3.12.10

यात्रा

................

सुपरफास्ट ट्रेन में बैठकर

तीव्र गति से भाग रहे थे तुम

तुमसे बंधा

यात्री की तरह बैठा

खिड़की के बाहर देख रहा था मैं ।


चाहता था पकड़ना

छूट रहे गाँव

घूमना

सरसों की वादियों में

खेलना

दोस्तों के साथ

क्रिकेट



भाग रहे थे तुम

और छूट रहे थे मेरे साथी, मेरे खेल

हेरी, मिक्की, तितलियाँ

गाय, भैंस, बकरियाँ


बिजली के खम्भों से जुड़े तार तो

चलते थे साथ-साथ

मगर झट से ओझल हो जाती थी

उस पर बैठी

काले पंखों वाली चिड़िया

तुम्हारे चेहरे से फिसलते

खुशियों वाले क्षणों की तरह।


रास्ते में कई स्टेशन आये

तुमको नही उतरना था

तुम नहीं उतरे

मेरे लाख मनाने के बाद भी

चलते रहे, चलते रहे


अब

जब हवा के हल्के झोंके से भी

काँपने लगे हो तुम

थक गए हैं तुम्हारे पाँव


आँखों में है

घर का आंगन

नीम की छाँव

चाहते हो

रूकना

चाहते हो उतरना

चाहते हो

साथ...!



खेद है मित्र !

अब नहीं चल सकता मैं तुम्हारे साथ

मित्रता की भी

एक सीमा होती है ।

27 comments:

  1. गया वक्त कभी वापस नहीं आता ।
    लेकिन पलायन भी विकास की एक सीढ़ी ही है ।
    फिर यादें भी तो सुहानी होती हैं ।

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  2. शब्द सामर्थ्य, भाव-सम्प्रेषण, संगीतात्मकता, लयात्मकता की दृष्टि से कविता अत्युत्तम है। संवेदना के कई स्‍तरों का संस्‍पर्श करती यह कविता जीवन के साथ चलते चलते मन की छटपटाहट को पूरे आवेश के साथ व्‍यक्त करती है।

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  3. खेद है मित्र !

    अब नहीं चल सकता मैं तुम्हारे साथ

    मित्रता की भी

    एक सीमा होती है ।
    Aah! Bada dard hai is rachana me!

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  4. चाहते हो उतरना

    चाहते हो

    साथ...!

    लाजवाब!!!!! क्या समा बांधा है. सच ही तो है हर चीज़ की एक सीमा होती है

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  5. जीवन की राहों में थकान और उत्साह क्रमिक हैं, उतरने की क्षुब्धता पर प्यार से विजय पायी जाती है।

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  6. मित्रता की भी
    एक सीमा होती है ।
    सच को सामने ला दिया ...बहुत खूब
    चलते -चलते पर आपका स्वागत है

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  7. खेद है मित्र !
    अब नहीं चल सकता मैं तुम्हारे साथ
    मित्रता की भी
    एक सीमा होती है ।
    sunder abhivyakti, sunder prastuti......

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  8. खेद है मित्र !
    अब नहीं चल सकता मैं तुम्हारे साथ
    मित्रता की भी
    एक सीमा होती है ।
    ---------------

    पता नहीं भैया साथ चलो या इकल्ले। चलना खुद को होता है। यह रास्ता है, कभी साथ साथ कर देता है, कभी बदल देता है रास्ते।

    आप तो चलें, जैसे भी। रुके नहीं कि गये।

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  9. देवन्द्र भाई ,
    आपसी नज़रें ,अंगुलियों में गिनी जा सकती हैं ,ईश्वर ने ये सलाहियत गिनों चुनों को ही दी है ! आपपे मेरी शुभकामनायें न्योछावर जानिये !

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  10. रास्ते में कई स्टेशन आये

    तुमको नही उतरना था

    तुम नहीं उतरे

    मेरे लाख मनाने के बाद भी

    चलते रहे, चलते रहे....

    जीवन की गति चलती रहती है ..कोई साथ होता है तो कोई बिछड जाता है ...अच्छी रचना ..

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  11. मित्रता की भी
    एक सीमा होती है,

    इस सीमा को तोडने को जी चाहता है.

    सुन्दर रचना, साधुवाद

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  12. आप चलें नचलें मित्र का साथ बना रहे.

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  13. अव नहीं चल सकता तुम्हारे साथ उस वक्त तो बडी दु्रत गति से भाग रहे थे । भागते भागते जब उम्र का ऐसा पडाव आया कि घर के आगन और नीम की छाव याद आने लगी तो अव रुकना चाहते हो। उस वक्त वकरियां भैस गाय याद नहीं आई?चिडियां ,बचपन की खुशिया ग्रामीण अंचल का सौन्दर्य उस वक्त याद नहीं आया जब उडन खटोले पर उडते चले जारहे थे और पैर जमीन पर नहीं धर रहे थे

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  14. बस सारनाथ स्टेशन पर उतर लीजिये मृगदाव के निकट -बुद्धं शरणं गच्छ !

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  15. मनोज जी ने सही कहा है कि कविता जीवन की एक्सप्रेस मे चलते मन की छटपटाहट की अभिव्यक्ति है..मन हमेशा हमें खींच कर वापस उन्ही गलियों-कूँचों मे ले जाना चाहता है..जहाँ उसकी जड़ें हैं..मगर हमारी महत्वाकाँक्षाएं हमारी विवशताएं बन जाती हैं..गाड़ी मे एक बार चढ़ जाने के बाद वापस पिछले स्टशन पर जाना संभव नही हो पाता..यहाँ हमारा दिल और दिमाग उन मित्रों की तरह लगते हैं जिनके साथ चलने और बिछड़ने का जिक्र यह कविता करती है..
    ..मगर हमारी स्मृतियाँ हमारी खुशियों की तरह ही अस्थाई होती हैं..झलक दिखा कर फिर लुप्त हो जाने वाली..काले पंखों वाली चिड़िया की तरह..

    मगर झट से ओझल हो जाती थी
    उस पर बैठी
    काले पंखों वाली चिड़िया
    तुम्हारे चेहरे से फिसलते
    खुशियों वाले क्षणों की तरह।

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  16. मित्रता की भी
    एक सीमा होती है ...

    मन के गहरे जज्बात शब्दों में उतार दिए हैं आपने देवेन्द्र जी ....
    इतना दूद नहीं निकलना चाहिए की वाप लौट न सको ... बहुत खूब ...

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  17. "मगर झट से ओझल हो जाती थी
    उस पर बैठी
    काले पंखों वाली चिड़ियाक्षणों की तरह
    तुम्हारे चेहरे से फिसलते
    खुशियों वाले क्षणों की तरह...."

    अति सुन्दर लाइन.

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  18. देवेन्द्र जी,

    लाजवाब हूँ मैं आज......शब्द नहीं हैं मेरे पास......

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  19. अपूर्व भाई,
    ..कविता पर अपना दृष्टिकोण रखने की सोच ही रहा था कि आपके कमेंट ने वो कमी पूरी कर दी। धन्यवाद।

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  20. दिगम्बर नास्वा जी के कमेन्ट को मेरा भी मान लें। और क्या कह सकते हैं। शुभकामनायें।

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  21. Devendra Ji,
    Asehmati nahi hai, lekin vishwas sa hai...
    shayad mitrata hi kuchh hai zindagi main jiski koi seema nahi.
    kam se kam mere liye

    waise rachna kabil-e-tareef hai.
    :)

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  22. जीवन की सच्चाइयों को बहुत ही खूबसूरती से उकेरा है।

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  23. sundar rachna!
    ek mod par aakar raahein badal hi jaati hain shayad...

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  24. एहसास का यह कोमल कोना ...
    छटपटाहट के ये भाव .. बहुत खूब

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  25. nice one brother . well xpressed !

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  26. जीवन की सच्चाइयों को बयां करती प्रभावी रचना .....

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