आज मैंने भी तुमसे खूब प्यार किया
आज तुमने भी मेरा खूब साथ दिया।
छत पर चढ़ा तो झट से लिपट गई मुझसे
थोड़ा ठहरा तो जी भर के मुझे गर्म किया।
पँछी आते हैं, चुगते हैं औ चहकते भी हैं!
एक छुट्टी में, हमने भी ये महसूस किया।
पत्नी ने पाल रख्खे हैं गमलों में कई पौधे
इक गुलाब को हँसकर मैंने आदाब किया।
इस घाट से उस घाट तक चला शाम तलक
आज घण्टों माँ गङ्गा का दीदार किया।
एक कुतिया ने मढ़ी में जने थे कई पिल्ले
कुछ मूर्तियाँ थीं, झुककर, नमस्कार किया।
जाड़े की धूप! तू साए की तरह थी दिनभर
आज तुमने भी मुझसे खूब प्यार किया।
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आज तुमने भी मेरा खूब साथ दिया।
छत पर चढ़ा तो झट से लिपट गई मुझसे
थोड़ा ठहरा तो जी भर के मुझे गर्म किया।
पँछी आते हैं, चुगते हैं औ चहकते भी हैं!
एक छुट्टी में, हमने भी ये महसूस किया।
पत्नी ने पाल रख्खे हैं गमलों में कई पौधे
इक गुलाब को हँसकर मैंने आदाब किया।
इस घाट से उस घाट तक चला शाम तलक
आज घण्टों माँ गङ्गा का दीदार किया।
एक कुतिया ने मढ़ी में जने थे कई पिल्ले
कुछ मूर्तियाँ थीं, झुककर, नमस्कार किया।
जाड़े की धूप! तू साए की तरह थी दिनभर
आज तुमने भी मुझसे खूब प्यार किया।
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आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (01-01-2019) को "मंगलमय नववर्ष" (चर्चा अंक-3203) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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नववर्ष-2019 की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'