मिट्टी है तो
मिट्टी होगी
सूखी होगी
गीली होगी
ठंडी होगी
तपती होगी
कुछ खट्टी कुछ
मीठी होगी
मिट्टी है तो
मिट्टी होगी।
मिट्टी को आकार दिया तो
रंगों का संसार दिया तो
प्राणों का उपहार दिया तो
माया का बाजार दिया तो
गुड्डा होगा
गुड्डी होगी
लड़का होगा
लड़की होगी
बुढ्ढा होगा
बुढ्ढी होगी
लेकिन फिर भी
मिट्टी होगी।
चोर-सिपाही
भी हो सकते
नेता-डाकू
भी हो सकते
भांति-भांति के
जीव भी होंगे
थलचर-जलचर-नभचर होंगे
दुर्जन होंगे, सज्जन होंगे
राक्षस होंगे, मानुष होंगे
प्राणों से जब
कट्टी होगी
सबकी एक दिन
छुट्टी होगी
मिट्टी फिर से
मिट्टी होगी।
मध्य रात्रि फिर छाने को है
नया साल फिर आने को है
दो पल हँस लो, दो पल गा लो
झूठी उम्मीदें मत पालो
ईश्वर को अब
चिट्ठी लिख दो
सब बातें अब
सच्ची लिख दो
लिख दो मिट्टी
गंदी है अब
इंसानों की
मंदी है अब
हे ईश्वर! अब
कट्टी लिख दो
सब मिट्टी को
मिट्टी लिख दो
सागर के खारे पानी से
पूरी मिट्टी को नहलाओ
ज्वालामुखी के अंगारों से
बार-बार फिर इसे तपाओ
मिट्टी फिर से
मिट्टी होगी
सूखी होगी
गीली होगी
ठंडी होगी
तपती होगी
मिट्टी फिर से
मिट्टी होगी।
.................
नववर्ष की ढेरों शुभकामना!
ReplyDeleteआपकी यह सुन्दर प्रविष्टि आज दिनांक 01-01-2013 को मंगलवारीय चर्चामंच-1096 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
..आभार।
Deleteसच है ....मिट्टी तो मिट्टी ही होगी,,,,,,नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDelete...क़ाश,मिट्टी भी सबको नसीब हो !
ReplyDeleteनूतन वर्षाभिनंदन मंगलकामनाओं के साथ.
ReplyDeleteइस मिट्टी तन को मिट्टी में मिल जाना है।
ReplyDeleteफिर किस बात का इतना रोना गाना है।
आपको भी नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं!
गहन अर्थ लिए रचना...
ReplyDeleteआपको सहपरिवार नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ....
:-)
G A J A B
ReplyDeleteमंगलमय नव वर्ष हो, फैले धवल उजास ।
आस पूर्ण होवें सभी, बढ़े आत्म-विश्वास ।
बढ़े आत्म-विश्वास, रास सन तेरह आये ।
शुभ शुभ हो हर घड़ी, जिन्दगी नित मुस्काये ।
रविकर की कामना, चतुर्दिक प्रेम हर्ष हो ।
सुख-शान्ति सौहार्द, मंगलमय नव वर्ष हो ।।
शानदार !
ReplyDeleteदिन तीन सौ पैसठ साल के,
यों ऐसे निकल गए,
मुट्ठी में बंद कुछ रेत-कण,
ज्यों कहीं फिसल गए।
कुछ आनंद, उमंग,उल्लास तो
कुछ आकुल,विकल गए।
दिन तीन सौ पैसठ साल के,
यों ऐसे निकल गए।।
शुभकामनाये और मंगलमय नववर्ष की दुआ !
इस उम्मीद और आशा के साथ कि
ऐसा होवे नए साल में,
मिले न काला कहीं दाल में,
जंगलराज ख़त्म हो जाए,
गद्हे न घूमें शेर खाल में।
दीप प्रज्वलित हो बुद्धि-ज्ञान का,
प्राबल्य विनाश हो अभिमान का,
बैठा न हो उलूक डाल-ड़ाल में,
ऐसा होवे नए साल में।
Wishing you all a very Happy & Prosperous New Year.
May the year ahead be filled Good Health, Happiness and Peace !!!
ईश्वर को अब................
ReplyDeleteवाह वाह देव बाबू ....बहुत ही सुन्दर।
अति सुन्दर .
ReplyDeleteएक स्वस्थ, सुरक्षित और सम्पन्न नव वर्ष के लिए शुभकामनायें।
मिट्टी को सुधारने का वक्त आ गया है। बहुत ही अच्छी कविता।
ReplyDeleteसत्य से अवगत करवाया. सादर धन्यवाद
ReplyDeleteछू गयी दिल को यह रचना और यह नव वर्ष का सन्देश..
ReplyDelete/
वो माटी की गुडिया जो माटी में मिल गयी समय से पहले.. शायद परमात्मा से मिलकर आपका सन्देश कह पायेगी..
मिट्टी है तो मिट्टी होगी . शाश्वत सत्य .
ReplyDelete♥(¯`'•.¸(¯`•*♥♥*•¯)¸.•'´¯)♥
♥नव वर्ष मंगलमय हो !♥
♥(_¸.•'´(_•*♥♥*•_)`'• .¸_)♥
सागर के खारे पानी से
पूरी मिट्टी को नहलाओ
ज्वालामुखी के अंगारों से
बार-बार फिर इसे तपाओ
मिट्टी फिर से
मिट्टी होगी
सूखी होगी
गीली होगी
ठंडी होगी
तपती होगी
मिट्टी फिर से
मिट्टी होगी।
वाह ! वाऽह ! क्या बात है !
आदरणीय बंधुवर देवेन्द्र पाण्डेय जी
बहुत उत्कृष्ट रचना लिखी आपने ...
बहुत अर्थपूर्ण !
... और प्रवाह देखते ही बनता है !
जितनी तारीफ़ की जाए कम होगी...
आपकी लेखनी से ऐसे ही सदैव सुंदर , सार्थक , श्रेष्ठ सृजन होता रहे …
नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
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आपकी प्रशंसा पा कर आनंद आ गया।..आभार।
Deleteसच है मिट्टी को जैसा ढालेंगे वही होगी ...
ReplyDeleteइस बार मिट्टी को न्याय का प्रतीक मानें ... अन्याय के विरुद्ध लड़ने की प्रेरणा मानें ...
आपको २०१३ शुभ हो ....
वाह मिट्टी को तो आपने क्या क्या बना दिया !
ReplyDeleteजबरदस्त रचना
बहुत बढ़िया नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें ....
ReplyDeleteलेकिन फिर भी मिट्टी होगी ...
ReplyDeleteएक ही तथ्य दो प्रकार से असर करता है ...कोई सुधर जाता है , कोई बिगड़ जाता है !
नव वर्ष की बहुत शुभकामनायें !
ग़ज़ब भाव व्यक्त किये हैं, प्रणाम।
ReplyDelete"यों तो बच्चों की गुडिया सी , मिट्टी की भोली हस्ती क्या,आँधी आए तो उडजाए ,पानी बरसे तो बह जाए । मिट्टी गल जाती है पर उसका विश्वास अमर होजाता है....".डा. शिवमंगल सिंह सुमन ।
ReplyDeleteआपकी कविता भी कुछ कम नही ।
हे ईश्वर,
ReplyDeleteइस मिट्टी को
फिर फिर गलाओ
फिर फिर तपाओ
फिर ढालो सुघड़
सांचे में ...
मिट्टी हिन्दुस्तान की खो गई अपनी ,गंध ,खुश्बू ,उर्वरकता .हिन्दुस्तान का दर्द लिए है यह रचना .
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteएक मिट्टी के कितने रूप दिखाए हैं लेकिन सबका अंत एक , सब मिट्टी का बना है सब मिट्टी में मिल जाएगा |
ReplyDeleteईश्वर इस मिट्टी को दुबारा पहले जैसा शुद्ध बना दे |
सादर
वाकई इन्सानों की मंदी है .... अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteवाह,बहुत सुन्दर रचना.आदमी वास्तव में अब फिर-से रचा जाय तो बेहतर हो.२१/१२/१२ का अफवाह सही होता तो बेहतर होता. न जाने कब सही मायने में प्रलय होगा और आज के आदमी की जगह कोई और आकार-प्रकार में किसी बेहतर जीव का सृजन होगा.
ReplyDeletebahut suder, saras rachna hai....
ReplyDeleteउर्वरक हो या बंजर हो
ReplyDeleteमिट्टी मिट्टी है
बिना उसके क्या !
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