आज शाम श्मशान घाट गया था। नहीं, नहीं, कोई हादसा नहीं। श्मशान घाट वैसे ही घूमने गया था। बेचैन आत्मा हूँ न..! दफ्तर से लौटते वक्त हरिश्चंद्र घाट की ओर गाड़ी घूम गई। यहाँ पर धूनी रमाये एक अपाहिज तांत्रिक दिखा। मसान की लकड़ी सुलग रही है। गर्म आँच मिली तो सो गया कुत्ता। मैने तांत्रिक से पूछा.."यह कौन है?" उसने बताया .."सेवक है।" मैने खुद से प्रश्न किया, "क्या यह ईश्वर को ढूँढ रहा है? क्या ईश्वर यहाँ होगा?
बगल में 'लाली घाट' है। शंकराचार्य द्वारा चलाये जा रहे गंगा मुक्ति अभियान के बाद इसे लोग 'शंकराचार्य घाट' के नाम से जानने लगे हैं । वहाँ एक आदमी गंगा निर्मलीकरण अभियान में इस नवरात्रि में, नौ दिन तक लगातार साइकिल चलाने का संकल्प ले साइकिल चला रहा है। यह इसका तप है। सब कुछ साइकिल पर बैठे-बैठे करता है। गंगा आरती भी। संन्यासी भी दिखे जो उसके हाथों पूजा करवा रहे थे।
आरती भी कर रहा है। बाकी समय लगातार साइकिल चलाता रहता है। यह इतना बड़ा तप कर रहा है! ईश्वर यहाँ भी हो सकता है!
शंकराचार्य घाट के बगल में केदार घाट है। इस घाट की सुंदरता लाज़वाब है। यहाँ गौरी-शंकर का विश्व प्रसिद्ध मंदिर है। मैं दर्शन करने नहीं गया। मैं जब भी यहाँ जाता हूँ, इस घाट की सुंदरता, इस पर बनाई गईं खूबसूरत प्रतिमाओं को देखने में ही विभोर हो जाता हूँ। यहाँ तो ईश्वर को होना ही चाहिए।
केदार घाट के सामने भी गंगा आरती की तैयारी चल रही है। ईश्वर यहाँ भी हो सकता है।
या फिर..इस मासूम की मुठ्ठियों में? जो वहीँ मिट्टी से सना, बालू के ढेर से खेलने में मगन था!
ईश्वर कहाँ है?
यहीं है ,यहीं कहीं है......
ReplyDeleteशायद हमारे भीतर ही....
(फिलोसफी नहीं है....सच है.)
अनु
एक बार फिर बहुत कुछ कहती तस्वीरें और आलेख।
ReplyDeleteचित्र बहुत रोचक हैं ..... एक बात का संशय है कि नौ दिन तक साइकिल पर तप करने वाला क्या सच ही सब कुछ साइकिल पर ही करता होगा ?
ReplyDeleteसंगीता जी,
ReplyDeleteइतनी छूट तो मिलनी ही चाहिये -ईश्वर के नाम पर !
हममें तुममें खड्ग खम्ब में, सबमें व्यापत राम !
ReplyDeleteईश्वर बैठा फ़ेसबुक पर अपना स्टेटस अपडेट कर रहा होगा। तस्वीरें देखकर कह रहा होगा -वाओ! :)
ReplyDeletejata hoon 'unko' like kar aa-oon? kya pata un-freind kar den??????
Deletepranam.
पहले खुद को समझ लें, ईश्वर को तभी ठीक से ढूढ़ पायेंगे।
ReplyDeleteहम जानते हैं , बताएँगे नहीं :)
ReplyDeleteअच्छी तस्वीरें!
अनूप जी ने देखिये सच बता भी दिया :P
ReplyDeleteकितने रंग देखने को मिलते हैं आपकी हर पोस्ट में!!
http://bulletinofblog.blogspot.in/2012/10/blog-post_19.html
ReplyDeleteये जो बैचेन आत्मा यहाँ वहां घुमती है ईश्वर वहां भी हो सकता है, और ये जो यहाँ तस्वीरों का आनंद ले कर टीप रहे हैं ईश्वर यहाँ भी हो सकता है:)
ReplyDeleteयानि हममें, तुममें सबमें राम :)
इतना ढूँढा , पर ये तो कहो -- मिला की नहीं ! :)
ReplyDeleteईश्वर कहाँ है ?
ReplyDeleteमोकू कहाँ ढूंढें रे बंदे मैं तो तेरे ............न मैं काबा ,न मैं काशी ....मैं तो हूँ तेरे भेष में ............हम तो आपके सुन्दर विवरण चित्रण और दर्शन में ही
मस्त हैं .
यह दृष्टि भी ईशवरीय विज़न है .चित्रों में दर्पण और आपके मन के दर्पण में चित्रण भी रहता है .बहुत खूब दिखाया है ईश्वर की झलक को ....एक
एहसास कराया है उसके होने का इस पोस्ट ने .
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ReplyDelete.
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हाँ, इन सब जगहों पर वह हो सकता था... पर है नहीं... वह नहीं मिलता कहीं... ताकि उसे खोजते रहें सारे... अपने अपने तरीकों से... उसकी खोज का ही तो सारा खेल है... मिल गया तो खेल खतम... :)
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आज आपका स्नेह मिला।..आभार।
Deleteवो तो आप के भीतर है फिर भी खोज जारी है ?
ReplyDeleteDekho to charachar me eeshwar hai.....warna kaheen bhee nahee hai!Tasveeren boltee hain!
ReplyDeleteआपने सिद्ध कर दिया कि ईश्वर सर्वत्र है ।
ReplyDeleteहे मूढ़मते तू बाहर खोजता फिर रहा है इश्वर को -अंतर्मन खोज और यह भी बात कि वह कहाँ नहीं है ?
ReplyDeleteआचार्य अरविन्द
चित्र जानदार हैं मुझे लगे कि ईश्वर तो वहीं कैमरे में हैं !
ReplyDeleteईश्वर हम सब के दिलों में है ! हमारे कर्मों में है...
ReplyDelete~सादर !!!
मोको कहाँ ढूंढे रे बन्दे .... अति सुन्दर पोस्ट!
ReplyDeleteबस एक नूर ही बसता वहाँ , दीन दुनिया फकत आइना !!!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर तस्वीरें आपकी अभिव्यक्ति के साथ कण कण में व्याप्त है वो तो हमारी आँख खुलने भर की देर है ।
ReplyDeleteईश्वर आपके ब्लॉग में भी हो सकता है ! .:) .....नहीं तो इतनी सुन्दर सुन्दर पोस्ट्स कैसे आती !
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