प्रस्तुत है हास्य व्यंग्य के जनप्रिय कवि स्व0 चकाचक बनारसी की एक कविता। देखिये बसंत को उन्होने कैसे याद किया। काशिका बोली में लिखी कविता का शीर्षक है...
बसंत हौS
जिनगी त जबै मउज में आई बसंत हौS,
मन सब कS एक राग सुनाई बसंत हौS।
खेतिहर जब अपने खून पसीना के जोर से,
सरसो कS फूल जब्बै खिलाई बसंत हौS।
कोयल क कूक अउर पपीहा कS पी कहां,
जब्बै कोई के मन के लुभाई बसंत हौS।
पछुआ के छेड़ छाड़ से कुल पेड़ आम कS,
बउरा के अंग अंग हिलाई बसंत हौS।
भंवरा सनक के, फूल से कलियन से लिपट के,
नाची औ झूम झूम के गाई बसंत हौS।
खेतन में उठल बिरहा कहरवा के टीप पर,
हउवा रहर कS बिछुवा बजाई बसंत हौS।
जड़ई भी अउर साथै पसीना छुटै लगी,
भारी लगै लगी जो रजाई बसंत हौS।
सौ सौ बरस कS पेड़ भी बदलै बदे चोला,
डारी से पात पात गिराई बसंत हौS।
केतनौ रहे नाराज मगर आधी रात के,
जोरू जो आके गोड़ दबाई बसंत हौS।
सूरज कS किरन घूम के धरती पे चकाचक,
जाड़ा के तनी धइके दबाई बसंत हौS।
.............................
चकाचक कविता...मज़ा आ गया होS!
ReplyDelete:-)
ReplyDeleteकितने इशारे है...हाँ आया अब बसंत है..
चकाचक बनारसी जब गाई ,बसंत हौss
ReplyDeleteअब ऐसा कहाँ है भाई ,बसंत हौss
चकाचक जी की स्मृति को नमन !
:):) बढ़िया है ॥समझने में थोड़ी कठिनाई हुई
ReplyDeleteBahut khoob!
ReplyDeleteचकाचक जी का चौचक बसंत ,
ReplyDeleteकवि चकाचक, कविता चकाचक और प्रस्तुतकर्ता चकाचक.. अब इसके बाद मुदा बसंत निपटान छोड़कर भी अइबे करिहौ भैया!!
ReplyDeleteकपार सनकाई देत बा ई बसंत! :-)
ReplyDeleteमज़ा आ गया इस बसंती गीत में .. हास्य का पुट लिए गज़ब की रचना है ...
ReplyDelete("क्षमा" )
ReplyDeleteवैसे तो साल भर, आत्मा रहे बेचैन ।
कवि सचमुच का पगलाई, ता बसंत हौ
http://dineshkidillagi.blogspot.in/2012/02/links.html
Deleteदिनेश की टिप्पणी - आपका लिंक
चारों तरह वसंत का रंग छाया हुआ है और आपने इसमें बनारसी तड़का लगा दिया. क्या बात है...
ReplyDeletevasant ka sundar chakachak rang bhara chitran..sundar rachna..
ReplyDeleteओह...मनवा हरिया गइल...
ReplyDeleteखूब सुन्नर रचना...
बना रहे बसंत! :)
ReplyDeleteबाबू बेचैन की कविता जब जब भी ब्लॉग पे आई
ReplyDeleteतब तब समझ कि आयल बा चौचक बसंत हौ!
ये बसंत भी बड़े मजे लूट रहा है इन दिनों :)
ReplyDeleteबात तो दमदार है..बसंत तो ऐसे ही आता है..
ReplyDeleteमजा आ गया गुरू। ऐसी बसंती रचना पढ़वाने के लिये बहुत शुक्रिया।
ReplyDeleteअच्छा लगा इसे पढ़कर शुक्रिया यहाँ बाँटने के लिए !
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत रचना ... पढ़वाने के लिए आभार
ReplyDeleteसुन्दर सृजन, सुन्दर भावाभिव्यक्ति, बधाई.
Deleteकृपया मेरे ब्लॉग" meri kavitayen" की नवीनतम पोस्ट पर पधार कर अपनी अमूल्य राय प्रदान करें, आभारी होऊंगा.
चकाचक है चकाचकजी की कविता। :)
ReplyDeleteमौज लूट रहे आज सर्दी का अंत है
ReplyDeleteफूलों पे मंडराए भंवरा बगरो बसंत है ||----निठल्ल
तो हियाँ कौन बैठल बा-संत है