बहुत दिनों बाद शहर घूम कर लौटे थे तीन तोते। सभी ने अपना-अपना हाल सुनाया। एक नए कहा....
मैं जिस घर की छत पर बैठा था, वहाँ एक पिंजड़ा देखा
जिसमें हमारा एक भाई कैद था।
मुझे देख, पिंजड़े की दीवारों में चोंच मारने और फड़फड़ाने लगा। मुझे लगा वह आजादी के लिए तड़प रहा है। मुझे दया आई, हाल पूछा तो जानते हो उसने क्या कहा?
शेष दोनो तोते अचरज से पूछ बैठे...क्या कहा? क्या कहा?
वह बड़े शान से मनुष्यों की बोली बोलने लगा...
"गोपी कृष्ण कहो बेटू, गोपी कृष्ण!"
और? और क्या कहा?
उसे अपने ज्ञान का बड़ा घमंड था। कह रहा था...
सुने? हम मनुष्यों की बोली बोल सकते हैं....
"गोपी कृष्ण कहो बेटू, गोपी कृष्ण।"
मैने पूछा...इसका क्या अर्थ हुआ? तो कहने लगा...
अर्थ तो मुझे भी नहीं मालूम लेकिन यह बड़े कमाल की बात है! मैं जब यह बोलता हूँ, घर का मालिक खुश हो कर मुझे हरे चने खिलाता है! मेरी बड़ी इज्जत करता है।
मैन पूछा...
तुम्हें पिंजड़े में कैद कर के रखा है, इसकी कोई तकलीफ नहीं है?
वह बोला..शुरू-शुरू में तकलीफ हुई थी लेकिन अब मजा आ रहा है। आजकल मैं कुछ नया सीख रहा हूँ। जब कोई घर में आता है जोर से बोलता हूँ..जय श्री राम! वह मुझे आँखें फाड़कर देखता है और धीरे से बोलता है.. जय श्री राम। मालिक और खुश होता है।
मैने गुस्से से पिजड़े का दरवाजा खोल दिया और बोला..
चल, भाग चल। वह नहीं माना। कहने लगा...अब मैं नहीं उड़ सकता। मुझमें अब श्रम करके खाने की शक्ति नहीं बची। तुम्हें भी आना है तो आओ, मालिक सब सिखा देगा।
मैं डर के मारे उड़ कर भाग आया।
दूसरे ने अपना हाल सुनाया....
शहर में मैं जिस घर की छत पर बैठा था वहाँ भी एक पिंजड़ा था। उसमें एक मैना कैद थी। उसका भी यही हाल था। मैने कहा..उड़ चलो। यह तो कैद है।
उसने आश्चर्य से पूछा...कैद! कैद क्या होता है? जो मालिक कहे करते जाओ, खाते जाओ, गाते जाओ, इसी में आनन्द है।
मैं भी उड़ कर भाग आया।
तीसरा तोता बोला...
मैं एक घर में गया जहाँ एक कमरे में मनुष्यों के बहुत से बच्चे थे। एक आदमी कुछ बोलता, सभी बच्चे वही बोलते। जैसा तुम लोगों ने पिंजड़े के तोते और मैना की बात की वैसे ही वह आदमी, अपने बच्चों को कुछ रटा रहा था।
मेरी समझ में यह नहीं आता कि क्यों मनुष्य सभी को पकड़ कर अपने जैसा बनाना चाहते हैं? सभी को स्वतंत्र होकर, अपने दिमाग से जीने/सोचने क्यों नहीं देते? भोजन के बदले पशु, पक्षी तो क्या, अपने बच्चों को भी, अपना गुलाम बनाना चाहते हैं? मुझे तो शक होता है... क्या धरती में, एक भी मनुष्य, मानसिक रूप से स्वतंत्र है?
चित्र... Rashmi Ravija
सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteक्या बात है धीरे धीरे सही क्या पता तीन आदमी तक पहुंच ले ये श्रंखला।
ReplyDeleteसही प्रश्न किया कि क्या धरती पर कोई भी मनुष्य मानसिक रूप से स्वतंत्र है ? कोई नहीं ।
ReplyDeleteवाजिब प्रश्न ...
ReplyDeleteस्वतंत्र तो वैसे भी कोई नहीं ... किसी न किसी बात, चीज का गुलाम है इंसान भी ...
बहुत कुछ कहने की कोशिश आपकी इस रचना द्वारा ...
गंभीर प्रश्न उठाती रचना
ReplyDeleteओह!!!
ReplyDeleteबिल्कुल सटीक प्रश्न...क्या धरती में, एक भी मनुष्य, मानसिक रूप से स्वतंत्र है?
यदि होता तो दूसरों की स्वतंत्रता का मतलब भी जरूर जानता।
लाजवाब सृजन।
बढ़िया ! बहुत ही सुन्दर लिखा है अपने ब्लॉग में आपने। इसके लिए आपका दिल से धन्यवाद। Visit Our Blog Zee Talwara
ReplyDeletebda hi sunder sunder likha hai aapne, thanks sir
ReplyDeleteZee Talwara
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