4.6.19

हे माँ शारदे !

कुछ शब्द दो

गूँथ कर 

सारे जहाँ के पाप 

हवन कर दूँ

बोल दूँ,

'स्वाहा!



कुछ शब्द दो

तट पर जा

अंजुरी-अंजुरी चढ़ाऊँ

फिर से 

स्वच्छ/निर्मल

कल-कल बहने लगे

सभी नदियाँ।


दूर हो

पर्यावरण का संकट

जीवित रहें

जल चर, थल चर, नभ चर

मर जायें सभी

वृक्षों को काटने वाले 

राक्षस।


चमत्कार करो माँ!

कुछ शब्द दो

उछालूँ जहरीली हवा में

नभ चीर कर बरसें बादल उमड़-घुमड़

भर जाए

ताल-तलैयों से

धरती का ओना-कोना

हरी भरी हो 

खुशी से 

खिलखिलाने लगे 

धरती माँ।

........

5 comments:

  1. सुंदर प्रार्थना..लेकिन शब्दों में दर्द क्यों भरें..हर्ष क्यों नहीं...

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  2. बहुत सुन्दर

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  3. बहुत ही प्यारी रचना

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