चित्रों का सहारा लिया! क्या शब्द कमजोर हैं अभिव्यक्ति के लिए ? फिर लगता है कि नहीं, अच्छी अभिव्यक्ति जरूरी है, चाहे इसके लिए चित्रों का सहारा ही क्यूँ न लेना पड़े।
बड़ा अशुभ है जो रस्ते में
ReplyDeleteकर्महीन मिल जाये
बहुत बड़ा शुभ पंडित कहते
कर्मशील दिख जाये
वाह बहुत सुंदर बात कही आप ने, धन्यवाद
बहुत अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत बढ़िया !
ReplyDeleteसच्चे कर्मयोगी हैं दोनों और एक दूसरे के सच्चे साथी भी
आप ने इसे जिस तरह महसूस किया और अभिव्यक्त किया वो क़ाबिल ए तारीफ़ है ,,,बड़ी ही सहजता से उन कर्मठ पति-पत्नि का चरित्र चित्रण किया और पाठकों के मन में उन के प्रति सम्मान जगा दिया
बधाई !!!!!!
भड-भुज इमानदारी और अनुशासन से परिपूर्ण ,तो दूसरी तरफ आर.टी.ओ आफिस काम चोर और भ्रष्टाचार का अड्डा ! कितना अंतर शिक्षा में ! भड- भुज को प्रणाम ! इस मेहनत कश को प्रणाम , इस अनुशासन को प्रणाम ! इस बरिष्ठ नागरिक को प्रणाम !
ReplyDeleteसचमुच आप किस्मत वाले है। जो इस कर्मठ जोडे का दर्शन करते है। युवकों को इनसे प्रेरणा लेना चाहिये । मौसम से परेशान नहीं होते थकते नहीं ईमानदार जबकि सामने आर टी ओ का दफतर भी है ।
ReplyDeleteसुन्दर गीत।
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteअसली कर्मयोगी तो ऐसे ही हैं .. अपनी धुन के पक्के ... इरादे में मजबूत ... चाहे भड़-भूजा बेचें या कुछ और ...
ReplyDeleteपूरा चित्र सामने आ गया, किसी और चित्र की जरूरत नहीं .
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