मैने मांगा,
जाड़े की धूप
उसने दिया,
घना कोहरा!
मैने पूछा,
"ठंडी कब जाएगी?"
उसने कहा,
"थोड़ी बर्फवारी होने दो।"
मैने पूछा,
"बसंत कहाँ है?"
उसने कहा,
"रुको! एक ग्लेशियर टूट जाने दो!"
मैने कहा,
"जाओ!
तुमसे बात नहीं करते।"
उसने कहा,
"मित्र!
तुमसे ही सीखी है यह
शत्रुता!"
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