अटके हो
किसी के आस में
तो झरो!
जैसे झरते हैं पत्ते
पतझड़ में
रूके हो किनारे
साथी की तलाश में
तो बहो!
तेज धार वाली नदी में
बिन माझी के नाव की तरह
धऱती पर पड़े हो
तो उड़ो!
जैसे उड़ती है धूल
बसंत में
हाँ तुमसे भी कहता हूँ...
वृक्ष हो
तो नंगे हो जाओ!
माझी हो
तो संभालो अपनी पतवार!
आँधी हो
तो समझ जाओ!
तुम उखाड़ नहीं पाओगे
कभी भी
किसी को
समूल!
जर्रे-जर्रे में
होती है
आग, पानी, हवा, मिट्टी या फिर..
आकाश बनने की
संभावना।
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