हम शहरियों के लिए
कितना कठिन है
धोना
सुखाना
चक्की से पिसा कर
घर ले आना
आंटा!
उनकी नियति है
जोतना
बोना
उगाना
पकने की प्रतीक्षा करना
काटना
दंवाई करना
खाने के लिए रखकर
बाजार तक ले जाना
गेहूँ!!!
हमारे पास विकल्प है
हम
बाज़ार से
सीधे खरीद सकते हैं
आंटा
उनके पास कोई विकल्प नहीं
उन्हें
उगाना ही है
गेहूँ
हम खुश हैं
उनकी मजबूरी के तले
हमारे सभी विकल्प
सुरक्षित हैं!
कितना कठिन है
धोना
सुखाना
चक्की से पिसा कर
घर ले आना
आंटा!
उनकी नियति है
जोतना
बोना
उगाना
पकने की प्रतीक्षा करना
काटना
दंवाई करना
खाने के लिए रखकर
बाजार तक ले जाना
गेहूँ!!!
हमारे पास विकल्प है
हम
बाज़ार से
सीधे खरीद सकते हैं
आंटा
उनके पास कोई विकल्प नहीं
उन्हें
उगाना ही है
गेहूँ
हम खुश हैं
उनकी मजबूरी के तले
हमारे सभी विकल्प
सुरक्षित हैं!
बहुत दयनीय हालत है किसान की1 सुन्दर रचना1
ReplyDeleteएक सही तस्वीर दिखाई आपने | हम शहरी लोग तो बाज़ार पर निर्भर करते हैं पर उनकी रोज़ी रोटी तो वही है |
ReplyDelete"उनकी मज़बूरी के तले
ReplyDeleteहमारे सभी विकल्प
सुरक्षित हैं.........."
बहुत खूब देवेन्द्र सर ....... सादर नमन।
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (19-04-2015) को "अपनापन ही रिक्तता को भरता है" (चर्चा - 1950) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
आभार आपका।
Deleteआभार आपका।
Deleteवाह, बहुत सही कहा आपने
ReplyDeleteकिसान का दर्द बखूब ज़ाहिर किया है इस रचना में। डिब्बाबंद भोजन करने वाली संस्कृति को यह बात समझ पाना मुश्किल है।
ReplyDeleteसुन्दर व सार्थक प्रस्तुति..
ReplyDeleteशुभकामनाएँ।
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
धन्यवाद अपनी व्यस्तता से समय निकल कर इस और रुख करने के लिए। आपके सुझाव के आधार पर आगामी कविताओं में सुधार का निश्चित ही प्रयास करूँगी। इस अमूल्य मार्गदर्शन के लिए हृदय से धन्यवाद। और आगे भी आपका मार्गदर्शन अपेक्षित है आदरणीय।
ReplyDeleteक्षमा चाहूँगी। बताये अनुसार संशोधन कर दिया है।
Deleteइतने लोगों में उस स्वच्छ शब्द की अशुद्धता के बारे में आपने ही अवगत
कराया कृतज्ञ हूँ। आभार।
बहुत बहुत अच्छी रचना। गेंहू हमारा जीवन है।
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा आपने...हमें तो सिर्फ गेहूं पिसवाना ही पड़ता है . लेकिन गेहूं उगाने में कितनी मेंहनत है यह किसान ही जानता है . बढ़िया प्रस्तुति...
ReplyDeleteकिसान की व्यथा गहराई से .... सहज शब्दों में
ReplyDeleteवाह