आज बन्द हो गया लोहे का घर। ऐसा दिन भी आएगा, यह किसी ट्रेन ने नहीं सोचा होगा! कई बार तुम ठहर गए, हम ठहर गए लेकिन नहीं रुकीं फोटटी नाइन, फिफ्टी डाउन, एस. जे. वी. पैसिंजर, दून, किसान, ताप्ती या बेगमपुरा।
'चलती का नाम गाड़ी' है तो गाड़ी के रुकने का मतलब जीवन का ठहर जाना भी है। आज ठहर गया है लोहे का घर, ठहर गए हैं हम और जहाँ का तहाँ, ठहर गया है देश भी।
एक दिन जीवन में, यम सभी के पास आता है लेकिन आने से पहले डुगडुगी बजाता है... आ रहा हूँ मैं! ऐसे सामूहिक रूप से सबकी छाती में, एक साथ मूँग दलते हुए नहीं आता। थोड़ी आँखों की रोशनी छीनता है, थोड़ी बालों की कालिमा लूटता है, दो चार दाँत तोड़ता है कहने का मतलब संभलने का पूरा मौका देता है मगर ऐसे, सभी के सर पर, एक साथ मृदंग नहीं बजाता।
बहुरूपिया है यमराज। तरह-तरह के भेष बदल कर आता है। भैंसा वाला भेष तो सिर्फ चित्रों में देखा है। आंधी, तूफान, बादल, बिजुली, अच्छर-मच्छर बनते कई बार देखा। कभी आदमी बनकर नहीं आया था इस बार आदमी बनकर आया है। डेंगू से खतरनाक है आदमी में प्रवेश कर चुका कोरोना। पहचान में नहीं आता। मच्छर नहीं है कि फ्लीट छिड़क कर साफ कर दिया जाय, आदमी है। आदमी भाई भी है, बन्धु भी। परिवार का अंग भी, जीवन साथी भी। कैसे पहचानें कौन शत्रु है? कौन मित्र? बचें या बचाएँ? भागें तो कैसे भागें? लड़ें तो कैसे लड़ें? बस एक ही उपाय है खुद को काल न बनने दें। कोरोना को अपने भीतर प्रवेश ही न करने दें। अपने साथ साथ, परिवार और देश को भी बचाएँ। हम यह कर सकते हैं।
आज क्रोध में है लोहे का घर। बोल दिया है लोहे के घर ने..जाओ! नहीं ले जाते तुम्हें। अपने-अपने घरों में कैद हो जाओ। खुद को कोरोनटाइन करो, फिर आना। ऐसे यात्रियों की कल्पना भी नहीं की होगी लोहे के घर ने। बहुत दुखी हुआ होगा जब पता चला होगा कि आदमी में प्रवेश कर चुका है राक्षस। खुद ही मारने लगा है, एक दूसरे को।
शुक्र है कि पटरी से उतरी नहीं है गाड़ी सिर्फ थमे हैं चक्के। हम संभले तो फिर चलने लगेगी ट्रेनें। गुलजार होगा मेरा और आपका भी, लोहे का घर।
ये जीवन की गाडी कभी पटरी से उतरनी भी नहीं चाहिए , थमे हुए पहिये फिर चल पड़ेंगे | पोस्टें नहीं रुकनी चाहिए , फोटो और उनसे जुडी यादों पर सही
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (25-03-2020) को "नव संवत्सर-2077 की बधाई हो" (चर्चा अंक -3651) पर भी होगी।
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मित्रों!
आजकल ब्लॉगों का संक्रमणकाल चल रहा है। ऐसे में चर्चा मंच विगत दस वर्षों से अपने चर्चा धर्म को निभा रहा है।
आप अन्य सामाजिक साइटों के अतिरिक्त दिल खोलकर दूसरों के ब्लॉगों पर भी अपनी टिप्पणी दीजिए। जिससे कि ब्लॉगों को जीवित रखा जा सके।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शुभकामनाएं लोहे के घर के लिये आने वाले समय की पटरी के लिये।
ReplyDeleteआभार आप सभी का। इस समय भी आप जुड़े हैं।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteजल्द ही लोहे का घर वापस गुलजार होगा, तब तक अपने घरों में गुलजार रहना भला!
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