(१)
भरम
दौड़
घर से मन्दिर तक
परसाद पेट में
दुनियाँ
मुठ्ठी में!
घर से मन्दिर तक
परसाद पेट में
दुनियाँ
मुठ्ठी में!
..............
(२)
धूप
धूप
धरती पर
घूमने चली।
भीग गये कपड़े
बादल ने किये झगड़े
हो गई पागल
दिखी कोई बदली
धूप
कलियों को
चूमने चली।
कलियों को
चूमने चली।
..................
(३)
चिड़िया
आ चरी आ
खा चरी खा
पढ़ चरी पढ़
पढ़ चरी पढ़
पिंजड़ा लिख
सपना लिख
कैद हो जा
सपना लिख
कैद हो जा
उड़ गई तो बाज पकड़ ले जायेगा!
................................
(४)
सत्य
डाल से गिरे
छत-आँगन में फैले
गंध हीन
मरे पत्ते
छत-आँगन में फैले
गंध हीन
मरे पत्ते
ढेर बने
आग मिली
धुआं-धुआं
जले पत्ते
आग मिली
धुआं-धुआं
जले पत्ते
वृक्ष ने कहा..
'यही सत्य है!'
दो-चार और..
झरे पत्ते.
'यही सत्य है!'
दो-चार और..
झरे पत्ते.
चिडिये का सुंदर होना पिंजड़े को दावत देना है ,चारों कविताएँ अछ्छि लगीं ।
ReplyDeleteजय मां हाटेशवरी...
ReplyDeleteअनेक रचनाएं पढ़ी...
पर आप की रचना पसंद आयी...
हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 07/06/2016 को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की गयी है...
इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।
बहुत ख़ूब। अच्छी रचनाएँ।
ReplyDeleteबहुत ख़ूब। अच्छी रचनाएँ।
ReplyDeleteचारों कवितायेँ बहुत सुन्दर हैं। .
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ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
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