कल मनोज जैसवाल जी के ब्लॉग के माध्यम से एक विजेट लिया। यही जो दिख रहा है....दौड़ता हुआ आदमी। इसके बाद जब भी ब्लॉग खोलता, इसी दौड़ते हुए आदमी पर नज़र ठहर जाती। मुझे लगा यह तो मुझसे भी बेचैन है..! आज सुबह इसी पर एक कविता लिख दिया। सुबह जल्दी में पोस्ट नहीं कर पाया तो अभी कर रहा हूँ। कविता का शीर्षक है....दौड़। बताइये न कैसी है..?
दौड़
दौड़ नशे में
दौड़
और छलक के दौड़।
जब तक तन में
साँस है
जब तक मन में
फाँस है
जब तक चौचक भूख
है
जब तक गहरी
प्यास है
आँख मूंद के दौड़
और हचक के दौड़।
नहीं कभी थकने
वाला
नहीं कभी रूकने
वाला
और और ही कहता
है
और नहीं सुनने
वाला
छोटी धरती छोड़
कम्प्यूटर में
दौड़।
जिस दिन तू थक
जायेगा
जिस दिन तू रूक
जायेगा
सभी हंसेंगे तुझ
पर, तू
ठगा खड़ा रह
जायेगा
राम नाम सत्य है
झूठ मूठ की
दौड़।
.....................
shaandaar ...
ReplyDeleteयह दौड़ता हुआ आदमी वास्तव में कहीं नहीं पहुँच रहा... एक ही जगह ठहरा हुआ है!! आज की दौड़ती दुनिया भी इसी आदमी की तरह है!
ReplyDeleteगूढ़ प्रतीक ..लाल बुझ्झकर बुझे तो.
ReplyDeleteशानदार प्रस्तुति
ReplyDeleteयह पैसे की है दौड़
ReplyDeleteया सबसे आगे की होड़
दौड़ दौड़ तू दौड़ -न थकना कभी न रुकना कभी ......
ReplyDeleteकविता ने तो बिलकुल माहौल को संगीन बना दिया नहीं तो इस जोकर को देख पहले तो हंसी आयी थी :)
आजकल ऐसी बेचैन आत्माएं बहुत दिखती हैं ।
ReplyDeleteइस अंधाधुंध दौड़ को रोको भाई ।
ये कैसी बेचैन आत्मा है कि पढने ही नही देता? मेहरवानी इसकी कि टिप्पणी बक्से पर नही कूद रहा है.:)
ReplyDeleteबहुत सटीक रचना.
रामराम.
जीवन का दूसरा नाम ही दौड़ है जिसमें हर कोई बस्स दौड़े जा रहा है न मंज़िल का पता है न ज़िंदगी में कोई मक़ाम पाने की इच्छा में किसी तरह की कोई संतुष्टि उदेश्य है केवल अंधी दौड़ में भेद चाल की भांति केवल दौड़ .... बढ़िया प्रस्तुति
ReplyDeleteसमय मिले तो कभी आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://mhare-anubhav.blogspot.com/
दौड़ मची है, होड़ मची है,
ReplyDeleteबमचक चारों ओर मची है।
रामनाम ही सत्य है,
ReplyDeleteझूठ-मूठ की दौड़ है।
सत्य कहा आपने।
बढिया।
ReplyDeleteकोई दौडता है सडकों पर, पेट भरने के लिए और कोई दौडता है ट्रेडमिल पर, पेट कम करने के लिए....
पर दौड हर कोई रहा है इस दुनिया में.....
सच में आज ऐसे ही बेचैन हैं हम ...और जुटे हैं ऐसी ही दौड़ में.....कहीं न पहुँचाने वाली दौड़ में
ReplyDeleteदौड़ रहे हैं सब अंधी दौड़ में , जाना कहाँ है यही पता नहीं !
ReplyDelete@ दौड़ ,
ReplyDeleteअकारथ ना हो /अयाचित ना हो /आंख मूंद कर ना हो , तो चलेगी !
@ बेचैन ,
पंडित जी इतना बेचैन होना एक खतरनाक स्थिति है :)
बहुत जुलुम वाला काम कर रहे हैं इस इन्सान के साथ आप! बेचारा दौड़े चला जा रहा है बिना किसी प्रतिवाद के। आप तो इत्ते जालिम न थे जी। :)
ReplyDeleteशानदार कविता आपका आभार
ReplyDeleteअनूप शुक्ल...
ReplyDeleteएक अकेले यही थोड़ी न दौड़ रहा है।
यह तो उस आईने में अपना ही अक्स है!
जानते अहिं पर सोचना नहीं चाहता कोई ... वैसे इस अंतिम दौड़ की प्रतीक्षा तो सभी को है ...
ReplyDeleteवाह देव बाबू.....इस दौड़ में बहुत कुछ कह गए आप........शानदार |
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग की नयी पोस्ट आपके ज़िक्र से रोशन है......जब भी फुर्सत मिले ज़रूर देखें|
बहुत खूब..हमेशा की तरह.....शानदार.
ReplyDeleteअंतिम सत्य वही है जो अंतिम पंक्तियों में आपने लिखा है। इस बेचैनी सो तो भला है कि राम नाम की दौड़ में शामिल हो जाएं!
ReplyDeleteNICE.
ReplyDelete--
Happy Dushara.
VIJAYA-DASHMI KEE SHUBHKAMNAYEN.
--
MOBILE SE TIPPANI DE RAHA HU.
ISLIYE ROMAN ME COMMENT DE RAHA HU.
Net nahi chal raha hai.
आपाधापी की दौड़ कायम है
ReplyDeleteye jindgi ek dod hi hai...shandaar..
ReplyDeletejai hind jai bharat
कल सोचा था कि यह दौडता हुआ आदमी शायद मेरे लैपटॉप से बाहर निकल जाएगा तो मैं कमेन्ट कर लूंगा.. आज भी देखा तो यह दौड ही रहा था..
ReplyDeleteएक अमूल्य सीख इस दौड़ते मानव के माध्यम से! पांडे जी आपकी बातें अनोखी होती हैं!!
बहुत खूब.
ReplyDeleteबहुत ख़ूब देवेन्द्र जी !
ReplyDeleteयह दौड़ ग़ज़ब की है :)
अच्छी रचना के लिए बधाई !
dauda dauda bhaga bhaga sa... waqt yeh sakht hai thoda thoda...
ReplyDeleteGud-one
हचक के दौड़ . विजय पर्व की शुभकामनाये
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखा है आपने! लाजवाब प्रस्तुती!
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को दशहरे की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !
वाह ...बहुत ही बढि़या ।
ReplyDeleteदेवेन्द्र जी, रचना बहुत अच्छी है...बधाई
ReplyDeleteवैसे ये दौड़ता हुआ आदमी कुछ ऐसा संदेश देता प्रतीत हो रहा है-
रुक जाना नहीं तू कहीं हारके
कांटों पे चलके मिलेंगे साए बहार के
सभी दौड रहे है,और सभी क्यु मे है जो अपनी चिता पे जाकर खतम होगी.
ReplyDeleteyah kaisi daud hai ki bina gantavya ko pahchane ham daudate ja rahe hain
ReplyDeleteraam naam satya hai jhoonth moot ki daur.............haahahah
ReplyDeletesaarthak bhi aur manoranjak bhi.....
badhaai............