3.12.18

ओ दिसम्बर! -1

ओ दिसम्बर!
तेरे आने की आहट
आने लगी है।

सुबह-शाम 
गिरने लगे हैं
लोहे के घर की खिड़कियों के शीशे
धान कट चुके
खेतों में
बैलों की तरह
दौड़ रहे हैं ट्रैक्टर 
दिखते हैं
सरसों के फूलों भरे चकत्ते,
जुते खेत की सूखी मिट्टी पर 
जीभ लपलपाते/
टुकुर-टुकुर ताकते
कुत्ते,
खिली हुई है 
जाड़े की धूप।

ओ दिसम्बर!
आओ!
स्वागत है
तेरे आने से
अंधियारे की सूखी लकड़ी
फिर जलने को 
मचल रही है
मेरे मन में नए वर्ष की
नई जनवरी
उतर रही है।
...........

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