आज 14 जनवरी 2012 को वाराणसी में श्री मठ की शाखा, श्री बिहारम, बड़ी
पियरी स्थित अमरा बापू सभागार में जगतगुरू रामानन्दाचार्य की 713 वीं जयंन्ती मनाई
गई। इस अवसर पर वाराणसी के पंचगंगा घाट स्थित श्री मठ के आचार्य स्वामी
रामनरेशाचार्य जी और गोपाल मंदिर प्रसिद्ध वैष्णव पीठ के आचार्य आदरणीय श्याम
मनोहर जी महाराज मुख्य अतिथि के रूप में मंच पर विराजमान थे। इस अवसर पर जगतगुरू
रामानंदाचार्य और भक्ति प्रस्थान आंदोलन विषयक विद्वत् संगोष्ठी और डा0 पव नाथ
द्विवेदी जी की संस्कृत भाषा में अनुदित पुस्तक के लोकार्पण के साथ साथ विशिष्ट
कार्यक्रम के अंतर्गत वरिष्ठ साहित्यकार श्री विवेकी राय जी का सम्मान समारोह भी
आयोजित था।
अक्षरब्रह्म के आराधक, भोजपुरी के भगीरथ, वयोवृद्ध साहित्य कार विवेकी
राय जी किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। जब डा0 उदय प्रताप सिंह जी ने बताया कि
आज कबीर चौरा में विवेकी राय जी का सम्मान समारोह आयोजित है तो एक खुशी की लहर
दौड़ गई। उनका बनारस में होना और सम्मान समारोह के आयोजन की खबर इतनी महत्वपूर्ण
थी कि मैं वहां दौड़ा चला गया।
काशी के वरिष्ठ साहित्यकारों तथा श्रीमठ परिवार की उपस्थिति में आयोजित इस सम्मान समारोह में पूर्ण वैदिक रीति से तिलक चंदन लगाकर, विवेकी राय जी को एक लाख रूपये का जगतगुरू रामानन्दाचार्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया। प्रमुख वक्ता के रूप में आचार्य कमलेश दत्त त्रिपाठी और वंशीधर त्रिपाठी जी उपस्थित थे।
आयोजन की कुछ तश्वीरें खीची और विवेकी राय जी का भाषण भी अपने मोबाइल
में टेप कर घर ले आया। शोर में आवाज इतनी साफ नहीं है कि पॉडकास्ट लगाया जाय और
उसे आपको सुनाया जाय। जो कर सकता था वह यह कि सुनकर उनका भाषण ज्यों का त्यों यहां
प्रकाशित कर रहा हूँ।
पुरस्कार प्राप्त करने के पश्चात इस अवसर पर बोलते हुए विवेकी राय जी
ने कहा...
इस जगतगुरू के पवित्र पीठ का यह आशीर्वाद है। कृपा है जो पहुँच पाया।
मुझे लगता था कि पहुंज पाउंगा कि नहीं। खड़ा भी हो पाउंगा कि नहीं । लेकिन आप तो
ईश्वर तुल्य हैं। आपकी शक्ति से ही जो कुछ हुआ, वह हुआ है। सच पूछिये तो मैं तो
साहित्यकार हूँ लेकिन मेरे पास कार नहीं है। हाँ, एक कार है। अहंकार की कार... कि
मैं साहित्यकार हूँ। लेकिन उस अहंकार को आज मैं गाजीपुर छोड़ कर आया हूँ। आज यहां
मैं जगतगुरू रामानन्दाचार्य द्वारा और उनके पद प्रतिष्ठित साहबों का कृपा पात्र
बनकर, उनका पात्र बनकर आया हूँ। भक्त बनकर आया हूँ। सम्मान तो बहुत मिले लेकिन ऐसे
प्रातः स्मरणीय, पुन्यशील, पवित्र हाथों का पुरस्कार बहुत दुर्लभ है और यह दुर्लभ मुझे
आज मिला। सन 2000 में जगतगुरू रामानन्दाचार्या के सर्वोच्च ज्ञानपीठ समारोह का
आयोजन गाजीपुर में हुआ था । गाजीपुर में महाराज का आगमन हुआ। वहां गाजीपुर के
विशिष्ट लोगों को महाराज ने प्रशस्तिपत्र दिया। मुझे कुछ मिला नहीं। लेकिन जिस
प्रेम से स्वामी जी मिले मैने कहा इससे अच्छा क्या हो सकता है। एक घटना हुई आपने
मुझे रामनामी ओढ़ा दिया। ओढ़कर मैं बैठ गया। इसके बाद उन्होने मुझसे कहा कि एक
बढ़िया शाल ओढ़ा दो..रामनामी हट गई। शाल ओढ़ा दिया गया। मैने समझा कि अभी वैराग्य
लायक नहीं हूँ, घोर संस्कारी हूँ। रामनामी
के योग्य नहीं हुआ हूँ। अब 87 वर्ष की उम्र में अब क्या चाहते हैं महाराज जी ? एक लाख रूपिया देकर कहां
ले जायेंगे..! हा..हा..हा..
यह गद्दी 15 वीं शताब्दि से लेकर भक्ति की जो जोत जला रही है, वह जलती
रहेगी और अनंत काल तक जलती रहेगी। स्वामी रामानंदाचार्य एक नाम नहीं है वरन एक
शक्तिशाली उर्जा की लहर है जो समय के साथ समाप्त नहीं हो जाती समय के साथ इसका
प्रभाव और बढ़ता जाता है, बढ़ता रहा है ...तमाम-तमाम क्रांतिकारी कदम हुए वे
अद्धभुत हैं।
भारत उन्नति करतेकरते प्रगतिशील आंदोलन तक आया है। और वैसा
प्रगतिशील आंदोलन आचार्य रामानंद जी द्वारा 15 वीं, 16वीं शताब्दि में ही खड़ा कर
दिया गया था। इनके शिष्य परम्परा में ऐसे शिष्य नहीं हैं जिनका साहित्य, उनके जीवन
काल में ही बुझ जाय बल्कि समय के साथ और भी प्रभावी रूप में बढ़ता जाता है, लोगों
के मन मस्तिष्क पर छाता जाता है। कितने
चाव के साथ आज कबीर को पढ़ाया जाता है! और कितने गर्व से कहा जाता है कि रामानंद जी ने एक
ऐसा अग्नि धर्मी शिष्य दिया जिसके एक एक दोहे में, एक एक शब्दों मे जैसे क्रांति
की चिंगारी है! और वह साहित्य की, धर्म की, चाहे कहीं..कोई भी शाखा हो वह सर्वत्र स्वीकृत है
जिसका सृजन सर्वत्र समादृत है। सृजनवादियों में..जनवादियों में भी वह समादृत है।
वह प्रेम के गीत गाता है। वह विरह के गीत भी गाता है। वह कुल्हाड़ा लेकर घर भी
खोदता है। तुलसी दास जी भी उसी स्रोत से
आये। सही बात तो यह है कि इसका बड़ा श्रेय
रामानंदाचार्य जी को जाता है। यह रामानंद जी की अत्यंत पवित्र गद्दी है। यह पुरष्कार जो
मुझे मिला, इससे मेरा जीवन धन्य हो गया। अब मैं अधिक कहने की स्थिति में नहीं हूँ,
थक गया हूँ, सभी को प्रणाम करता हूँ।
कुछ और चित्र काशी के वरिष्ठ साहित्यकार.....
सभा का
कुशल संचालन और आये विद्वानों का सम्मान प्रसिद्ध साहित्यकार और आलोचक डा0 उदय प्रताप सिंह जी ने (बीच में जैकेट पहने) किया...
...............................................
जीवंत विवरण तथ्यात्मक वर्णन ....!
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद देवेन्द्र जी। विवेकी राय जी को तो हम बहुत मन से पढ़ते हैं। कुछ पोस्टें सफ़ेद घर पर उन्हीं से सम्बन्धित हैं। ये रहा लिंक - http://safedghar.blogspot.com/search/label/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%95%E0%A5%80%20%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AF
ReplyDeleteमैं जानता हूँ..मैने पढ़ी हैं..। यह खबर कल अखबार में आयेंगी और मैने जल्दी-जल्दी, सबसे तेज खबरी बन कर इसे प्रकाशित किया है। :)
Deleteविस्तृत रिपोर्ट .....!
ReplyDeleteसंक्षिप्त टीप...!
Deletebechain ka sarahniy prayas..
ReplyDeleteबुजुर्ग साहित्यकार को पुरस्कृत/सम्मानित करने की खबर पढ़कर अच्छा लगा। लेख और फोटो के लिये अब आभार कह देते हैं।
ReplyDeleteआपका भार, आभार सर माथे पर:)
Deleteबढ़िया रिपोर्ट रही आपकी ...
ReplyDeleteआभार आपका !
धन्यवाद।
Deleteसाहित्य के सशक्त संकेत हैं ये आयोजन, सही प्रकार से सब प्रस्तुत करने का आभार..
ReplyDeleteआपको पसंद आया जानकर खुशी हुई। अली सा..आपके 'स' की ट्रेन और आगे तक ले गये हैं:)
Deleteसत्कर्म / सद्आयोजनों में सहभागिता सुपुरुषों के संकेत हैं ! सफल सुफल समारोह के शीघ्र सम्यक समाचार की सदाशयता हेतु साभार !
ReplyDeleteसंक्रांति की शुभकामनायें :)
Deleteआपको भी मकर संक्रांति की शुभकामनाएं।
Deleteसाभार में 'स' का संसार देख सर सुपा़ड़ी बन सरौते में सरक गया:)
Deleteइन अविस्मरनीय क्षणों की इससे अच्छी और सचित्र रिपोर्ट कहीं नहीं है ..साधुवाद!
ReplyDeleteआपने अन्य अखबारों को पढ़ने के बाद यह अनुभव किया पढ़कर श्रम सार्थक हुआ।..आभार।
Deleteबढ़िया प्रस्तुति...
ReplyDeleteआपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 16-01-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ
धन्यवाद। चर्चामंच का आभार।
Deleteबहुत बेहतरीन और प्रशंसनीय.......
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।संक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाएं...
अभी अपने ही ब्लॉगिंग की सनक सवार है..मौका मिलते ही जरूर आउंगा..स्नेह बनाये रहें।
Deleteसुंदर सचित्र रिपोर्ट. साहित्यकारों को भी समुचित सम्मान मिलना ही चाहिये.
ReplyDeleteसाहित्यकार का सम्मान हम सभी पाठकों का सम्मान है। रिपोर्टिंग की प्रशंसा के लिए आभार।
Deleteसुन्दर! अतिसुन्दर! इतनी अच्छी और विस्तृत प्रस्तुति के लिए ढेरों आभार।
ReplyDeleteमकरसंक्रांति की ढेरों शुभकामनाएँ।
..बहुत धन्यवाद। आपके ब्लॉग का कमेंट बॉक्स क्यों बंद है यह तो अच्छी बात नहीं है। प्रतिक्रिया न कर पाने पर भी पाठक को निराशा होती है।
Deleteनहीं नहीं, बंद नहीं है, रंग ज़रा हल्का है, वैसे वो तो बहुत दिन से है। :)
Deleteदिनांक के ठीक आगे।
विवेकी राय जी को बधाई। बढिया रिपोर्ट और फ़ोटो देकर इस कार्यक्रम को आपने सदा के लिए संजो दिया है। आभार।
ReplyDeleteधन्यवाद।
DeleteAapki vistrat riport padh ke Bahut achhaa laga ... Sammaniy vyaktiyon ko aadar dena sachhee seva hai ...
ReplyDeleteसाहित्यकारों का सम्मान पाठकों की भावनाओं का सम्मान है।
Deleteविवेकी राय जी एक कुशल साहित्यकार ही नहीं बेहतरीन इंसान भी हैं वे.उनका भाषण पढवाने के लिए आपका तहे दिल से आभार.
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