फागुन का त्यौहार
जले होलिका भेदभाव की, आपस में हो प्यार
तब समझो आया है सच्चा, फागुन का त्यौहार
हो जाएँ सब प्रेम दीवाने
दिल में जागें गीत पुराने
गलियों में सतरंगी चेहरे
ढूँढ रहे हों मीत पुराने
अधरों में हो गीत फागुनी, वीणा की झंकार
तब समझो आया है सच्चा, फागुन का त्यौहार
बर्गर, पीजा, कोक के आगे
दूध, दही, मक्खन को खाये !
कान्हां की बंसी फीकी है
राधा को मोबाइल भाये !
इन्टरनेट में शादी हो पर, रहे उम्र भर प्यार
तब समझो आया है सच्चा, फागुन का त्यौहार
अपने सोए भाग जगाएँ
दुश्मन को भी गले लगाएँ
जहाँ भड़कती नफ़रत-ज्वाला
वहीं प्रेम का दीप जलाएँ
भंग-रंग पर कभी चढ़े ना, महंगाई की मार
तब समझो आया है सच्चा, फागुन का त्यौहार.
'जहाँ भड़कती नफ़रत-ज्वाला
ReplyDeleteवहीं प्रेम का दीप जलाएँ'
अच्छी भावनायें अभिव्यक्त की हैं आपने !
इन्टरनेट में शादी हो पर, रहे उम्र भर प्यार
ReplyDeleteतब समझो आया है सच्चा, फागुन का त्यौहार
बहुत सुन्दर सदभावना!
bahut sunder man ke bhav liye hai ye fagun ka geet .
ReplyDeleteजले होलिका भेदभाव की, आपस में हो प्यार
तब समझो आया है सच्चा, फागुन का त्यौहार
ati sunder !
वाह , सही होली के रंग बिखेरे हैं, देवेन्द्र जी।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर।
बर्गर, पीजा, कोक के आगे
ReplyDeleteदूध, दही, मक्खन को खाये !
कान्हां की बंसी फीकी है
राधा को मोबाइल भाये !
इन्टरनेट में शादी हो पर, रहे उम्र भर प्यार
तब समझो आया है सच्चा, फागुन का त्यौहार
wah wah.
'बर्गर, पीजा, कोक के आगे
ReplyDeleteदूध, दही, मक्खन को खाये !
कान्हां की बंसी फीकी है
राधा को मोबाइल भाये ! '
वाह! क्या बात है! फागुनी कविता,बहुत बढ़िया !
देवेन्द्र जी इतन सुंदर, प्रेरक, गेय, फाग गीत मैंने नहीं पढा है। अपको सलाम!!असाधारण शक्ति का पद्य। वैचारिक ताजगी लिए हुए रचना विलक्षण है।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने शानदार रचना लिखा है! बधाई!
ReplyDeleteबहुत सटीक कहा ऐसे ही फागुन का इंतजार है, सही तस्वीर खींची है दिमाग पर
ReplyDeleteफागुन की इंतेज़ार का मज़ा भी लाजवाब होता है .... खूबसूरत गीत है फाग का .... हमारी तरफ से भी मुल्हाइज़ा फरमाएँ ....
ReplyDeleteदिल ही दिल में उतर रहे हों चंचल नैन कटार
तब समझो आया है सच्चा, फागुन का त्यौहार
उड़ रहे हैं रंग फाग के ! रस-रस बरस रही है फुहार ! आभार ।
ReplyDeleteभंग-रंग पर कभी चढ़े ना, महंगाई की मार
ReplyDelete--------- भला है कि अभी बनारसी भंग पर महगाई की मार नहीं चढ़ी है
बर्गर, पीजा, कोक के आगे
दूध, दही, मक्खन को खाये !
कान्हां की बंसी फीकी है
राधा को मोबाइल भाये !
----------- सही कहा है , नयी चीजों में फागुन कम असरदार थोड़े ही है ! ...
आभार !
इन्टरनेट में शादी हो पर, रहे उम्र भर प्यार
ReplyDeleteतब समझो आया है सच्चा, फागुन का त्यौहार
बहुत सुंदर जी, मजेदार
जले होलिका भेदभाव की, आपस में हो प्यार
ReplyDeleteतब समझो आया है सच्चा, फागुन का त्यौहार
सुंदर रचना ।
चंद पंक्तियों ने बहुत कुछ कह दिया, सुन्दर प्रस्तुति. रंगारंग होली की शुभकामनाये !
ReplyDeleteहोली आह्वान का आलाप द्रुत गति पकड़ रहा -बेहतरीन
ReplyDeleteकान्हां की बंसी फीकी है
ReplyDeleteराधा को मोबाइल भाये !
.... बहुत सुन्दर, प्रसंशनीय !!!!
नमस्कार .सुन्दर रचना. होली की अग्रिम रूप में शुभ्कामनायें .
ReplyDeletebahut badhiyaa baat kahi hain aapne.
ReplyDeletemain aapki baaton se puri tarah se sehmat hoon.
waise, sach kahoon to puraani holi ki bahut yaad aa rahi hain, naa jaane kab pehle jaisi holi khelne ko milegi??????
thanks.
www.chanderksoni.blogspot.com
जोरदार और जानदार रचना..अगर ऐसा हो तो सच में होली यादगार होगी...खूबसूरत और बढ़िया अंदाज़े-बयाँ बधाई देवेन्द्र जी..
ReplyDeleteहो सका तो होली मुबारक मिल कर देंगे....बनारस में ही..
pahale to samaj me nahi aaya kee aap ke aatma bechin kyo hai prantu aap ke blog par aakar meri aatma bechen ho gayee ise dekane ke liye danyavad
ReplyDeleteइन्टरनेट में शादी हो पर, रहे उम्र भर प्यार
ReplyDeleteतब समझो आया है सच्चा, फागुन का त्यौहार
क्या बात है बिलकुल आज के नब्ज़ पे हाथ रख दिया...सुन्दर रचना...
राधा के मोबाइल का जवाब नहीं ।
ReplyDelete"do patan ke Bich" par aane ke liye shukriya. main apke sujhaw par nishchit rup se vichar karunga.... Banaras se mera vishesh lagawa rah hi... apke bare me jankar bahut kushee huee.
ReplyDeletesadhnyawad
Ranjit
(A Gold Medalist allumini of BHU Varanasi)
अपने सोए भाग जगाएँ
ReplyDeleteदुश्मन को भी गले लगाएँ
जहाँ भड़कती नफ़रत-ज्वाला
वहीं प्रेम का दीप जलाएँ
भंग-रंग पर कभी चढ़े ना, महंगाई की मार
तब समझो आया है सच्चा, फागुन का त्यौहार.
सही बात है हमारे हौसले ऐसे ही होने चाहिये । हर मुश्किल से बेखबर होली के रंग जैसे बधाई इस रचना के लिये
बर्गर, पीजा, कोक के आगे
ReplyDeleteदूध, दही, मक्खन को खाये !
कान्हां की बंसी फीकी है
राधा को मोबाइल भाये !
इन्टरनेट में शादी हो पर, रहे उम्र भर प्यार
तब समझो आया है सच्चा, फागुन का त्यौहार
maza aa gaya is rang ko padh ,umag dooguni ho gayi is tyohaar ki .
holi ki badhai.............
ReplyDeleteदेवेन्द्र जी आदाब
ReplyDeleteमेलमिलाप और आपसी भाईचारे का संदेश देती रचना के लिये बधाई
होली की हार्दिक शुभकामनाएं
फागुन के गुन धारे, भाव बहुत ही प्यारे।
ReplyDeleteएक अच्छा गीत।
बहुत अच्छे.
ReplyDeleteरामराम.
इन्टरनेट में शादी हो पर, रहे उम्र भर प्यार
ReplyDeleteतब समझो आया है सच्चा, फागुन का त्यौहार
होली की मंगलमयता को दिया गया यह नया दायित्व अद्भुत है ! अच्छा लगा !
बर्गर, पीजा, कोक के आगे
ReplyDeleteदूध, दही, मक्खन को खाये !
कान्हां की बंसी फीकी है
राधा को मोबाइल भाये !
इन्टरनेट में शादी हो पर, रहे उम्र भर प्यार
तब समझो आया है सच्चा, फागुन का त्यौहार
होली के बहाने बड़ा तीखा व्यंग्य है।
बधाई!
तब समझो आया है सच्चा, फागुन का त्यौहार
ReplyDeleteबढ़िया कविता , उत्तम विचार से सजी-धजी.
कुल मिला कर सच्चा फागुन तो प्रकृति है वर्ष ही लेकर आती है, पर हम क्षुद्र स्वार्थियों ने उसके सच्चे पन को भी आज कटघरे में खड़ा कर दिया................
होली पर आपको हार्दिक शुभकामनाएं.
चन्द्र मोहन गुप्त
होली मैं छिपा सही अर्थ आपने कविता के माध्यम से शूट सुंदर
ReplyDeleteढंग से प्रस्तुत किया है |बधाई
आशा
अरे अभी तक मैं आपसे इतनी दूर क्यों था,भई वाह,आनंद आ गया.
ReplyDeleteहोली पर एक सुन्दर रचना
ReplyDeletewaah bahut sunder rachna
ReplyDeleteholi ka rang chad gaya
वाह वाह!! गजब भाई...देरी के लिए क्या कहूँ.. होली है न!!
ReplyDeleteHappy holi.......
ReplyDeleteआपको व आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDeleteसुन्दर रचना , होली की बधाई और शुभकामनायें.
ReplyDeleteफागु की भीर, अभीरिन ने गहि गोविंद लै गई भीतर गोरी
ReplyDeleteभाय करी मन की पद्माकर उपर नाई अबीर की झोरी
छीने पीतांबर कम्मर तें सु बिदा कई दई मीड़ि कपोलन रोरी।
नैन नचाय कही मुसकाय ''लला फिर आइयो खेलन होरी।``
बेचैन क्यों !! होली और मिलाद उन नबी की शुभकामनायें
ReplyDeletehappy holi to you.
ReplyDeletethanks.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
Holi Mubarak ho ! A poem of new net age !
ReplyDeleteWah ! A beautiful poem of contemporary world.
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