"मेरी प्रिय पुस्तक" श्रृंखला के तहत अलग अलग टैग लाइन्स के साथ फेसबुक के तमाम मित्रों की सक्रियता और जोश देखकर अब विश्वास हो चला है कि फेसबुक पर कितना भी समय हल्की फुल्की बातों में बिता लिया जाय किन्तु यहाँ सार्थक परिचर्चा करने वाले असंख्य प्रबुद्ध लोग मौजूद हैं। Manish Vaidya जी द्वारा प्रस्तावित इस कार्यक्रम को आगे बढ़ाने में जिन लोगों ने प्रत्यक्ष भूमिका का निर्वाह किया है, उन्हें हार्दिक धन्यवाद। आप लोगों ने सिद्ध किया है कि इस मंच की उपयोगिता केवल अपनी अपनी उपलब्धियाँ गिनाने तक ही सीमित नहीं है।
आप सभी की तरह मैं भी हर रोज थोड़ा बहुत सहयोग इस श्रृंखला को देने की कोशिश कर रहा हूँ।
आज ऐसी दो पुस्तकों के आवरण जो भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित हो चुकी हैं। इन दो विशिष्ट कृतियों के नाम हैं- * माटी मटाल * एवं
* मृत्युंजय *
उड़िया भाषा के गौरव ग्रंथ के रूप में समादृत "माटी मटाल" वस्तुतः भारतीय भाषाओं के सर्वश्रेष्ठ उपन्यासों में गिना जाता है। छह सौ से अधिक पृष्ठों में समाये "माटी मटाल" की कथा भारतीय जीवन विशेषकर ग्राम्य जीवन और संस्कृति की अद्वितीय दास्तान है। मूल कथा के बाद इस उपन्यास का सबसे सबल पक्ष इसका अनुवाद है। शंकरलाल पुरोहित साहब ने इस उपन्यास का ऐसा अद्भुत भावानुवाद किया है कि पढ़ते समय कहीं से यह अनुभव होता ही नहीं कि यह अनुवाद है। इस तरह की महाकाव्यात्मक कृतियों के अनुवाद में अनुवादक की भूमिका अतिशय महत्वपूर्ण होती है। यदि अनूदित करने वाला रचनाकार भावानुवाद करने की बजाय शब्दानुवाद में उलझा तो उच्चकोटि की किताब भी बेअसर साबित हो सकती है।
1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में असम की भूमिका पर आधारित "मृत्युंजय" असमिया भाषा के कालजयी उपन्यासों में अग्रगण्य है।
पराधीन भारत के उस दौर में असम के सामान्य जनमानस, उनके आक्रोश और विद्रोह की यादगार छवियाँ इस उपन्यास में दर्ज हैं।
गोसाईं जैसा अहिंसावादी व्यक्ति आजादी की दुर्निवार चाह में हिंसात्मक आन्दोलन की तरफ़ मुड़ जाता है। असम के तात्कालिक समाज , मानव स्वभाव की विभिन्न छवियों, आंदोलनकर्ताओं के आंतरिक एवं बाह्य संघर्ष, योजनाओं के निर्माण और निर्वाह की मुख्य कथा के समानांतर नायिका के कोमल मानवीय पक्ष की सहज प्रस्तुति उपन्यास को एक अलग कद और सर्जनात्मक ऊँचाई पर ले जाती है। डॉ कृष्ण प्रसाद सिंह मागध द्वारा अनूदित इस उपन्यास में मुख्य चरित्रों के मध्य प्रेम की ऐसी मर्यादित धारा बहती है जहाँ एक न होने की कसक है तो पारस्परिक मोह और आदर भी है।
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, चैन पाने का तरीका - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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