20.12.15

जाड़े वाला प्यार


घने कोहरे से लड़कर
लाया हूँ
तुम्हारे लिए
एक मुठ्ठी
जाड़े की धूप
तुम अपनी मॉर्निंग
गुड कर लो।
चलता हूँ काम पर
आऊँगा शाम ढले
जेब में भरकर
मूँगफली
झोले में भरकर
आलू, छिम्मी, टमाटर, आदी, और….
हरी मिर्च भी
ठंड बढ़ रही है
हाँ!
याद आया
छत पर रख्खी तो हैं तुमने सहेजकर
आम की सूखी लकड़ियाँ
मंगा लेना
दूध वाले यादव जी के घर से
दो-चार सूखी गोहरी
जलाना बोरसी
सेकेंगे हाथ
हम सब
मिल बैठकर
तुम्हें पता है?
बहुत अच्छा बनाती हो तुम
छिम्मी भरे पराठे,
टमाटर की मीठी चटनी
और...
अदरक वाली चाय।
…........................
.....देवेन्द्र पाण्डेय।

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