कुछ पकड़ने में कुछ छूट जाता है। पढ़ो तो लिखना छूट जाता है। लिखो तो
पढ़ना छूट जाता है। घूमो तो दोनो छूट जाता है। ठहरो तो घूमना छूट जाता है। आभासी
दुनियाँ में विचरण करो तो यथार्त से परे चले जाते हैं। घर गृहस्थी में जुटो तो
आभासी दुनियाँ से नाता टूट जाता है। कभी तो हालत शेखचिल्ली जैसी हो जाती है। शेखचिल्ली
एक कटोरा लेकर तेल लेने गया था। कटोरा भर गया। दुकानदार ने कहा, "अभी और तेल है।" शेखचिल्ली ने कटोरा पलट कर पींद में तेल ले लिया। मूल गिरा दिया बस पेंदी में
जितना अटा लेकर घर आ गया। जब लोग उस पर हंसने लगे तो उसे ज्ञान हुआ कि मैने तो मूल
ही गिरा दिया !
कभी-कभी अपनी हालत भी वैसी ही हो जाती है। हमे इसका आभास ही नहीं होता कि हमने
क्या पाया, क्या खो दिया। हमें इसका अहसास भी नहीं होता कि हमें पाना क्या था ! हथेली एक, उंगलियाँ पाँच। अपनी मुठ्ठी से अधिक किसने क्या पाया है? धूप पकड़ने की कोशिश में अंधेरा ही तो बांध कर घर लाया है! पाने की खुशी कम, खोने का शोक अधिक मनाया है। छूटने के मातम तले जीवन बिताया
है।
फरवरी का अंतिम सप्ताह, आगे मार्च का महीना। दफ्तर में काम का बोझ। इधर
बसंत को ढूँढता, फागुन की आहट से मचलता कवि मन तो उधर दायित्व का एहसास। चुनाव,
राजनैतिक उधल पुथल, सत्ता का हस्तांतरण, समाचार सुनने की व्यग्रता, एक जान बीसियों शौक। इन
सब के साथ साथ आकस्मिक घरेलू दायित्व। किसी अंग्रेज साहित्यकार ने लिखा है...When
rape is necessary then enjoy it ! जब बलात्कार अवश्यसंभावी हो जाय
तब उसका विरोध नहीं करना चाहिए..आनंद उठाना चाहिए ! पता नहीं
सही लिखा है या गलत लेकिन मैने भी यही किया। पुत्री को लेकर एम बी ए की GDPI दिलाने हैदराबाद जाना पड़ा तो सोचा जब जाना ही पड़ रहा है तो क्यों न
हैदराबाद घूमने जा रहे हैं, ऐसा सोचा जाय। साथ में श्रीमति जी को भी ले लिया।
हैदराबाद मेरे लिए एकदम से नया शहर। ट्रेन से लगभग 30 घंटे का रास्ता। ट्रेन में आरक्षण की समस्या। जाने का वेटिंग टिकट
निकाला जो किस्मत से कनफर्म हो गया। आने का टिकट तीन किश्तों में निकाला।
सिकंदराबाद से नागपुर, 6 घंटे बाद दूसरी ट्रेन से नागपुर से इटारसी और फिर 10 घंटे
बाद इटारसी से वाराणसी। इटारसी तक तो रिजर्वेशन मिल गया लेकिन इटारसी के बाद
वाराणसी तक का टिकट अंत तक कनफर्म नहीं हुआ। 27 फरवरी की शाम
ट्रेन में बैठा तो 28 की रात लगभग 10 बजे हैदराबाद पहुँचा।
रात भर जाड़े में
दिनभर गर्मी में
चौबिस घंटे
मानो पूरा एक साल
बीत गया
लोहे के घर में।
बनारस से चले
शाम पाँच बजे
इलाहाबाद पहुँचे
रात आठ बजे
आयी ठंडी हवा
बंद हुई
शीशे की खिड़कियाँ
लोहे के घर में।
सतना से इटारसी
चली सुरसुरी ठंडी हवा
निकले चादर
बांधे मफलर
कंपकपाई हड्डियाँ
रात भर
लोहे के घर में।
रातभर
कपाया मध्यप्रदेश ने
भोर हुई
सहलाया महाराष्ट्र ने
आंध्रा ने किया स्वागत
चली गर्म हवा
लोहे के घर में।
कहां ढूँढ रहे थे
रात भर कंबल
याद आ रही थी
घर की रजाई
कहाँ तलाशने लगे
शीतल पेय
आइस्क्रीम
झटके में बदलता है
मौसम
लोहे के घर में।
....................................
लो जी ! यह तो कविता ही बन गई !
रात सिंकदराबाद, होटल ताजमहल में ठहरे। एक दिन का समय लेकर चले थे सो सुबह उठकर पहुँच गये
चारमीनार। चारमीनार में जैसे ही आटो रूकी एक फोटोग्राफर प्रकट हुआ। अपनी कई फोटू
दिखाकर बोला...ऐसी फोटो खिंचवानी है ? मैने कहा.. नहीं यार, मेरे पास कैमरा है। वह तपाक से बोला..आपके कैमरे से खींच देते हैं, एकदम
ऐसी वाली आयेगी। आप नहीं खींच पाओगे। एक स्नैप के 5 रूपये लगेंगे। मैने भी सोचा कि
हम तीनो की फोटो कोई दूसरी ही खींच पायेगा। ऐरे गैरे से खिंचवाने से अच्छा है पाँच
रूपया दे ही दें। बोला..चलो खींच दो। वह हमे एक तरफ ले गया और धड़ाधड़, मेरे मना करते-करते 8 स्नैप खींच दिया। मैने कहा तुम लाख खींचो पैसा तो
हम एक के ही देंगे, तब जाकर रूका। बड़ी मुश्किल से 20 रूपैया देकर जान छुड़ाई। जब सही
स्थान मालूम हो गया तो बाकी फोटू तो हम भी खींच सकते थे !
कुछ
पकड़ने में कुछ छूट जाता है। संस्मरण लिखो तो होली का
त्योहार छूट जाता है। गोजिये के समानों की लिस्ट बगल में धरी है, पप्पू चाय की
दुकान में होली के पोस्टर चिपक चुके हैं। मित्र लोग होलियाना मूड में
फोनियाये जा रहे हैं...का यार ! घरे से निकलबा कि
ब्लगवे में चिपकल रहब। इंटरनेट न हो गयल जी कs जंजाल हो गयल। आवा,
इहाँ से फोटू हींच के चिपकावा फेसबुक में..! मजा आ जाई। अब होली तो नहिये छूटने देना है..संस्मरण...फिर कभी। क्रमशः मान
लीजिए। सभी को होली की ढेर सारी शुभकामनाएं।
बढ़िया यात्रा संस्मरण .... होली की शुभकामनायें
ReplyDeleteघूम भी आये,
ReplyDeleteमन भी रमाये,
फोटू खिंचाए ,
कविता बनाये
अब होली मनाये,
हमें गुझिया खिलाये !
बहुत मुबारक हो !
भईया जी काम तो सारे हो गए ... कुछ छूटा भी नहीं ... पोस्ट भी मजेदार हो गयी ... कविता तो लाजवाब हो गयी ... तो अब होली भी चकाचक हो जायगी ... ये नहीं छूटेगी ...
ReplyDeleteहोली की बहुत बहुत मंगलकामनाएं ...
बिटिया को शुभकामना, मात-पिता का स्नेह ।
ReplyDeleteसफल यात्रा हो प्रभू, बरसे मेहर-मेह ।
बरसे मेहर-मेह, छूटने कुछ न पाए ।
न कोई संदेह, समझ-दृढ़ता शुभ आये ।
पिता श्री बेचैन, भटकना इनकी आदत ।
यह होली की रैन, सभी का स्वागत-स्वागत ।।
दिनेश की टिप्पणी : आपका लिंक
dineshkidillagi.blogspot.com
होली है होलो हुलस, हुल्लड़ हुन हुल्लास।
कामयाब काया किलक, होय पूर्ण सब आस ।।
कुछ पकड़ने से कुछ छूट जाता है..हमारे पास जो कुछ है, पकड़े रहते हैं..
ReplyDeleteक्या पकड़े रहते हैं ?
Deleteहोली की शुभकामनायें :)
छुट्ने के क्रम मे भी बहुत कुछ पकड लिया आपने.होली की हार्दिक शुभकामनाए....
ReplyDeleteपरी देश के बारे में कुछ बतायेंगी?
Deleteअच्छा संस्मरण ...आप सपरिवार ६ घंटे नागपुर में रहे हमें पता होता तो जरुर आप सब से मिलने आते... आपको सपरिवार होली की शुभकामनाएं...
ReplyDeleteसंध्या जी ,
Deleteदेवेन्द्र जी का हाल ना पूछिये ! वे दुनिया में आधी शताब्दी से टिके हुए हैं और हमको भी मिलने का मौक़ा नहीं दिया :)
यह चूक तो हो गई संध्या जी। क्या कहें..
Deleteजहां उम्मीद थी नहीं मिला कोई
यहां तो उम्मीद ही नहीं थी कोई।
होली के पावन पर्व की आपको हार्दिक शुभकामनाये !
ReplyDeleteअनुज वधु और भतीजी की मुस्कराहट की तुलना आपकी मुस्कराहट से की :)
ReplyDelete( देखो और फ़र्क खुद जान जाओ )
छूटने की फ़िक्र छोडिये , जो पाया उस का आनंद लीजिये ।
ReplyDeleteइस आभासी दुनिया में कुछ नहीं छूटता ।
होली की शुभकामनायें ।
फिर भी बहुत कुछ पकड़ गए आप तो- परिवार का देशाटन, बिटिया की परीक्षाएँ, अपने/हमारे लिए पोस्ट.....! होली को पकड़ने की जरूरत ही नहीं, होली खेलने वाले खुद आपको पकड़ लेंगे!!
ReplyDeleteहोली की फुल मस्ती मुबारक...
समयानुकूल रचना... बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteहोली की शुभकामनाएं....
आपको सपरिवार होली की शुभकामनायें ...
ReplyDeleteये क्या सक्सेना जी ? होली के दिन भी परिवार चिपका दिया :)
Deleteबंदे ने साल भर इस एक दिन के लिए क्या क्या सपने देखे होंगे :)
बहुत अच्छी प्रस्तुति| होली की आपको हार्दिक शुभकामनाएँ|
ReplyDeleteसफ़र जैसा भी रहा हो, आपके 20 रुपये वसूल हो गये. फ़ोटो बहुत बढिया है (और पहले पैरा का विचार भी)। होली की शुभकामनायें!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सस्मरण बन गया है,जीवन के इस सत्य के साथ कि येक को पकडो तो दूसरा छूट जाता है.अब ये आदमी के ही हाथ में है,कि वो ज्यादा क्या पकडता है !
ReplyDeleteहमरी टिप्पणी गायब है!!
ReplyDeleteयही तो..मेरी समझ में भी नहीं आ रहा कि वैसे 31 कमेंट दिखा रहा है लेकिन हैं कुल जमा 25 दो बार गिन चुका। स्पैम में भी नहीं है। संतोष त्रिवेदी के ब्लॉग में अली सा ने कुछ नाखुदा के...में घुस जाने की बात कही थी. कहीं उन्हीं के साथ..वहीं तो..!:)
Deleteसुंदर यात्रा वृतांतएवं सार्थक प्रस्तुति....होली की हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDeleteजो हाथ में रह गया वही अपना -यात्रा तो है ही चलता-फिरता अनुभव !
ReplyDeleteHappy Holi.
ReplyDeleteसच कहा हुज़ूर ने, नजरिया सकारात्मक रहे तो अच्छा रहता है। पहला पैरा वाकई गज़ब दर्शन दिखला रहा है।
ReplyDeleteपाँच रुपया फ़ोटो का रेट ठीक ही है। दिल्ली रेलवे स्टेशन पर जूते पालिश करने वले लड़के घूमते हैं और सोल उखड़ा होने की बात कहकर दो रुपया कील की बात कहकर दनादन बीस तीस कील ठोक डालते हैं, कल्लो क्या करोगे..
होली की विलंबित शुभकामनायें, क्रमश: की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
लगता है kuch में एक और h जुड़ गया ...
ReplyDeleteकहाँ किसी को मुकम्मल जहाँ मिलता है? कुछ पकड़ने में कुछ तो छूट ही जाता है.. आगे और पढ़ते हैं!
हमाई टिप्पणी ही गायब है। :)
ReplyDeleteसही है जब की ही नहीं त गायब तो होइबै करी। इस पोस्ट को उसी दिन देखा-पढ़ा था जब चढ़ी थी। आज सोचा टिपिया भी दिया जाये।
चकाचक है मामला। :)
To write a memory objectively is not sufficient for any good writer, it is the subjectivity of opinions that make things interesting. You have a good sense of humor too which helps a lot. I enjoyed reading this and other posts of your blog. Thank you for sharing!
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