पहले सुबह होती थी, शाम होती थी, अब लोहे के घर में, पूरी रात होती है। वे दिन, रोज वाले थे। ये रातें, साप्ताहिक हैं। बनारस से जौनपुर की तुलना में, बनारस से लखनऊ की दूरी लंबी है। रोज आना जाना सम्भव नहीं है। ये रास्ते सुबह/शाम नहीं, पूरी रात निगल जाते हैं और उफ्फ तक नहीं करते!
लखनऊ छपरा एक्सप्रेस है। लखनऊ से रात 9 के आसपास चलती है और सुबह 6 के बाद पहुंचाती है। छः घण्टे का सफर 9 घण्टे में पूरा करती है। इतना मार्जिन समय है कि लगभग समय से चलती और समय पर ही पहुंचाती है। पटरियों की खटर पटर का शोर, एक्सप्रेस ट्रेन की तरह तेज नहीं सुनाई पड़ता। झूला झुलाते, रुकते-रुकाते, आराम-आराम से चलती है यह ट्रेन।
अच्छा है। जितने समय में पहुंचा सको, पब्लिक को उतना ही समय बताओ। ये क्या कि बताया पाँच घण्टा और पहुँचाया 9 घण्टे में। इस ट्रेन के लिए रेलवे की यह इमानदारी,
काबिलेतारीफ है। 6 घण्टे के सफर को 9 घण्टा बताती है और 9 घण्टे में पहुँचा भी देती है। सोते-सोते सफर कट जाय तो इससे बड़ा भाग्य और कहाँ! इसीलिए मैं इस ट्रेन से आना/जाना पसंद करता हूँ। सोना ही तो है, घर में सोओ या लोहे के घर में।
स्लीपर बोगी है। साप्ताहिक यात्रा में ए.सी. बोगी अधिक खर्चीली है। अभी मौसम अनुकूल है, अधिक गर्मी/सर्दी हुई तो देखा जाएगा। वैसे आप इसे मध्यम वर्गीय कृपण सोच कहने के लिए स्वतंत्र हैं लेकिन जितना सहन हो सके उतना मौसम के साथ रहना, हर दृष्टि से अच्छा है।
जहाँ लाभ है वहीं, स्लीपर में चलने के नुकसान भी हैं। स्लीपर में ही चलने का परिणाम था कि एक दिन, पाण्डे जी का दाहिने पैर का चप्पल गुम हो गया था और बाएँ पैर के चप्पल को पहने, लंगड़ाते-लंगड़ाते घर पहुँचे थे। इस उम्मीद में कि आते/जाते कभी दाएँ पैर का चप्पल किसी पटरी के किनारे पड़ा मिल गया तो उठाकर ले आएंगे और बाएँ पैर के चप्पल के बगल में रखकर उससे बोलेंगे..लो! अब जोड़े से रहो, खुश रहो, मस्त रहो। हाय! बाएँ पैर का चप्पल आज भी अपने साथी की प्रतीक्षा कर रहा है। ए. सी. बोगी में, स्लीपर बोगी की तरह, छोटे स्तर की चोरियाँ नहीं होतीं, वहाँ अक्सर ऊँचे लोग ही सफर कर पाते हैं!
ऊँचे लोगों की बात चली तो बाबाओं की याद हो आई। आजकल बाबाओं की चर्चा फिर सुर्खियों में है। ये बाबा बड़े कृपालू होते हैं। अपनी ख्याति बनाए रखने के लिए समय-समय पर अपना डंडा/झण्डा गाड़ कर, फहरा ही देते हैं। बाबा के पकड़े जाने की खबर सुनकर मैने अपने एक ब्राह्मण मित्र से कहा..क्या बाबा! यह क्या हो रहा है? (इधर पूर्वान्चल में ब्राह्मणों को बाबा कहने का चलन है।) मित्र नाराज हो कर बोले..जेतना धरइले हौउवन ओहमें केहू बाबा ना हौ, सब नकली बाबा हैं।
ट्रेन आराम-आराम से चल रही है। अगल बगल के लोग अपने विद्वता का खजाना चुक जाने के बाद, अपने-अपने सिंगल बर्थ में लेट चुके हैं। बोगी में बाथरूम/दरवाजे के पास का एक बल्ब जल रहा है, शेष पूरी बोगी के बल्ब बुझाए जा चुके हैं। थोड़ी देर पहले दो सुरक्षाकर्मी तहकीकात करते हुए गुजरे थे। उनको इस प्रकार सचेत होकर ड्यूटी करते देख मन प्रसन्न हो गया। सरकार को मध्यमवर्गीय बोगियाँ के यात्रियों की भी चिंता है। इससे यह उम्मीद जग गयी कि यह चिंता एक दिन जनरल बोगी तक भी पहुँचेगी। भले अपने पालतू कुत्ते, बकरियों या सायकिल के साथ हों, आखिर जनरल बोगी में भी मनुष्य ही सफर करते हैं। वे भी इसी देश के प्राणी हैं। यह देश उनका भी है।
यात्रा में एक और मजेदार घटना घटी। रात के बारह बजे के बाद जब हम सो गए तो एक झगड़े के शोर से नींद टूट गई। ट्रेन अयोध्या में रुकी हुई थी। यहाँ से चार यात्री चढ़े थे। यात्रियों में एक महिला, दो प्रौढ़ और एक युवा था। युवक ने बाल मुड़ा रखा था और सफेद धोती/कुर्ता पहने था। सीधे सादे, ब्राह्मण परिवार के दिखने वाले ये लोग मेरे लोअर बर्थ के ऊपर 'अपर बर्थ' वाले यात्री से झगड़ रहे थे...यह मेरी बर्थ है, उठो! ऊपर सोया यात्री चार लोगों द्वारा अचानक कोचे जाने पर बेहद घबराया/झल्लाया हुआ था... नहीं, यह मेरी ही बर्थ है। यह देखो, टिकट! S4 59. मेरा टिकट भी देखो..S4, 59,60,61,62। झगड़ा बढ़ता जा रहा था।
दोनो पार्टी एक ही बर्थ के लिए झगड़ रही थीं, दोनो का दावा था कि यह बर्थ मेरी है! दोनो टिकट होने का दावा भी कर रहे थे!!! रेलवे से ऐसी गलती कभी हो ही नहीं सकती कि एक ही बर्थ के दो कन्फर्म बर्थ रिजर्व कर दे! पहले तो झगड़ा सुनता रहा, फिर झल्ला कर बोला..आप लोग शांत हो जाइए, ऐसा हो ही नहीं सकता, अपना- टिकट दिखाइए! दोनो के पास वाकई इसी ट्रेन नम्बर, इसी कोच और इसी बर्थ का टिकट था! यह कैसे सम्भव है? अपनी बुद्धि भी एक पल के लिए चकराई फिर PNR NO. चेक करने लगा।
उफ्फ! मौके पर नेट भी काम नहीं करता। मैं बोला..ऐसा हो नहीं सकता, नेट काम नहीं कर रहा नहीं तो मैं बता देता कि यह किसका बर्थ है आप लोग टी. टी. को बोलाइये, आपस में मत झगड़िए, टी.टी. के पास चार्ट होता है, बात साफ हो जाएगी। इतने में सुरक्षाकर्मी टी.टी. को ले आया।
टी.टी. चार्ट देखकर बताया कि यह बर्थ उसी यात्री की है जो पहले से सो रहा था। उसे बर्थ दिलाकर टी.टी. ने अयोध्या से चढ़े यात्री से पूछा..आप ने कोई टिकट कैंसिल कराया है? युवा बोला..हाँ, कराया है, लेकिन मेरा 6 बर्थ था, दो कैंसिल कराया, चार तो होनी चाहिए न? उसने झोले से और टिकट निकाला। टी.टी. ने समझाया..वो वाली बर्थ कैंसिल हुई है, जिसके लिए आप झगड़ रहे थे। आपकी ये , ये, ये और ये वाली चार बर्थ है। जाइए! अपनी बर्थ पर सोइये।
मामला हल होने पर सभी यात्री हँसने लगे और फिर बाद का सफर आराम से कट गया।
उबाऊ रेलयात्रा को भी आप रोचक बना देते हैं, चलिए tt ने मुसीबत का हल निकाल दिया 😊
ReplyDeleteधन्यवाद दीदी।
Deleteवाह ! रोचक यात्रा विवरण..
ReplyDeleteआभार, जुड़े रहने के लिए।
Deleteबहुत सुंदर वृत्तांत ,रोचक शैली।
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteआभार आपका।
ReplyDeleteबहुत सुंदर पोस्ट।
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
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