वे पहले
हाथ मलते हैं
फिर अपनी
चाल चलते हैं
इधर कोशिश
अपनी दाल गल जाये
उधर उम्मीद
बकरा हलाल हो जाये
हम सोचते हैं
नई सुबह
कभी तो आएगी
वे सोचते हैं
बकरे की अम्मा
कब तक खैर मनाएगी!
हाथ मलते हैं
फिर अपनी
चाल चलते हैं
इधर कोशिश
अपनी दाल गल जाये
उधर उम्मीद
बकरा हलाल हो जाये
हम सोचते हैं
नई सुबह
कभी तो आएगी
वे सोचते हैं
बकरे की अम्मा
कब तक खैर मनाएगी!
बहुत खूब
ReplyDeleteकम्माल!!
ReplyDeleteबहुत खूब !
ReplyDelete: नव वर्ष २०१५
सार्थक प्रस्तुति।
ReplyDelete--
नव वर्ष-2015 आपके जीवन में
ढेर सारी खुशियों के लेकर आये
इसी कामना के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हम सुबह का इंतजार करते रहेंगे और वे बकरा हलाल करते रहेंगे . नववर्ष मंगलमय हो .
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