जिस तरह
लोग बोफोर्स और पेट्रोल पंप आवंटन के विवादों को भूल गए, उसी तरह
कोल ब्लॉक आवंटन की गड़बड़ियों को भी भूल जाएंगे। ....गृह मंत्री श्री
सुशील कुमार शिंदे।
कभी-कभी मंत्री जी बड़ी सच्ची बात कर देते हैं। अब आप लाख कहो कि
टुच्ची बात है लेकिन मैं तो कहूँगा, सच्ची बात है। सच्ची बात जुबान पर आ ही जाती
है। आखिर मंत्री जी भी तो आदमी हैं कब तक सोच समझ कर झूठ बोलते रहेंगे ? :) अब जब लोग टोक रहे हैं
तो वे कह रहे हैं कि मेरी बात को गंभीरता से नहीं लिया जाना चाहिए। मैने तो मजाक
में कहा था। मजाक में ही सच्ची बात निकलती है मुँह से। मजाक आदमी उसी पल कर पाता
है जिस पल वह खुदा की नेमत से थोड़ा सच्चा हो जाता है। मन ही मन कह रहे होंगे, “तुम नहीं भूलोगे तो हम भूलाने के लिए मजबूर कर देंगे।“J कर भी दिया! पहले डीजल के दाम बढ़ाये, गैस सिलेंडर की सब्सिडी को आधा कर दिया जब उससे भी दाल गलती नहीं दिखाई दी
तो मल्टीब्रांड खुदरा
व्यापार में 51 प्रतिशत
विदेशी पूँजी निवेश को मंजूरी दे दी! आओ वॉलमार्ट, आओ! तुम बाद में लूटोगे अभी तो अपनी
नैया को डूबने से बचाओ।J
बाबा रामदेव! यह भारत की राजनीति है। आप जब तक काला धन, काला धन चिल्लाओगे तब तक इतने
मिसाइल दाग दिये जायेंगे मुद्दों के कि आपको हार कर फिर अपना योगासन जमाना पड़ेगा।
अनुलोम-विलोम आप क्या कराओगे ? अनुलोम-विलोम तो राजनीतिज्ञ
कराते हैं। देखिये न, एक झटके में सभी की सांसे उल्टी चलने लगीं। जब उल्टी सांसे
ले लेकर लोग मरने लगेंगे तब थोड़ी छूट दे देंगे। साँसे सीधी चलने लगेंगी। तब तक
जनता भूल जायेगी कि कभी कोल घोटाला हुआ भी था। J
बुद्धिजीवी तो हैं ही हमेशा से कन्फ्यूज्ड ! कोई कहेगा, “आखिर कब तक आप मुफ्त में सिलेंडर जलायेंगे ? कोई कहेगा, “भारत को कोई नहीं
मिटा सकता। यह 21 वीं सदी का भारत है इसे वॉलमार्ट क्या मिटायेगा ? उद्योग जगत तो समर्थन करेगा ही। उद्योग जगत मतलब बड़ा व्यापारी। बड़ा
व्यापारी तो लाभ में रहेगा ही। मीडिया भी समाजसेवा कम उद्योग अधिक हो गया है।
दुर्भाग्य से उस दिन भी मैं टीवी देख रहा था जब पत्रकार महोदय एक साइकिल वाले (जो कुछ
बोलना चाहता था) को परे हटाकर कार वाले के पास माइक ले जाकर पूछ रहे थे...”अब साल में छः सिलेंडर ही मिलेंगे, आपको यह खबर
सुनकर कैसा लग रहा है ?” संजोग से कार वाला बुद्धिजीवी नहीं
था। उसने समझ लिया कि यह घाटा हुआ है। दुखी होकर बोला, “बहुत बुरा हुआ अब तो बजट बिगड़ जायेगा।“ कोई माननीय पत्रकार महोदय से पूछे कि बजट साइकिल वाले का अधिक बिगड़ेगा कि कार वाले का ? लेकिन नहीं, वे पत्रकार हैं तो हम से अधिक ही जानते होंगे। बजट तो अमीरों को ही
बनाने-बिगाड़ने आता है। साइकिल वाले का कोई बजट होता ही नहीं। बजट तो कार वाले का
ही बिगड़ सकता है। J
मीडिया को इतनी रोचक खबरें लगातार मिल रही हैं तो उन्हें लाभ मल्टी
ब्रॉंड के आने से ही मिल सकता है, न आने से नहीं। मरेगी तो देश की गरीब जनता। छोटे
व्यापारी तबाह हो जायेंगे। किसानों को ततकालीन नुकसान नहीं होगा लेकिन दूरगामी
हैसियत उनकी भी एक मजदूर से अधिक की नहीं होगी। अभी तो मिट जायेंगे मध्यस्थ।
मध्यस्थ! क्या चोर-उचक्के हैं जो
इनका नाम इतने अनादर से लिया जाता है ? दलाल ! अरे, दलाली भी एक धंधा है, व्यापार है। मध्यस्थों
को दलाल ऐसे कहते हो जैसे ये कोई रंडी के दलाल हैं! हमारे
देश के सम्मानित व्यापारी हैं। किसानो से सस्ते दाम पर फल, अनाज खरीदकर आम जनता तक
पहुँचाते हैं। यही काम तो ये विदेशी कंपनियाँ भी करेंगी। ये विदेशी हैं, बड़े
व्यापारी हैं तो सम्मानित और हमारे देश के मध्यस्थ, दलाल ! पक्की रसीद नहीं देते! आपके व्यवस्था में कोई कमी
है तो उसको सुधारो। उसको सुधारने के बजाय इनका गला ही रेतने पर लगे हो! ये हमारे देश के नागरिक हैं भाई। भूखे मर जायेंगे अगर ये विदेशी कंपनियाँ
आ गईं देश में। ये लाभ कमाने आ रही हैं। ये छोटे व्यापारियों, मध्यस्थों का लाभ
छीनने आ रही हैं। ये और इनके परिवार के युवा मजबूर होकर इन बड़ी विदेशी कंपनियों
की नौकरी करेंगे। मालिक से नौकर हो जायेंगे एक झटके में। ऐसे ही आती है गुलामी
किसी भी देश में। हे बुद्धिजीवी ! सीधा सा गणित आप समझ क्यों
नहीं रहे हो ? छोटी घटना नहीं है खुदरा व्यापार में विदेशी
पूँजी निवेश की अनुमति।
मैं टीवी पर समाचार नहीं देखता। सच कहूँ तो देख नहीं पाता। एक ही टीवी
है घर में और एक ही बीबी । टीवी के चक्कर में बीबी को नाराज करना मेरे बस की बात नहीं
और अपने कमरे में दूसरी टीवी लगाकर उसका खर्च उठाना फ़िजूल खर्ची लगती है और इतनी
फ़िजूल खर्ची अपने औकात में नहीं। टीवी सीरीयल मेरे गले नहीं उतरते और समाचार
देखना, देखना क्या सुनना भी पत्नी को पसंद नहीं। आज दुर्भाग्य से मौका मिल गया तो
टीवी देखने लगा। गृह मंत्री श्री सुशील कुमार शिंदे जी का भाषण सुन लिया। तबीयत
हरी हो गई। क्या सच बोल गये नेता जी ! बोफोर्स घोटाले की तरह कोलब्लॉक आबंटन को भी जनता
भूल जायेगी ! थोड़ा डर भी गया। कहीं पत्नी ने सुन
लिया तो कीचन से ही चीखने लगेंगी, “देखा! कितनी बेशर्मी से बोल रहा है ? इसीलिए कहती हूँ, समाचार मत देखा करो।” घबड़ाकर चैनल बदला तो दूसरे
चैनल में समाचार आ रहा था...”दिल्ली में एक ही दिन तीन
महिलाओं को दहेज लोभियों ने मार डाला।“ मैं फिर सिहर गया। अपनी
दो-दो बेटियाँ शादी योग्य हो चुकी हैं। पत्नी ने सुन लिया तो फिर चीखेंगी, “आप समाचार देखते ही क्यों हैं? यही सब दिखाता है
समाचार में। कहीं अच्छी बात भी हुई होगी! लेकिन कभी दिखाता
है?” सच कहती है मेरी बीबी। समाचार देखता हूँ तो ऐसे ही
पगलाने लगता हूँ। उसे मेरी बेचैनी की चिंता क्यों न हो ?
प्यार करती है मुझ से। लेकिन यार ! कब तक हम मुँह मोड़ते
रहेंगे देश में घट रही इन मक्कारियों से ? सब्जी खरीदने हमी
को जाना है, गैस बुक कराने भी हमी को जाना है? बढ़ा हुआ दाम ! वह कौन देगा? पहले ही गैस एजेंसी वाला मुझे दौड़ा-दौड़ा
कर 21 दिन के बदले एक महीने बाद एक सिलेंडर देता था। अब तो दो महीने में एक
सहूलियत से दे दे उसी पर खुश होना है। लेकिन उनका क्या ? जो
अभी भी नहीं चेत रहे हैं और जनसंख्या वृद्धि में अपना सहयोग दिये जा रहे हैं! उनके लिए तो यही कहना पड़ेगा.....
छाप रहे हो रोज कलेंडर जीयोगे किस हाल में
?
छः सिलेंडर मिलेगा भैया, एक कलेंडर साल में।
............................................
वाह!
ReplyDeleteआपकी इस ख़ूबसूरत प्रविष्टि को आज दिनांक 17-09-2012 को ट्रैफिक सिग्नल सी ज़िन्दगी : सोमवारीय चर्चामंच-1005 पर लिंक किया जा रहा है। सादर सूचनार्थ
आभार, देखता हूँ।
Deleteये आधुनिक नेता अनुभवी हैं, उन्होंने घाट-घाट का पानी पिया है, वे जानते हैं किसका बजट बनाना है और किसका पंक्चर करना है। और फिर राजदंड तो अभी भी उन्हीं के हाथ में है। :(
ReplyDeleteई ल्यौ ! सच्ची तो हम बोला वाले थे पर जब मंतरी जी ही बोल दिहे हैं तो का बोली...?
ReplyDeleteॐबोला =बोलै
Delete
ReplyDeleteसार्थक और सामयिक पोस्ट, आभार .
कृपया मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" की नवीनतम पोस्ट पर भी पधारें , आभारी होऊंगा.
बजट तो अमीरों का ही बिगड़ेगा ना , ब्लौग्क में खरीदने की हैसियत तो उन्ही की होगी . गरीब तो बेचारा वैकल्पिक उपाय खोजेगा या अपने उपयोग में कटौती करेगा !
ReplyDeleteएक सीढ़ी सच्ची बात कही हमारे माननीय गृहमंत्री जी ने , नाहक ही लोंग शोर मचाये हैं :)
सार्थक व्यंग्य !
कम्यूटर भी व्यंग्य समझने में माहिर है ...सीधी को सीढ़ी बना दिया !
ReplyDeleteअब याद रखने की भी सीमा है और फिर कितने दुख तो पहले से ही झेल रहे हैं।
ReplyDeleteबोफोर्स के ज़माने में ब्लॉग और फेसबुक नहीं था, इंटरनेट भी नहीं था.....शिंदे यह भूल जाए कि लोग इतनी आसानी से भूलेंगे...लोगों में राजनीतिक जागरूकता तेजी से बढ़ रही है....
ReplyDeleteमीडिया तो अक्सर सच से परे सिर्फ वही दिखाती है जो वो दिखाना चाहती है सब टी.आर.पी. की माया है .....
ReplyDeleteमंत्री जी तो खुद बोल कर कह रहे है की मजाक किया किन्तु बडबोले महाराज किसी और की बात का असली मतलब बता रहे है अपनी तरफ से की ठीक ही कह सारे झूठे आरोप लोग भूल जायेंगे | सिलेंडर और महंगाई यही नहीं ख़त्म होती है काम वाली से पूछा की साल में कितने सिलेंडर लगते है तो बोली १२ सुनते ही मेरे १२ बज गये अब वो कहा से लाएगी अपनी तनखा अब हमी से बढ़वायेगी !
ReplyDelete"मजाक में ही सच्ची बात निकलती है मुह से "....हम तो कब से कह रहे हैं "ये सरकार और नेता ले डूबेंगे " , मगर कोई इसे मजाक भी नहीं समझता !!!!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।
ReplyDeleteजनता जब होश में आयेगी तो धूल चटा देगी!
ReplyDeleteपिछले ६५ साल में कौंग्रेस की एक ही महान उपलब्धि रही है कि इन्होने सभी (ज्यादातर ) को अपने ही जैसा करप्ट मेंटेलिटी वाला बना लिया है ! इसलिए हिन्दुस्तानियों की याददाश्त कमजोर पड़ती जा रही है, और इन्हें ज्यादा फर्क नहीं पड़ता !
ReplyDeleteहां ये बिल्कुल सटीक कहा आपने । सच है कि देश की अवाम सब कुछ बडी जल्दी भूलने की आदत पाल चुकी है तिस पर नीम चढा करेला ये कि खुद की गलतियों से कोई सबक भी नहीं सीखती । और सियासत इस बात को बखूबी जानती समझती है
ReplyDeleteये भूलने की क्षमता भी परमात्मा की दें है देखो सच का दुनिया कैसे गला घोंट रही है नेता सच बोलता है तो बाकी सारे (नेता )कहतें हैं :मारो साले को ,प्रजातंत्र में सच बोलता है गृह मंत्री रहा तो चौपट कर देगा देश को .बढ़िया व्यंग्य विनोद भी विवेचना भी ,बीवी से सावधान रहो भी ,डर के रहो ,खुश और सही सलामत रहो ,रचनात्मक रहो .,पांडे जी की तरह .
ReplyDeleteकैग नहीं ये कागा है ,जिसके सिर पे बैठ गया ,वो अभागा है
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
पांडे जी का स्पैम बोक्स टिपण्णी खोर है ,खा जाता है टिप्पणियाँ .इस आलेख पे यहाँ दोबारा टिपण्णी दे रहा हूँ .व्यंग्य विनोद और व्यंजना से भर पूर है यह आलेख .हाँ लोगों की याददाश्त छोटी होती है .मंत्री ने सच बोला और दुनिया उनके पीछे पड़ गई -स्साला मरवाएगा ,प्रजा तंत्र में सच बोलता है और वह भी मंत्री बनने के बाद गृह मंत्रालय की लुटिया डुब- वायेगा .पक्ष विपक्ष सब शिंदे की जाँ का प्यासा हो चला है .यह है प्यारे प्रजातंत्र सब कुछ बोल सच मत बोल .पांडे जी का आलेख खुश रहने के नुस्खे भी सिखाए है खुश रहना है तो घर में बीवी से डरके रहो ,कमसे कम डरने को अभिनय करना ही सीख लो .
ReplyDelete_______________
लिंक 3-
दूसरे गोलमाल की तरह कोलमाल भी भूल जायेगी जनता -बेचैन आत्मा देवेन्द्र पाण्डेय
कैग नहीं ये कागा है ,जिसके सिर पे बैठ गया ,वो अभागा है
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
bilkul sahi kahaa aapne devender ji
ReplyDeleteआपकी द्रुत टिपण्णी के लिए शुक्रिया .स्पैम बोक्स आपका हुआ टिपण्णी खोर है .रोको उसको रोको !सब खाजायेगा टिप्पणियाँ .
ReplyDeleteएक आदमी के दाँत में दर्द था.. वो डॉक्टर के पास गया और बोला कि डॉक्टर साहब किसी इस दर्द से छुटकारा दिलाइये.. डॉक्टर ने चाकू से उसकी उंगली में चीरा लगा दिया.. वो आदमी उंगली के दर्द से छटपटाने लगा. डॉक्टर बोला क्या हुआ. उसने कहा-उंगली में दर्द हो रहा है.. डॉक्टर खुशी से बोला - क्यों दांतों का दर्द जाता रहा ना!!!
ReplyDeleteऐसे हैं हमारे डॉक्टर शिंदे!!
मेरे घर में भी एक चलती बीबी और एक बंद टी वी है !
ReplyDelete
ReplyDeleteएक एक शब्द लग रहा है अपने मन की पढ़ रही हूँ...
आक्रोश क्षोभ से मन बौराया सा है..
सरकार हमें जहाँ पहुंचा रही है,हम भारत वासियों के लिए एक यही काम बचा है कि बच्चे पैदा कर जनसँख्या वृद्धि करें, ताकि बिग जाइंट व्यापारियों को अधिकाधिक ग्राहक भी उपलब्ध हो और सस्ते मजदूर भी..
सरकार के लिए हम महज वोटर और व्यापारियों के लिए ग्राहक बन कर रह गए हैं..मनुष्य वाली हमारी औकात कहाँ..
लौह कील तलुवे घुसी, सन अस्सी की बात ।
ReplyDeleteचीखा चिल्लाया बहुत, सच में पूरी रात ।
सच में पूरी रात, सुबह टेटनेस का टीका ।
डाक्टर दिया लगाय, किन्तु अटपटा सलीका ।
नया दर्द यह घोर, पुराना दर्द भुलाता ।
वाह वाह कोयला, तुम्हारी महिमा गाता ।।
अच्छा तो इसीलिए जो भी मन में आता है करते जाते हैं बिंदास, जनता को बेवकूफ समझ रखा है न. एक बार जनता के जागने भर की देरी है फिर देखना...
ReplyDeleteदेब बाबू....बहुत दिनों बाद आपके अपने अंदाज़ में कुछ पढ़ने को मिला है.....आपकी समाचार वाली बात से पूरी तरह सहमत हूँ.....दिमाग और ख़राब हो जाता है......मेरा मानना है सबके सुधार के लिए कानून का सख्त होना बहुत ज़रूरी है......जनता को दोष क्या दें.....लोग अपनी रोज़ी रोटी की फ़िक्र से ही नहीं उबर पाते हैं......अगर कानून सख्त हो तो इन घोटालों को भूलने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी......दोषियों को सजा मिलने लगे तो आगे और किसी की हिम्मत नहीं होने की ऐसा करने की......कई मसलों पर प्रकाश डाला है आपने.....अपने ही अंदाज़ में......बहुत सुन्दर लगी पोस्ट।
ReplyDeleteदिल से रिश्ता दर्द है यह सब. लेकिन लाभ क्या?
ReplyDeleteइतने सारे लोग चन्द्रमा पर गये, नील आर्मस्त्रॉन्ग उनके नाम किसको मालुम? इतने सारे लोग एवरेस्ट पर चढ़े, हिलेरी और तेनसिंग के अलावा किसे याद।
ReplyDeleteयाद सिर्फ बोफोर्स ही रहेगा, भले की कितने बड़े घोटाले होते रहें! :-)