बहुत दर्द होता है
मरने से पहले
एक बार मर जाओ
तो आसान होता है जीना!
मरने से पहले
एक बार मर जाओ
तो आसान होता है जीना!
हँसो मत
अपने जीवित होने का सुबूत दो
मरने के बाद
जानते हो क्या होता है?
आदमी
ट्रेन में बैठ कर
मेरी तरह
पटरी-पटरी भागता है!
एक कदम चले बिना
मीलों की दूरी का हिसाब मांगता है
बैठे-बैठे
खिड़की से
मजदूरों, किसानों को धूप में काम करते देख
उन्हें मुर्दा
खुद को जिंदा समझता है!
बहुत आसान है
मरने के बाद
पटरी पकड़ कर
चलते चले जाना
अपने जीवित होने का सुबूत दो
मरने के बाद
जानते हो क्या होता है?
आदमी
ट्रेन में बैठ कर
मेरी तरह
पटरी-पटरी भागता है!
एक कदम चले बिना
मीलों की दूरी का हिसाब मांगता है
बैठे-बैठे
खिड़की से
मजदूरों, किसानों को धूप में काम करते देख
उन्हें मुर्दा
खुद को जिंदा समझता है!
बहुत आसान है
मरने के बाद
पटरी पकड़ कर
चलते चले जाना
यकीन न हो तो
मरने से पहले का दर्द
और
मरने के बाद का सुकून
उस किसान से पूछो
जिसने जीवन के बोझ से घबड़ाकर
आत्महत्या कर लिया
मरने से पहले का दर्द
और
मरने के बाद का सुकून
उस किसान से पूछो
जिसने जीवन के बोझ से घबड़ाकर
आत्महत्या कर लिया
जीना सरल नहीं है
मरना तो और भी कठिन है
आसान है तो बस्स
मरने के बाद
जीते चले जाना
मरना तो और भी कठिन है
आसान है तो बस्स
मरने के बाद
जीते चले जाना
क्या कहा?
आत्महत्या करेंगे!
तब तुम
मेरी बात समझ ही नहीं पाये
आत्महत्या
वही कर पाता है
जो जीवित है।
आत्महत्या करेंगे!
तब तुम
मेरी बात समझ ही नहीं पाये
आत्महत्या
वही कर पाता है
जो जीवित है।
बहुत खूब।
ReplyDeleteभावपूर्ण!!
ReplyDeleteअंतरराष्ट्रीय हिन्दी ब्लॉग दिवस पर आपका योगदान सराहनीय है. हम आपका अभिनन्दन करते हैं. हिन्दी ब्लॉग जगत आबाद रहे. अन्नत शुभकामनायें. नियमित लिखें. साधुवाद
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
सही है, इस भागदौड़ वाली जिंदगी में जिंदा रहकर भी जिंदा रहने का अहसास मृतप्राय ही है, दुखद है जीतेजी मर जाना ।
ReplyDeleteबहुत खूब , मंगलकामनाएं !
ReplyDeleteये जीना भी कोई जीना है | सब जीने का भ्रम ही पाले है |
ReplyDeleteजीवन के साथ कई द्वन्द्व तो जुड़े ही हैं
ReplyDeleteएक बार
ReplyDeleteफिर एक बार मरना
... रूह होकर जीना ही असल ज़िन्दगी है
मौत का सफर ??? वाह
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteOhh..gazab ki kavita hai!
ReplyDeleteAatmhatya wahi kar pata hai
Jo jeevit hai!!
Shaandar !!
मोबाइल से ब्लॉगिंग अच्छी होती है लगता है... करते रहिये... ब्लॉग पर लोहे के घर के बारे में पढना और अच्छा लगेगा...
ReplyDeleteजय हिंद...जय #हिन्दी_ब्लॉगिंग...
ReplyDeleteजय हिंद...जय #हिन्दी_ब्लॉगिंग...
ReplyDeleteघास फूस की कुटिया में संत निवास करते हैं, लेकिन लोहे के घर का संत इतनी गहरी और दार्शनिक सोच वाली रचनाएँ सृजन कर सकता है, सोचकर ही नतग्रीव हूँ आपके समक्ष... छोटे भाई हैं आप, नहीं तो पैर छू लेता, क्योंकि यह रचना दिल को छू गई!
ReplyDelete_/\_
Deleteबेहद गहन और मारक
ReplyDeleteमर कर जीना सरल है ..जब ज़मीर ही मार दिया तो फिर कैसे भी जियें ... गहन अभिव्यक्ति ...हर पाठक एक नया अर्थ लेगा .
ReplyDeleteउत्साह बढ़ाने के लिए आप सभी का आभारी हूँ.
ReplyDeleteयह आत्महत्या को उकसा तो नहीं रही?
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