एक मैना पिंजड़े के तोते से बहुत प्यार करती थी।
अकेले में पिंजड़े के ऊपर बैठकर ढेरों बातें करती। तोता मैना पर रंग जमाने के लिए
मनुष्यों की बोली बोलता—‘जै श्री राम! जै श्री राम!’ मैना न समझती, न बोल पाती। तोते से मतलब
पूछती। तोता कहता--‘मैं क्या जानूँ ? यह तो आदमी की बोली है, आदमी जाने। मेरे
मालिक ने जैसा सिखाया वैसा मैने सीख लिया।‘
कई वर्षों तक मैना नहीं आई। तोता मैना की याद में
बहुत दुःखी रहता था। एक दिन तोते की खुशी का ठिकाना न रहा। मैना पहले की तरह उड़ती
हुई आई और पिंजड़े के ऊपर बैठ गई। तोते ने मैना पर भाव जमाने के लिए बोलना शुरू
किया-‘नमो..नमो।‘ इस बार मैना को
आश्चर्य नहीं हुआ। वह भी कई वर्षों तक एक पंडित जी की कैद में रहकर आई थी। वहाँ एक
दूसरा तोता था। जिसे पंडित जी बोलना सिखाते थे। उसने भी तोते पर रंग जमाने के लिए
बोलना शुरू किया- ‘गोपी कृष्ण कहो बेटू..गोपी कृष्ण।‘ तोते को बहुत आश्चर्य हुआ। उसने भी इसका
मतलब पूछा। मैना ने उत्तर दिया-मैं क्या जानूँ? यह भी आदमी की बोली है। इनकी बोली एक
जैसी थोड़ी न होती है! जैसे आदमी वैसी बोली।‘
................
सबकी अपनी अलग बोली
ReplyDelete:-)
ReplyDeleteयह तो सरासर गलत बात है सर जी, लघुकथा का लालच देकर पूरा ग्रंथ पढ़ा दिया :)
ReplyDelete:) सच में
ReplyDeleteतोता मैना की कहानी तो पुरानी पुरानी हो गई ......ऐसा एक ठो लिल्लन टाप गाना सुना करते थे जी ..जे तोता मैना कपल तो एकदम्मे नयका फ़ीलिंग वाला था :) :)
ReplyDeleteतोतों की बोली पालने वालों पर निर्भर करती है !!
ReplyDeleteहमें पता है हम भी तोते हैं !
ReplyDelete"मैना ने उत्तर दिया-मैं क्या जानूँ? यह भी आदमी की बोली है। इनकी बोली एक जैसी थोड़ी न होती है! जैसे आदमी वैसी बोली।‘"
ReplyDeleteसारी सम्भावनायें इसी में हैं कि मैना जानती है कि आदमी का सच क्या है।
जैसे लोग वैसी बोली ....
ReplyDelete:-)
शु्क्र है, मैना मेरे यहां नहीं आई वर्ना मैं उसे कुछ और ही लफंदर सिखा देता...
ReplyDeleteकार्टून बनाना सीख लेती।
Deleteसही बोली :)
ReplyDeleteपंडित विष्णु शर्मा के बाद आज पंडित देवेन्द्र पांडेय की यह कथा बिल्कुल सही नोट को हिट करती है! दिल खुश हो गया!! कमाल देवेन्द्र भाई!!
ReplyDeleteदोनों का टिकिट पक्का है। तोता का भी मैना का भी।
ReplyDeleteकरारा व्यंग्य ..।
ReplyDelete:):) शुक्र है कि अच्छी बोली ही सीखी
ReplyDeleteजैसा आदमी वैसे बोली ... बात तो सही कही है ...
ReplyDeleteकोस कोस बदले पानी , दस कोस पर बानी
ReplyDeleteधारदार
ReplyDeleteकहानी बहुत अच्छी लगी |
ReplyDeleteन जाने कितने तोता मैना प्रभु का नाम रटे जा रहे हैं बिना यह जाने कि उनका मर्म क्या है...गहरा संदेश देती बोध कथा !
ReplyDeleteमज़ेदार !
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