2.10.23

बन्दर

भटकना नहीं चाहते वन-वन,

सीधे पहुंचना चाहते हैं

संकट मोचन!


सभी बन्दर

नहीं खा पाते, 

चने और देसी घी के लडडू।

अधिकांश तो

रोटी के लिए

मारे-मारे फिरते हैं

छत-छत, टेशन-टेशन

घुड़की देते हैं,

छिनैती करते हैं,

पकड़े गए तो

नाचते भी हैं

मदारी के इशारे पर।


इन्हें देख,

यकीन नहीं होता

तनिक भी सोचते होंगे

बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो, बुरा मत बोलो।


हमको तो नहीं दिखते

देश के लिए मिटने वाले 

गाँधी जी के तीन बंदर

हमको तो सभी

संकटमोचन जाते दिखते हैं!


तीनों बंदर

अपना दुखड़ा रोने

कहीं राजघाट तो नहीं चले गए

बापू के पास!!!🤔

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6 comments:

  1. हा हा | चुनाव में वयस्त हो लिए है २०२४

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  2. कहीं भी जा सकते हैं बस अपना स्वार्थ पूरा होना चाहिए...।
    बढ़िया अभिव्यक्ति सर
    सादर।
    -------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार ३ अक्टूबर२०२३ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  3. बहुत ही सुन्दर

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  4. बहुत सुन्दर ,समयानुकूल रचना

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