कमल-कुमुदनी से पटा, पानी पानी काम ।
घोंघे करते मस्तियाँ, मीन चुकाती दाम ।
मीन चुकाती दाम, बिगाड़े काई कीचड़ ।
रहे फिसलते रोज, काईंया पापी लीचड़ ।
किन्तु विदेही पात, नहीं संलिप्त हो रहे ।
भौरे की बारात, पतंगे धैर्य खो रहे ।।
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इस चित्र को देखकर आशु कवि दिनेश गुप्ता जी ( कविवर रविकर ) ने इतनी सुंदर कुंडली लिखी कि इसे यहाँ लगाने से खुद को रोक नहीं पाया। आभार कविराज।
स्थानः काशी हिंदू विश्व विद्यालय
समयः 25-06-2012 की सुबह
फोटूग्राफरः देवेन्द्र पाण्डेय।