वे दोनो आँखों से अंधे थे। लोग उन्हें सूरदास कहते थे। उनका कोई माई-बाप नहीं था। वे गाँव के स्कूल में रहते थे। गाँव वालों पर पूर्णतया आश्रित थे। उनकी शादी नहीं हुई थी मगर ज़वानी के दिनो में उनकी दिली ख्वाहिश थी कि कोई जीवन साथी मिले तो जीवन कट जाय। एक बार गाँव के लड़कों ने शरारत की। एक लड़के को पायल-धोती पहनाकर उनके पास ले गये। इधर लड़का पैर पटक कर छम-छम पायल बजाता उधर सूरदास का दिल बल्ले-बल्ले हो जाता। लड़कों ने सूरदास के सामने शादी का प्रस्ताव रखा। अंधे को क्या चाहिए, दो आँखें! सूरदास तुरंत राजी हो गये।
बकायदा शादी की तारीख तय की गई और शुभ मुहरत तय कर, बाजे वालों को बुलाकर बाजा बजाया जाने लगा। सूरदास को गधे पर बिठाकर लड़के ले चले बारात। आगे-आगे बाजा, बीच में लड़कों का हुड़दंग और गाँव के लोगों का हुज़ूम। जो भी सुनता कौतूहल वश देखने चला आता और असलियत जानने पर मफलर में मुँह दबाकर मुश्किल से अपनी हँसी रोक पाता।
खबर प्रधान तक पहुँची। वे भागे-भागे आये और लगे लड़कों को जोर-जोर से डांटने। जैसे शेर के आने पर गीदड़ भाग जाते हैं वैसे ही प्रधान के आने पर लड़के भाग खड़े हुए। सूरदास गधे पर बैठे के बैठे रह गये। बहुत दिनो तक गाँव में सूरदास की शादी की चर्चा चलती रही। लड़के कहते-"हम तो आपकी शादी करा ही देते मगर क्या करें? ई प्रधान जो बीच में आ गये। उनसे किसी की खुशी देखी नहीं जाती।" सूरदास प्रारंभ से ही सब समझ रहे थे। मुस्कुराकर बोले-"शादी करने का तो हमारा भी मन नहीं था वो तो तुम लोगों का मन रखने के लिए हमने हाँ कह दिया था। एक अकेले का जीवन तो चलता नहीं पत्नी का पेट कौन भरेगा भला!"
नोट: पिछली पोस्ट में भी आपने सूरदास के बारे में यहाँ पढ़ा था।
नोट: पिछली पोस्ट में भी आपने सूरदास के बारे में यहाँ पढ़ा था।
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बहुत रोचक श्रृंखला आरम्भ की है आपने.....बधाई...
ReplyDeleteye to jankari aaj aapki post padhkar hi hui .thanks
ReplyDeleteसकल जगत कुटलाई, सन्त हृदय बिसराई
ReplyDeleteवाह!
Deleteबहुत खूब !
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, आभार आपका।
ReplyDeleteबहुत खूब....
ReplyDeleteविनोदी सूरदास!
ReplyDeleteबहुत रोचक श्रृंखला...
ReplyDeleteमन की आँखें !
ReplyDeleteबहुत रोचक.
ReplyDeleteबचपन की बातें रही होंगी, नहीं तो किसी की लाचारी का मज़ाक उड़ाना मन को कचोटता है...!!
ReplyDeleteइस सूरदास से न जाने क्यों 'रंगभूमि' के सूरदास की याद ज़ेहन में ताज़ा हो जाती हैं | बढ़िया |
ReplyDeleteइसे कहते हैं बाजी पलटना।
ReplyDeleteऐसा होता था बचपन में ... किसी का मजाक उड़ाना तंग करना ... पर अब लगता है कितना गलत था ...
ReplyDeleteहर नेत्रहीन को लोग सूरदास कहते हैं लेकिन यह अनुचित है क्योंकि सूरदास ( एक महान कवि ) का अर्थ नेत्रहीन नही है ।
ReplyDeleteसही कहा आपने।
Deleteधन्यवाद।
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