एक गाँव था। गाँव का मुखिया बड़ा जालिम था। रोज की तरह एक दिन मुर्गे ने बांग दी। बांग सुनकर एक कवि की नींद खुल गई। नींद खुली तो कवि ने लिखी कविता। कवि की कविता सुनकर पूरा गाँव नींद से जागने लगा। गाँव को जागता देखकर मुखिया की नींद उड़ गई। भोले भाले लोगों को नींद से जगाने के अपराध में गाँव मे पंचायत बुलाई गई। कवि, एक तो आदमी, ऊपर से समझदार! झट से पाला बदला। मुखिया की तारीफ में भक्ति के गीत गाए। मुर्गे ने अपना स्वभाव नहीं बदला, मारा गया।
आज भी, स्वभाव न बदलने के कारण, नींद से जगाने के अपराध में, मारे जाते हैं मुर्गे, सम्मानित होते हैं कवि।
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वाह! क्या कथा लिखी देवेन्द्र जी | मन सकते में आ गया पढ़कर जीवन की कडवी हकीकत यही है | सादर |
ReplyDeleteआभार।
Deleteदेवेन्द्र जी , वैसे बात तो सही कही लेकिन सारे कवियों को एक ही तराजू में न तोलिये . कुछ कवि भी मारे जाते . :):)
ReplyDeleteजी। व्यंग्य बाण चल गया। लेकिन यह बाण दलबदलुओं के लिए है।
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