8.1.17

चुनाव और दंगल

"चुनाव और दंगल" विषय सुनते ही #मिर्जा की ऑंखें भर आईं। मुश्किल से मुँह खोल पाया और भर्राई आवाज में बोल पड़ा-सब आपस में गड्डमगड्ड हौ पाण्डे! पहिले दंगा भयल रहल फिन चुनाव। एहर चुनाव क घोषणा भयल ओहर दँगा शुरू। कब्बो चुनाव के बादो दँगा भयल। अउर कब्बो-कब्बो त वोटिंग अउर दंगा दुन्नो साथे-साथ चलल। ई दंगा में सब बहुत नँगा हो जाला पाण्डे! हमार केतना नुकसान भयल.....
मुझे बीच में मिर्जा को रोकना पड़ा-चुप पागल! अब एक्को शब्द बोलबे त धकेल देब यहीं छत से, गिर जइबा नीचे। हम कहत हई 'दंगल' अउर तू सुनत हउआ 'दँगा'! पचासे ग्राम में जै श्री राम हो गइला!
मिर्जा को गहरा संतोष हुआ- हाँ, यह विषय ठीक है। चुनाव में दंगल हो, दँगा कभी नहीं होना चाहिये। फिर हँस कर बोला -ई बात पे एक पैग अउर पिलाव! बढ़िया बात हौ..चुनाव और दंगल! लेकिन न जाने काहे, हमें लगत हौ दंगल शब्द क चुनाव तू हमें च्यूतिया बनाये बदे करत हउआ! ऊ कउन चुनाव हौ पाण्डे जेहमें कत्तो दंगा ना भयल? जब-जव चुनाव क तारीख़ नजीक आवला लगेला कि दँगा होखे वाला...
मुझे बीच में ही मिर्जा को टोकना पड़ा। कहीं फिर अतीत में न चला जाय...
तोहें याद हौ मिर्जा?-दो बैलों की जोड़ी है, एक अंधा एक कोढ़ी है।
तोहे याद हौ पाण्डे?- जिस दिये में तेल नहीं है, वो दिया बेकार है।
गली-गली में शोर है, इंदिरा गांधी....है।
समग्र क्रान्ति अब नारा है, हिंदुस्तान हमारा है।
राम लला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे।
घाँस कपार लेहलन सारे! हमने ठहाके लगाते हुए एक दूसरे को देखा-कितनी बार उम्मीदें जुटाईं लोगों ने और न जाने कितनी बार लोगों का विश्वास टूटा!!!
मिर्जा! तुम हँसी-हँसी में बड़ी गम्भीर बात बोल जाते हो! धीरे-धीरे नारे का स्तर भी गिरा है न?
मिर्जा खिसियाकर पूछते हैं-अच्छा! कौन सी वह अच्छी बात है जिसका स्तर बढ़ा है?
चुनाव में कहॉं-कहाँ दंगल होता है पता है? शुरुआत उस घर से होता है जिस घर के लोग चुनाव लड़ते हैं फिर शहर में होता है। फिर देखते ही देखते गली-मोहल्ले घर-घर में दंगल होने लगता है।
ये पार्टियाँ तो देश सेवा के लिये बनी हैं न मिर्जा?
दंगल के शोर से सेवा होता है पाण्डे? सेवा का इरादा तो बुद्ध ने किया था। राज पाट छोड़ निकल पड़े थे चुपचाप जंगल में। ये चुनाव का दंगल तो राज-पाट पाने के लिये है।

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