25.5.11

भड़भूजा


आर. टी. ओ. दफ्तर के आगे
है दुकान भड़भूजा
बुढ्ढा- बुढ़्ढी जिसके मालिक
और न कोई दूजा।

बुढ्ढा लाता चना-चबेना
बुढ़िया सूखे पत्ते
देखा करता हूँ नित इनको
आते जाते रस्ते

एक लगाता आग तो दूजा
भूजा करता भूजा।
[आर. टी. ओ. दफ्तर के आगे...]

एक रूपैय्या अधिक न लेते
ना कम हो इक दाना
जांच-जूंच कर कई बार अब
छोड़ दिया अजमाना

इक दूजे के लिए बने हैं
जैसे डोरी-सूजा।
[आर. टी. ओ. दफ्तर के आगे...]

कभी न उनको थकते देखा
कभी न उनको रोते
जाड़ा-गर्मी-वर्षा भीषण
कांधे-कांधे ढोते

कर्महीन मुर्गी से पूछें
कब देगी तू चूजा।
[आर. टी. ओ. दफ्तर के आगे...]

बड़ा अशुभ है जो रस्ते में
कर्महीन मिल जाये
बहुत बड़ा शुभ पंडित कहते
कर्मशील दिख जाये

मैं कितना किस्मत वाला हूँ
करता इनकी पूजा।
[आर. टी. ओ. दफ्तर के आगे...]

35 comments:

  1. kitni gahrayi se dekha aur jana [आर. टी. ओ. दफ्तर के आगे...]bahut hi sahaj rachna

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  2. वाह, भड़भूजा सबको भून रहा है, दफ्तर के आगे।

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  3. वाह -कर्मशील से या कहिये असली कर्मयोगी से मिलाने की शुक्रिया -
    कहाँ वहां जा पहुंचे? सही है जहाँ न पहुंचे ....
    एक बार फिर कविता की प्रशंसा -वाह वाही!

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  4. hame bhi jana parega RTO dafter ke pass....:)
    bahut pyari si abhivyakti..

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  5. बड़ा अशुभ है जो रस्ते में
    कर्महीन मिल जाये
    बहुत बड़ा शुभ पंडित कहते
    कर्मशील दिख जाये

    बहुत सही बात कही है ... बहुत अच्छी प्रस्तुति

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  6. बिलकुल सच कहा आपने ....
    कर्मशील योगी है यह !

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  7. अरे वाह! बहुत ही बेहतरीन अभिव्यक्ति...

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  8. Wonderful creation !...Loving it.

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  9. बहुत सुन्दर मार्मिक गीत...

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  10. यैसे कर्मशील जोड़ी से मुझको भी मिलवाओ,
    एक रुपैये का दाना मुझको भी दिलवाओ.
    फोटो भी रख लो उनका
    मेरे दिल में गूंजा.

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  11. इनकी जो पूजा हैं करते

    वही पूज्य, न दूजा...

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  12. बड़ा अशुभ है जो रस्ते में
    कर्महीन मिल जाये
    बहुत बड़ा शुभ पंडित कहते
    कर्मशील दिख जाये

    ये जो बात कही आपने...बस, वाह वाह वाह .....

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  13. बेहतरीन अभिव्यक्ति...

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  14. एक साधारण सी घटना को आपने ऐसा चित्रित कर दिया .....वाह !वाह !!!

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  15. DIL LO CHU GAYI YE RACHNA
    JAI HIND JAI BHARAT

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  16. ऐसी जोड़ी धन्य है और ऐसी रचना भी धन्य।
    [आर. टी. ओ. दफ्तर के आगे...]

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  17. अब इस उम्र में अधिक लेकर कहाँ जायेंगे । लगता है कर्मयोगी होने के साथ ज्ञानी भी हैं ।
    जो ग्रहण करले उसका भी भला , जो न करे उसका भी भला ।

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  18. कभी न उनको थकते देखा
    कभी न उनको रोते
    जाड़ा-गर्मी-वर्षा भीषण
    कांधे-कांधे ढोते
    Behad sanjeeda rachana!

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  19. कर्मयोगी तो पूजने योग्य ही होते हैं
    बहुत खूबसूरती से आपने इन कर्मयोगियों का चित्रण किया है

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  20. इमकी कर्मशीलता को वन्दन. आभार सहित...

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  21. इस रचना की शैली और अर्थ ने आकर्षित किया।

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  22. कर्मयोगियों को नमन ...
    अच्छी कविता ...

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  23. वाह....छा गए देव बाबू.....बहुत ही शानदार लगी पोस्ट....कुछ अलग....लाजवाब|

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  24. भड़भूजा सबको भून रहा है,शानदार पोस्ट,कुछ अलग सी...

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  25. यह कविता 3-4 वर्ष पहले की है। तब आर.टी.ओ. दफ्तर सारनाथ के पास ही हुआ करता था। दफ्तर दूर चला गया लेकिन भड़भूजे की दुकान अभी भी वहीं है। बुढ्ढा-बुढ्ढी आज भी हैं। वैसे ही, जैसा कि कविता कहती है।

    फोटू खींचने व ब्लॉग में लोड करने के मामले में थोड़ा आलसी हूँ। कभी-कभी यह भी लगता है कि शब्दों ने अभिव्यक्ति के लिए चित्रों का सहारा लिया! क्या शब्द कमजोर हैं अभिव्यक्ति के लिए ? फिर लगता है कि नहीं, अच्छी अभिव्यक्ति जरूरी है, चाहे इसके लिए चित्रों का सहारा ही क्यूँ न लेना पड़े।

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  26. बड़ा अशुभ है जो रस्ते में
    कर्महीन मिल जाये
    बहुत बड़ा शुभ पंडित कहते
    कर्मशील दिख जाये
    वाह बहुत सुंदर बात कही आप ने, धन्यवाद

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  27. बहुत अच्छी प्रस्तुति

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  28. बहुत बढ़िया !
    सच्चे कर्मयोगी हैं दोनों और एक दूसरे के सच्चे साथी भी
    आप ने इसे जिस तरह महसूस किया और अभिव्यक्त किया वो क़ाबिल ए तारीफ़ है ,,,बड़ी ही सहजता से उन कर्मठ पति-पत्नि का चरित्र चित्रण किया और पाठकों के मन में उन के प्रति सम्मान जगा दिया
    बधाई !!!!!!

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  29. भड-भुज इमानदारी और अनुशासन से परिपूर्ण ,तो दूसरी तरफ आर.टी.ओ आफिस काम चोर और भ्रष्टाचार का अड्डा ! कितना अंतर शिक्षा में ! भड- भुज को प्रणाम ! इस मेहनत कश को प्रणाम , इस अनुशासन को प्रणाम ! इस बरिष्ठ नागरिक को प्रणाम !

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  30. सचमुच आप किस्मत वाले है। जो इस कर्मठ जोडे का दर्शन करते है। युवकों को इनसे प्रेरणा लेना चाहिये । मौसम से परेशान नहीं होते थकते नहीं ईमानदार जबकि सामने आर टी ओ का दफतर भी है ।

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  31. सुन्दर अभिव्यक्ति

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  32. असली कर्मयोगी तो ऐसे ही हैं .. अपनी धुन के पक्के ... इरादे में मजबूत ... चाहे भड़-भूजा बेचें या कुछ और ...

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  33. पूरा चित्र सामने आ गया, किसी और चित्र की जरूरत नहीं .

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