भोर के अजोर से पहले दौड़ रहे प्रातः भ्रमण करने वालों की भीड़ में एक 'कच्छा बनियाइन' वाला भी था। मैंने पूछा,"कौन हो? कहाँ रहते हो?"
वह बोला,"यही तो मैं जानना चाहता हूँ, ये मॉर्निंग वाकर्स कौन हैं? कहाँ रहते हैं? कब आते हैं? और कब वापस जाते हैं? अच्छा बताइए! आप कहाँ रहते हैं?|
मैं थोड़ा डर गया। कहीं सही में यह कच्छा बनियाइन गिरोह का सदस्य तो नहीं!
मैन हिम्मत करके पूछा,"जानकर क्या करोगे भाई?
उसने हँसते हुए कहा, "आराम रहेगा, धंधा बढ़िया चलेगा।"
मैं और डर गया, "धंधा!!! करते क्या हो?"
उधर रेलवे क्रासिंग के पार रहता हूँ। वो सामने मकान है न? उसी के बगल में जाना है। घर में कोई पुरुष नहीं है। अकेली महिला है। सोचा, वहीं हाथ साफ़ करूँ! उनके टँकी में पानी नहीं चढ़ रहा। सुबह-सुबह पानी न मिले तो पखाना/नहाना भी रुक सकता है। क्या करूँ! अपना धंधा ही ऐसा है। घबराइए नहीं भाई साहेब! मैं प्लम्बर हूँ।
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बढ़िया
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteउम्दा रचना
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteशीर्षक पर पुनः विचार करना चाहिए
ReplyDeleteप्लम्बर शीर्षक अच्छा होता लेकिन अंत तक रोचकता बनाए रखने के लिए यह शीर्षक दिया। जो आपको उचित लगे कृपया सुझाव दें। धन्यवाद।
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