17.12.17

एक दिन की जिन्दगी

जिंदगी
चार दिन की नहीं
फकत
एक दिन की होती है।
हर दिन
नई सुबह
नया दिन
नई शाम और..
अंधेरी रात होती है।
सुबह
बच्चे सा
पंछी-पंछी चहकता
फूल-फूल हंसता
दिन
जैसे युवा
कभी घोड़ा
कभी गदहा
कभी शेर
कभी चूहा
शाम
जैसे प्रौढ़
ढलने को तैयार
भेड़-बकरी की तरह
गड़ेरिए के पीछे-पीछे
चलने को मजबूर
रात
जैसे बुढ़ापा
जुगनू की रौशनी को
नसीब मान
समय की टिक-टिक
ध्यान से सुनता
पुनर्जन्म/नई सुबह से पहले
मर जाता।
....देवेन्द्र पाण्डेय।

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