18.11.12

ये गहरी झील की नावें....


यह पोखरा-नेपाल की झील - फेवा ताल है। इस झील में नाव चलाते हुए मैने इसकी तुलना गंगा जी से की तो इस गीत का जन्म हुआ। आप भी देखिए और गीत से जुड़ने का प्रयास कीजिए।


ये गहरी झील की नावें
नदी की धार क्या जानें !

रहती हैं ये पहरों में,
डरती हैं ये लहरों से।
उछलती हैं किनारों में,
थिरकती हैं हवाओं से।

जो आशिक हैं किनारों के
भला मझधार क्या जाने !

वो गिरना तुंग शिखरों से,
अज़ब का दौड़ मैदानी।
फ़ना होना समन्दर में,
गज़ब का प्रेम हैरानी।

ये ठहरे नीर की नावें
नदी का प्यार क्या जानें !

अगर है मौत रूकना तो,
बहना ही तो जीवन है।
यदि हों शूल भी पथ में,
चलना ही तो जीवन है।

जो डरते हैं खड़े हो कर
भला संसार क्या जाने !

ये गहरी झील की नावें
नदी की धार क्या जानें !

नोटः दोनो तस्वीरें मेरे कैमरे की हैं। ऊपर वाली अभी की, नीचे वाली पहले कभी किसी समय की।

28 comments:

  1. चकाचक है! ऊपर वाली भी, नीचे वाली भी और ऊपर वाली और नीचे वाली के बीच वाली भी (कविता) ।

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  2. बहुत ख़ूब!
    आपकी यह सुन्दर प्रविष्टि कल दिनांक 19-11-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1068 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

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  3. चित्र के साथ साथ कविता भी बहुत सुंदर और प्रेरणा देने वाली है ....

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  4. वाह
    चित्रात्मक प्रस्तुति
    http://pachhuapawan.blogspot.in/2012/11/blog-post_16.html

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  5. सुन्दर प्रस्तुति

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  6. जो डरते है खड़े हो कर
    भला संसार क्या जाने .....बेहतरीन !!!

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  7. नदी का प्यार ....ये लाईन बहुत अच्छी लगी...

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  8. सुन्दर प्रस्तुति ।

    आभार भाई देवेन्द्र जी ।।

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  9. बहुत ही सुन्दर रचना...
    चित्र भी बहुत सुन्दर है....
    :-)

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  10. सुरसरि का क्या मुकाबला ?

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  11. बहुत सुन्दर.....
    झील जल जायेगी नदी की इस तरफदारी से.....
    :-)

    अनु

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  12. कितना सुन्दर गीत ...और चित्र तो हमेशा की तरह लाजबाब .

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  13. इतनी सुन्दर झील का आनंद ले आए . अब काहे कहे बिसरावत हैं . :)

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  14. उन्हें इस पार लाती हैं
    हमें खुद से मिलाती हैं

    हों कितने पाट ये चौड़े
    दूरी ए दिल मिटाती हैं

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  15. मिल गई जितनी की आपकी ब्योंत नहीं है .

    ये ठहरे नीर की नावें ,नदी का प्यार क्या जाने ,

    शानदार छायानाकन के साथ जानदार रचना .बधाई .

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  16. ये गहरी झील की नावें ,
    नदी की धार क्या जाने
    नदी का प्यार क्या जाने !
    बहुत खूब !
    तस्वीरें बहुत खूबसूरत है . नेपाल यात्रा की याद ताजा हो गयी !

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  17. वाह ... बेहतरीन

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  18. बहुत सुंदर...हाइगा के लिए चित्र ले जा रही हूँ|

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  19. .
    .
    .
    ये गहरी झील की नावें,
    नदी की धार क्या जानें...

    वाकई...



    ...

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  20. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति सुन्दर सन्देश देती हुई बहुत बहुत बधाई

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  21. आपके हाइगा इस लिंक पर
    http://hindihaiga.blogspot.in/2012/11/blog-post_19.html

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  22. गहरी,पर्वतों के बीच की झील का सौंदर्य,मैदान में बहती नदी में नहीं.ये वही नदी यहाँ पे सुस्ताने के बाद मैदान में बहती है.
    झील के सौंदर्य पे भी एक कविता हो जाय.
    हेडर बहुत सुन्दर,और झील का फोटो भी लाजवाब है.

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  23. नदियाँ और किनारे पर लगी नावों के बिम्ब से एक बहुत ही सुन्दर दार्शनिक विचार प्रस्तुत किया है. लेकिन बेचारी नावों को उलाहना देने से पहले, उनकी ये व्यथा तो सुनी होती:
    सफर दिन रात का करके,
    नदी के धार पर चलके,
    जो सुस्ताने को हम आयीं
    किनारे से टिकाकर सिर,
    कवि देकर गया ताना
    कि हम आशिक किनारों के,
    अभी फिर से हमें लहरों
    के है आगोश में जाना
    यही दिन रात का संघर्ष
    कवि देवेन्द्र क्या जाने!!
    /
    क्षमा देवेन्द्र भाई!!

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    1. अच्छा है नावें निर्जीव हैं वरना आपके कमेंट के बाद तो मेरा जीना हराम कर देतीं।..आभार।

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  24. कविता ओर चित्र ... सटीक मिलान है दोनों का ...

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