2.6.21

तीन तोते


बहुत दिनों बाद शहर घूम कर लौटे थे तीन तोते। सभी ने अपना-अपना हाल सुनाया। एक नए कहा....


मैं जिस घर की छत पर बैठा था, वहाँ एक पिंजड़ा देखा

जिसमें हमारा एक भाई कैद था।


मुझे देख, पिंजड़े की दीवारों में चोंच मारने और फड़फड़ाने लगा। मुझे लगा वह आजादी के लिए तड़प रहा है। मुझे दया आई, हाल पूछा तो जानते हो उसने क्या कहा? 


शेष दोनो तोते अचरज से पूछ बैठे...क्या कहा? क्या कहा?


वह बड़े शान से मनुष्यों की बोली बोलने लगा...


"गोपी कृष्ण कहो बेटू, गोपी कृष्ण!"


और? और क्या कहा?


उसे अपने ज्ञान का बड़ा घमंड था। कह रहा था...


सुने? हम मनुष्यों की बोली बोल सकते हैं....

"गोपी कृष्ण कहो बेटू, गोपी कृष्ण।"


मैने पूछा...इसका क्या अर्थ हुआ? तो कहने लगा...


अर्थ तो मुझे भी नहीं मालूम लेकिन यह बड़े कमाल की बात है! मैं जब यह बोलता हूँ, घर का मालिक खुश हो कर मुझे हरे चने खिलाता है! मेरी बड़ी इज्जत करता है।


मैन पूछा...

तुम्हें पिंजड़े में कैद कर के रखा है, इसकी कोई तकलीफ नहीं है?


वह बोला..शुरू-शुरू में तकलीफ हुई थी लेकिन अब मजा आ रहा है। आजकल मैं कुछ नया सीख रहा हूँ। जब कोई घर में आता है जोर से बोलता हूँ..जय श्री राम! वह मुझे आँखें फाड़कर देखता है और धीरे से बोलता है.. जय श्री राम। मालिक और खुश होता है।


मैने गुस्से से पिजड़े का दरवाजा खोल दिया और बोला..

चल, भाग चल। वह नहीं माना। कहने लगा...अब मैं नहीं उड़ सकता। मुझमें अब श्रम करके खाने की शक्ति नहीं बची। तुम्हें भी आना है तो आओ, मालिक सब सिखा देगा। 


मैं डर के मारे उड़ कर भाग आया।


दूसरे ने अपना हाल सुनाया....


शहर में मैं जिस घर की छत पर बैठा था वहाँ भी एक पिंजड़ा था। उसमें एक मैना कैद थी। उसका भी यही हाल था। मैने कहा..उड़ चलो। यह तो कैद है।


उसने आश्चर्य से पूछा...कैद! कैद क्या होता है? जो मालिक कहे करते जाओ, खाते जाओ, गाते जाओ, इसी में आनन्द है।


मैं भी उड़ कर भाग आया।


तीसरा तोता बोला...


मैं एक घर में गया जहाँ एक कमरे में मनुष्यों के बहुत से बच्चे थे। एक आदमी कुछ बोलता, सभी बच्चे वही बोलते। जैसा तुम लोगों ने पिंजड़े के तोते और मैना की बात की वैसे ही वह आदमी, अपने बच्चों को कुछ रटा रहा था। 


मेरी समझ में यह नहीं आता कि क्यों मनुष्य सभी को पकड़ कर अपने जैसा बनाना चाहते हैं? सभी को स्वतंत्र होकर, अपने दिमाग से जीने/सोचने क्यों नहीं देते? भोजन के बदले पशु, पक्षी तो क्या, अपने बच्चों को भी, अपना गुलाम बनाना चाहते हैं? मुझे तो शक होता है... क्या धरती में, एक भी मनुष्य, मानसिक रूप से स्वतंत्र है?

 चित्र... Rashmi Ravija

1.6.21

तीन कुत्ते


खेल रहे थे, न सो रहे थे

एक घाट में तीन कुत्ते

आपस में अपना दुखड़ा रो रहे थे।


बीच से दाएं वाले ने कहा...

दूर-दूर तक कोई यात्री नहीं दिखता।

जो  दिख भी रहे हैं

मुँह में पट्टी बाँधे घूम रहे हैं।

ऐसा लगता है 

इन्होंने कुछ न खाने का प्रण ले लिया है!

खाएंगे नहीं तो खिलाएंगे क्या?

अपने तो मरेंगे ही

हमको भी भूखा मारेंगे।


अपनी बात समाप्त कर उसने लंबी जम्हाई ली और सोने का प्रयास करने लगा।


बीच से बाएँ वाले ने कहा...

मुझे तो ये उस बंदर की औलाद लगते हैं 

जो एक बार घाटों में घूम-घूम कर सबको समझा रहा था..

मीठा न बोल सको तो चुप रहो

बुरा मत बोलो! बुरा मत बोलो! बुरा मत बोलो!


बीच वाला अपने साथियों पर गुर्राया...

तुम सब मूर्ख हो! 

भूख अच्छे अच्छों को मक्कार बना देती है।

तुम सब 

सूँघने की शक्ति खो कर

चोर/साधु, दुखी/सुखी, अपने/पराए में भेद कर पाना,

भूल चुके हो। 

भूख ने तुम्हें

उन गुणों से ही वंचित कर दिया है

जिनके कारण

मनुष्य 

अपने भाई से अधिक 

हम पर विश्वास करता है।


मनुष्य जाति पर कोई बड़ा संकट आया है

रोटी की तलाश में, 

जान जोखिम में डालकर, 

कल मैं 

श्मशान घाट तक गया था।

वहाँ का दृश्य देखकर

मेरे आंखों में आँसू आ गए

जिधर देखो उधर लाशें जल रही थीं

अपनों को जलाने के लिए

ये दो पाए, लाइन लगाए खड़े थे

वहीं मैने सुना

जो नहीं जला पाए वे

अपनो के शव

नदी किनारे मिट्टी में गाड़ कर या 

गङ्गा में बहाकर चले गए।


मनुष्य अभी दुखी हैं

सभी प्राणियों की भलाई के लिए

मनुष्यों का प्रेम से रहना और सुखी होना आवश्यक है।

आओ!

मनुष्यों की भलाई के लिए

ईश्वर से प्रार्थना करें।


इनकी बातें सुनकर 

मेरे मन ने प्रश्न किया...

तुम्हारी मनुष्यता कब जागेगी?

क्या ये कुत्ते

भूख से मर जाएंगे?

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