सुना था
एक मछली
करती है
पूरे तालाब को गंदा
देखा
एक मछली
साफ कर रही थी
पूरे तालाब की
गंदगी
और भी होंगी
मछलियाँ
और भी होंगे
तालाब
प्रदूषित नहीं होगा अगर
तालाब का पानी
नहीं मरेंगी मछलियाँ
इनके जीते जी
बनी रहेगी
तालाब की
खूबसूरती
मर गईं
तो नहीं बैठ पाओगे तुम
तालाब के किनारे
सुकून-औ-चैन से।
.....................
.
सुंदर चित्र
ReplyDeleteBade sundar chitr hain ye!
ReplyDeleteजल की रानी... बहुत सुन्दर
ReplyDeleteIndia darpan pr aapko aur aapki tippni ko dekha. Virendra ji ne apki prashnatmak tippni ka answer bhi diya hai.
ReplyDeletevery good thoughts.....
मेरे ब्लॉग
जीवन विचार पर आपका हार्दिक स्वागत है।
क्या बात है साहब ,जलाशय को बींध पकड़ लायी मीन ,लक्ष्य भेदी कैमरे की आँख ...बहुत सुन्दर .कृपया यहाँ भी पधारें -
ReplyDeleteram ram bhai
मंगलवार, 28 अगस्त 2012
आओ पहले बहस करो
http://veerubhai1947.blogspot.com//
Hip ,Sacroiliac Leg Problems
Hip ,Sacroiliac Leg Problems/http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/2012/08/hip-sacroiliac-leg-problems_28.html/
आजमाए हुए रसोई घर के नुसखे
कहाँ से ढूँढकर लाये आप. हेडर वाला चित्र तो लाजवाब है. ऐसे दृश्य देखने को आँखें तरस गयी हैं.
ReplyDeleteढूँढकर नहीं, खींचकर लाये हैं।:)
Deleteमेरा मतलब था दृश्य कहाँ ढूँढे :)मालूम है कि छायाचित्र तो आपने ही खींचे हैं.
Deleteपानी में मछली, सब ठीक है तब तो..खबर तो तब बनती जब यह पानी के बाहर होती..
ReplyDeleteलीजिए बाहर भी निकाल दिया। आपने उचकाया तो कुछ लिख भी दिया।:)
Deleteग्रास कार्प है यह तालाब को साफ़ करती है.....
ReplyDeleteजानकारी देने के लिए धन्यवाद।
Deleteसुंदर चित्र और सटीक बात
ReplyDeleteसच लिखा है ... मछलियां हैं तो तालाब ताज़ा हैं .... चित्र और कलाम दोनों लाजवाब ...
ReplyDeleteबोल मेरी मछली कितना पानी
ReplyDeleteपानी के अंदर चित्र खेंचना : ये भी एक कला है.
हैडर वाली फोटो देख कर मेरी बिटिया ने पूछा की क्या ये हरे हरे कमल का सोफा है बैठने के लिए :))
ReplyDeleteमछली तालाब को गन्दा करती है की नहीं पता नहीं लेकिन मनुष्य उससे कही ज्यादा गन्दा करता है |
पटना में गंगा जी से 'सोंस' नामक जलचर के विलुप्त होने के बाद गंगा का प्रदूषण बहुत बढ़ा.. आपकी सूक्ष्म दृष्टि मुहावरों को भी वास्तविकता के धरातल पर परखती है और चुनौती देती है कि समय के साथ नए मुहावरों को गढने की आवश्यकता है!! बहुत बढ़िया कविता!!
ReplyDeleteबनारस में भी यही हुआ। सोंस नामक जलचर के विलुप्त होने के बाद गंगा का प्रदूषण बहुत बढ़ा।
Deletesundar chitra ...prabhavi kathan ..
ReplyDeletesarthak rachna .....
क्या बात ! :)
ReplyDeleteआहा! अति सुन्दर..
ReplyDeleteआहा.....बहुत बढ़िया फोटू चिपकाएँ हैं देव बाबू ।
ReplyDeleteसच लिखा है मछलियाँ है तो तालाब हैं दिगंबर जी की बात से सहमत हूँ।
ReplyDeleteमछलियाँ होतीं हैं एक जीवित पारितंत्र का पैमाना ,जितनी जीवन्तता उतनी ही मछलियाँ ,पर्यावरण सचेत रचना एक और आयाम सकारात्मक सोच का एक मछली तालाब को साफ़ कर देती है बढ़िया रचना .... .यहाँ भी पधारें -
ReplyDeleteram ram bhai
बृहस्पतिवार, 30 अगस्त 2012
लम्पटता के मानी क्या हैं ?
ए हो देबेन्दर बाबू! बहुत बढ़ियां फुटुवा खींचे हौआ। उत्कृष्ट .....
ReplyDeleteकैप्शन भी रिलिवेंट ....सन्देशपरक। समाज में भी कुछ अच्छी मछलियाँ हैं ...कुछ मरी और सड़ी हुई....किंतु अब संतुलन बिगड़ता जा रहा है।
लगता है ..अब कैमरा की आँख और जुबान दोनो से आपको गहरी मोहब्बत हो गई है...मगर पाण्डेय जी! इतना अच्छा फुटुवा मत खीचा करिये ...फ़ालतू में मेरे ईमान को बेइमान बनाते हैं आप!
गज़ब!
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