जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना
जरूरत से ज्यादा कहीं जल न जाए।
मुद्रा पे हरदम बको ध्यान रखना
करो काग चेष्टा कि कैसे कमायें
बनो अल्पहारी रहे श्वान निंद्रा
फितरत यही हो कि कैसे बचाएं
पूजा करो पर रहे ध्यान इतना
दुकनियाँ से ग्राहक कहीं टल न जाए।
दिखो सत्यवादी रहो मिथ्याचारी
प्रतिष्ठा उन्हीं की जो हैं भ्रष्टाचारी
'लल्लू' कहेगा तुम्हे यह ज़माना
जो कलियुग में रक्खोगे ईमानदारी।
मिलावट करो पर रहे ध्यान इतना
खाते ही कोई कहीं मर न जाए।
नेता से सीखो मुखौटे पहनना
गिरगिट से सीखो सदा रंग बदलना
पंडित के उपदेश सुनते ही क्यों हो
ज्ञानी मनुज से सदा बच के रहना।
करो पाप लेकिन घडा भी बड़ा हो
मरने से पहले कहीं भर न जाए।
wah...devendraji.....kya khoob bani hai aapse ye yek shandar kavita.....jeete ranhe aap hajoron saal aur milati rahe longo ko padhane apaki rachananye.kanjoonso ki aap ne khal udhed di.
ReplyDeleteनेता से सीखो मुखौटे पहनना
ReplyDeleteगिरगिट से सीखो सदा रंग बदलना
सत्य तो यही है वही सफल है जो रंग बदल लेता है
बहुत खूब...
ReplyDeleteवाह.... बढ़िया कविता..
ReplyDeleteअच्छा व्यंग है आज के हालात पर.
ReplyDeleteब्लॉग जगत में आपका स्वागत है.
बहुत काम के सुझाव दे दिए हैं ...आभार ..!!
ReplyDeleteक्या बात है...बहुत उम्दा!!
ReplyDeleteAPKI KAVITA LAJAWAAB HAI ....BAHOOT HI VYANGATMAK SHAILI MEIN LIKHA HAI AAJ KE HALAATON KO ....SWAGAT HAI AAPKA....
ReplyDeleteवाह-बहुत बढ़िया.
ReplyDeleteबहुत अच्छा ब्यंग |
ReplyDeleteसादर