4.10.10

अयोध्या फैसले के बाद.....

तीन चींटियाँ


तीन चीटिंयाँ
एक सीधी रेखा में चल रही थीं
सुनिए
आपस में क्या कह रही थीं....!

सबसे आगे वाली ने गर्व से कहा...
वाह !
मैं सबसे आगे हूँ
मेरे पीछे दो चींटियाँ चल रही हैं !

सबसे पीछे वाली ने दुःखी होकर कहा.....
हाय !
मैं सबसे पीछे हूँ
मेरे आगे दो चींटियाँ चल रही हैं !

बीच वाली से रहा न गया
उसने गंभीरता से कहा...
मेरे आगे भी दो चींटियाँ चल रही हैं !
मेरे पीछे भी दो चींटियाँ चल रही हैं !

उसकी बातें सुनकर
आगे-पीछे वाली दोनो चींटियाँ हँसने लगीं..
मूर्ख !
क्या कहती है ?
तू तो सरासर झूठ बोलती है !

बीच वाली ने उत्तर दिया...
मुर्ख मैं नहीं, तुम दोनो हो !
जो आगे पीछे के लिए
आपस में झगड़ रही हो !

यह छोटे मुंह बड़ी बोल है
शायद तुम्हें पता नहीं
पृथ्वी गोल है ।

यहाँ हर कोई उतना ही आगे है
जितना पीछे है
उतना ही पीछे है
जितना आगे है
या यूँ कहो कि
हर कोई आगे ही आगे है
या हर कोई पीछे ही पीछे है
या फिर यह समझो
कि कोई आगे नहीं है
कोई पीछे नहीं है
सभी वहीं हैं
जहाँ उन्हें होना चाहिए !

यह आगे-पीछे का झगड़ा
मनुष्यों पर छोड़ दो
हम श्रमजीवी हैं
हमें आपस में नहीं झगड़ना चाहिए।

35 comments:

  1. वाह ...बहुत अच्छी सीख दी चींटियों ने

    शायद तुम्हें पता नहीं
    पृथ्वी गोल है ।

    यहाँ हर कोई उतना ही आगे है
    जितना पीछे है
    उतना ही पीछे है
    जितना आगे है..

    एक सही सन्देश देती पोस्ट

    ReplyDelete
  2. यह आगे-पीछे का झगड़ा
    मनुष्यों पर छोड़ दो
    हम श्रमजीवी हैं
    हमें आपस में नहीं झगड़ना चाहिए।

    Bahut achhe tareeqese apni baat kahi hai! Wah!

    ReplyDelete
  3. सच है, उनका झगड़ा हमने आयात कर लिया। संवेदनशील कविता।

    ReplyDelete
  4. वाह चीटियों के ज़रिये बहुत खूबसूरत सन्देश और रचना भी बहुत प्यारी.

    ReplyDelete
  5. ग़ज़ब की थ्यौरी है...ज़बरदस्त नज़र... बेहतरीन संदेश!!देवेंद्र जी, दिल ख़ुश कर दिया..

    ReplyDelete
  6. चींटियों के बहाने बहुत अच्छी बात कही है आपने.

    ReplyDelete
  7. काश इन नन्ही चींटियों से ही इंसान कुछ सीख लेता.
    बहुत अच्छी सीख दी हैं आपने.
    धन्यवाद.
    WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

    ReplyDelete
  8. देवेंद्र जी, चीटियों से पहले ही बहुत कुछ सीखा है हमने आज एक पाठ और सिखला दिया आपने. अयोध्या फैसले के बाद कई लोगों के विचार यहाँ देखने सुनने को मिले. पर यह अद्वितिय है!

    ReplyDelete
  9. वाह जी वाह ........इस छोटी सी कविता में सब कह दिया |

    ReplyDelete
  10. यहाँ हर कोई उतना ही आगे है
    जितना पीछे है
    उतना ही पीछे है
    जितना आगे है
    वाह चीँटिओं के माध्यम से सुन्दर सन्देश्। कृ्प्या यहाँ भी देखें।
    http://veeranchalgatha.blogspot.com/

    ReplyDelete
  11. विचारोत्तेजक / संदेशपरक पोस्ट के लिये हार्दिक बधाई !

    ReplyDelete
  12. यहाँ हर कोई उतना ही आगे है
    जितना पीछे है
    उतना ही पीछे है
    जितना आगे है
    ...vah....vichrotejak rachna.

    ReplyDelete
  13. बहुत खूब ... गहरा संदेश छिपा है इन चीटियों के वार्तालाप में .... सच कहा ... इंसान ही जड़ है बहुत सी बातों की ...

    ReplyDelete
  14. बहुत सुन्दर प्रस्तुति। धन्यवाद

    ReplyDelete
  15. बेचारा आइना तो कुछ कहता नहीं है। सब अपना चेहरा उसमें देखते हैं और सोचते हैं यह आइना बता रहा है।

    आपकी कविता में से अगर अयोध्‍या शीर्षक हटा दिया जाए तो पूरा दृश्‍य ही बदल जाता है। अभी केवल उस एक पंक्ति की वजह से लोगों के मन में जो है वे उसे कविता में देख रहे हैं।

    वैसे मैं स्‍वतंत्र रूप से कहूं तो चींटियों का संवाद महत्‍वपूर्ण है।

    ReplyDelete
  16. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

    ReplyDelete
  17. आदरणीय देवेन्द्र पाण्डेय जी
    नमस्कार !

    आगे-पीछे का झगड़ा
    मनुष्यों पर छोड़ दो

    कहां कहां तारीफ़ होती रहेगी मनुष्य की ?
    … और नादान को एहसास भी नहीं , हो रही जगहंसाई का !!

    अच्छी कविता ! अच्छा संदेश !

    शुभकामनाओं सहित
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

    ReplyDelete
  18. जज़्बात पर आपकी टिप्पणी का शुक्रिया .........मन का ही तो सब झगड़ा है .....मन के मत पे मत चलियो ये जीते जी मरवा देगा|

    ReplyDelete
  19. देवेन्द्र जी, अच्छी शिक्षा है...
    हमारा तो मानना है-

    फ़ैसले के बाद
    ठहरे नहीं रहेंगे सदा एक मोड़ पर
    रस्ता नया खुला है संभलकर चलेंगे हम
    जो फ़ैसला दिया है, अदालत ने, ठीक है
    इस फ़ैसले की मिलके हिफ़ाज़त करेंगे हम
    -शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

    ReplyDelete
  20. अच्छा रहा चींटी महात्मा का प्रवचन!

    ReplyDelete
  21. उत्तम कविता के माध्यम से बहुत अच्छा संदेश दिया है आपने...बधाई।

    ReplyDelete
  22. चीटियों की यह कथा है तो बहुत पुरानी लेकिन आपने इसे क्या खूब आज के सन्दर्भ मे प्रस्तुत किया है ।

    ReplyDelete
  23. बिल्कुल सार्थक बात...आगे-पीछे की बात तो बस विवाद और घमंड दर्शाता है...सब बराबर है...बढ़िया आलेख ..बधाई देवेन्द्र जी

    ReplyDelete
  24. bilkul sahi baat kahati rachana.... hame kuch seekhane ki zaroorat hai...

    ReplyDelete
  25. यह आगे-पीछे का झगड़ा
    मनुष्यों पर छोड़ दो
    हम श्रमजीवी हैं
    हमें आपस में नहीं झगड़ना चाहिए।
    कविता का यह अंश अपने आप में पूर्ण होने का उद्घोष करता है......चींटियों के माध्यम से अपनी बात प्रभावशाली तरीके से कहने का आभार.

    ReplyDelete
  26. यह आगे-पीछे का झगड़ा
    मनुष्यों पर छोड़ दो
    हम श्रमजीवी हैं
    हमें आपस में नहीं झगड़ना चाहिए।

    Wah chintiyun ke madhyam se apne vyanjaja shabad shakti ke madhyam se insaan ko samjahane ka khub prayas kiya hai......1
    Sunder Prastuti

    ReplyDelete
  27. यह आगे-पीछे का झगड़ा
    मनुष्यों पर छोड़ दो
    हम श्रमजीवी हैं.....!!!!!!!!!!!!!!

    चींटियों ने भी क्या वाट लगाई है आदमी की...क्या क्या कहने के बाद कामचोर भी कह डाला...

    :)

    ReplyDelete
  28. यह आगे-पीछे का झगड़ा
    मनुष्यों पर छोड़ दो
    हम श्रमजीवी हैं
    हमें आपस में नहीं झगड़ना चाहिए।

    गजब आपकी कई kavitayen पढी नि:संदेह एक से बेहतर एक
    लेकिन इसने नि:शब्द कर दिया ...कितनी गहरी बात आपने इतने सरल और एक नए ही अंदाज में कह दी
    दाद हाज़िर है क़ुबूल करें

    ReplyDelete
  29. बहुत बहुत सही.....वाह !!!

    ReplyDelete
  30. देवेन्द्र जी , अभी आपको पढ़ रही हूँ . अच्छा लग रहा है . रोचक ,मजेदार , सन्देश परक ........ है आपकी सभी रचनाएँ . देर से आई हूँ . पर वही आनंद ले रही हूँ . आपको शुभकामनायें .........

    ReplyDelete
  31. चीटीयों से,मधुमखियों से और और बहुत से जीवों से आदमी को बहुत कुछ सीखना है.

    ReplyDelete