टेबुल पर
बैठी नहीं रहतीं
आधिकारियों के घर भी
आया जाया करती हैं।
अलमारियों में जब ये बंद रहती हैं
अक्सर आपस में
बतियाया करती हैं।
"यह क्या हाल बना रक्खा है, कुछ लेती क्यों नहीं !
धीरे-धीरे रंग-रूप खोती जा रही हो
देखती नहीं,
रोज मोटी होती जा रही हो।
मोटी फाइल ने एक लम्बी सांस ली और कहा-
मैं जिसकी फाइल हूँ
वह बी०पी०एल० कार्डधारी
एक गरीब किसान है
आर्थिक रूप से भरे विकलांग हो
किंतु विचारों से
आजादी से पहले वाला
वही सच्चा हिन्दुस्तान है।
कागजों से पट गई हूँ मैं
देखती नहीं कितनी
फट गई हूँ मै।
तुम बताओ
तुम कैसे इतनी फिट रहती हो ?
सर्दी-गर्मी सभी सह लेती हो
हर मौसम में
क्लीनचिट रहती हो!
मैं जिसकी फाइल हूँ
वह बुध्दी से वणिक
कर्म से गुंडा
भेष से नेता
ह्रदय का शैतान है
उसकी मुट्ठी में देश का वर्तमान है
वह आजादी से पहले वाला हिन्दुस्तान नहीं
आज का भारत महान है।
घने बरसात में 'फील-गुड' की छतरी हूँ
कड़ाकी ठंड में 'जाड़े की धूप' हूँ।
मैं भूखे कौए की काँव-काँव नहीं
तृप्त कोयल की मीठी तान हूँ
मैं टेबुल पर बैठी नहीं रहती
क्योंकि मैं ही तो सबकी
आन-बान-शान हूँ।
वाह .......... . कमाल की अभिव्यक्ति है ......... फाइलों की गुफ्तागो सच बयान कर रही है ......... जीवन का कडुवा सत्य ......
ReplyDeleteVah kya baat hai. Aapne to chand lino me poore desh ki sachchi tasveer kheench di. Lekin jab tak aap jaise logon ke man me ye bechaini rahegi kal achchi subah ki ummed baki hai
ReplyDeleteमैं जिसकी फाइल हूँ
ReplyDeleteवह बी०पी०एल० कार्डधारी
एक गरीब किसान है
आर्थिक रूप से भरे विकलांग हो
किंतु विचारों से
आजादी से पहले वाला
वही सच्चा हिन्दुस्तान है।
बहुत खूब......!!
कमाल की लेखनी .....!!
बेहद उम्दा
ReplyDeleteबहुत बढ़ियां...
ReplyDeleteऐसे ही लिखते रहियें.
पढ़कर अच्छा लगा पहली ही बार में अपना पाठक बना लिया.
अब आया पतली और मोटी फाइलों का चक्कर समझ में..........
ReplyDeleteफाइलों की भाषा की डिग्री किस विश्वविद्यालय से मिलती है, ज़रा हमें भी बताये ताकि हम भी उनकी बातें सुन और समझ पाएं......
इस रचना की जितनी भी तारीफ की जाये कम है बहुत ही बेहतरीन रचना है.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot,com
चंद्र मोहन जी-
ReplyDeleteयह तो बेचैन आत्मा ही समझ सकती है। इसके लिए आपको भी बेचैन आत्मा बनना पड़ेगा।
मेरे ब्लॉग पर आने के लिए और टिपण्णी देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया! विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeleteमुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! बहुत ही ख़ूबसूरत और शानदार रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है!
फाइलों की चर्चा के बहाने व्यवस्था की पोल खोलने हेतु साधुवाद.
ReplyDeletebahut hin badhiyan...sabhi bechain aatma ke dil ki baat aapne rakh di hai...
ReplyDeleteaap ki kabita bahut hi aachhi hai.
ReplyDeleteYah anubhav per aadharit hai. Aap ishi tarah likhate rai. Yahi meri ishwar se prathana hai.
Pramod Kumar Gupta
Asst. Commissioner Sale tax
Bihar, Patna
aapkee lekhani esi tarah chalti rahe
ReplyDeleteये रचना मैंने पहले भी कहीं पढ़ रखी है , शायद यही आपकी पहली रचना है जिसे मैंने पढ़ा है , शायद परिकल्प्ना ब्लोगोत्सव पर |
ReplyDeleteखैर बहुत सुन्दर तरीके से अपनी बात कही गयी है |
सादर